रोगियों की बनेगी अनूठी स्वास्थ्य कुंडली

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प्रमोद भार्गव

केंद्र सरकार देश के रोगियों की अनूठी स्वास्थ्य
कुंडली (यूनिक हेल्थ आईडी) बनाने जा रही है। बहुउद्देशीय
आधार जैसे इस कार्ड में रोगी की बीमारी, जांच रिपोट्र्स, दी गईं
दवाएं, दवा की दुकान, जांच प्रयोगशाला और चिकित्सक की भी
जानकारी होगी। गोया, यदि रोगी एक शहर से दूसरे शहर में
इलाज कराने जाता है तो उसे अपनी मेडिकल हिस्ट्री साथ ले
जाने की जरूरत नहीं रह जाएगी, क्योंकि हेल्थ कार्ड में यह सब
जानकारी दर्ज होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने पूरे देश
में 'नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन' (एनडीएचएन) शुरू कर सकते
है। दरअसल इस मिशन की मार्गदर्शी परियोजनाएं एक साल
पहले अंडमान-निकोबार, चंडीगढ़, दादर-नागर हवेली, दमनद्वीव,
लद्दाख और लक्षद्वीप में शुरू करके पूरी कर ली गईं हैं। यहां
परिणाम अच्छे रहे, इसलिए इन राज्यों में यूनिक कार्ड बनाने का
सिलसिला भी शुरू हो गया है। इन्हीं परिणामों के मद्देनजर इस

मिशन को पूरे देश में शुरू करने की तैयारी पूरी हो गई है।
हालांकि इस कार्ड से भी आधार कार्ड की तरह कुछ संशय जुड़े
हैं, जिनका निराकरण धीरे-धीरे कर लिया जाएगा।
डीएनए कानून बनने के बाद देश में जीन कुंडली बनने का
रास्ता खुल गया था। इसी कानून के तहत यूनिक हेल्थ कार्ड
बनाए जाने का रास्ता भी खुल गया है। अभी तक ज्योतिष
विद्या से बनाई कुंडली से व्यक्ति के भविष्य और बीमारियों की
जानकारी ली जाती थीं, किंतु अब यह काम जीन कुंडली और
हेल्थ कार्ड करेंगे। जीन कुंडली से व्यक्ति और उसकी संतानों की
1700 से भी ज्यादा किस्म की आनुवांशिक बीमारियों में से
कौनसी बीमारी हो सकती है, यह जानने का रास्ता खुल गया है।
बीमारी से पीड़ित दो अलग-अलग रोगियों में से किसके लिए
कौनसी दवा ज्यादा असरकारी होगी, यह भी जीन कुंडली बताने
की क्षमता रखती है। दरअसल किसी व्यक्ति के जीन समूह
यानी जीनोम अनुक्रम (सीक्वेंस) को पढ़ लेना है। फिलहाल
जीनोम सीक्वेंसिंग कराने के लिए 70 लाख रुपए खर्च होते हैं,
लेकिन अब भारत में यह जांच महज एक लाख रुपए में संभव
हो जाएगी। भविष्य में जब इसकी मांग बढ़ेगी तो जीन कुंडली

बनवाने का खर्च और भी कम हो जाएगा। 'विज्ञान एवं
औद्योगिक अनुसंधान परिषद्' (सीएसआईआर) की हैदराबाद एवं
दिल्ली स्थित प्रयोगशालाओं ने 1008 नमूनों की जीनोम
सीक्वेंसिंग पायलट परीक्षण जांच पूरी करने में सफलता प्राप्त
की है। सात अन्य प्रयोगशालाएं भी इस जांच में रुचि दिखा रही
हैं। कोविड-19 वायरस के बदलते रूप की सरंचना भी जीनोम
सीक्वेंसिंग से संभव हुई है।
योजना की घोषणा होते ही गूगल प्ले स्टोर पर
एनडीएचएम हेल्थ रिकॉर्ड पीएचआर एप्लीकेशन उपलब्ध होगी।
इसके जरिए रोगी का पंजीयन होगा और उसे 14 डिजिट का
यूनिक आईडी नंबर मिलेगा। यह पंजीयन रोगी स्वयं अपने
स्मार्ट फोन पर कर सकता है। हालांकि इसकी सुविधा सरकारी
और निजि अस्पताालों के साथ सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य
केंद्रों पर भी होगी। स्वास्थ्य से संबंधित पूरी जानकारी डिजिटल
फार्मेट में दर्ज होगी। इस मेडिकल हिस्ट्री को नई बीमारी और
उसके किए इलाज के साथ अपडेट भी किया जा सकेगा। साफ
है, स्वस्थ होने के बाद दुबारा बीमार पड़ते है और इलाज के लिए
अस्पताल पहुंचतें हैं तो आपको पर्चों की फाइल साथ ले जाने की

जरूरत नहीं रह जाएगी। यूनिक कार्ड के जरिए बीमारी का पूरा
डेटा और उपचार की जानकारी डॉक्टर के सामने मोबाइल या
कंप्युटर स्क्रीन पर अवतरित हो जाएगी। इससे डॉक्टर को इलाज
में आसानी होगी और तत्काल नई जांचों की जरूरत भी नहीं रह
जाएगी। इससे धन और समय दोनो की बचत होगी। बीमारी का
यह डेटा गोपनीय रहेगा, क्योंकि यह अस्पताल की बजाय डेटा
सेंटर में सुरक्षित रहेगा और इसे ओटीपी के जरिए ही खोला
जाना संभव होगा। यह डेटा प्रकट होने के बाद स्क्रीन पर केवल
दिखेगा। इसकी कॉपी नहीं होगी। न ही इसे स्थानांतरित किया
जा सकेगा। दूसरे मरीज का डेटा देखने के साथ ही पहले मरीज
का डेटा लॉक हो जाएगा। इसे दुबारा देखने के लिए फिर से
ओटीपी की जरूरत होगी। यह कार्ड प्रत्येक व्यक्ति के लिए
आधार कार्ड की तरह बनवाना जरूरी नहीं है। व्यक्ति की इच्छा
पर ही इसे बनाया जाएगा।

हेल्थ और जीन कुंडली का बनाया जाना डीएनए कानून
के अंतर्गत ही संभव हुआ है। दरअसल जीन डेटा के पक्ष में
अपराध व बीमारियां नियंत्रित कर लेने का मजबूत तर्क था।

इससे खोए, चुराए और अवैध संबंधों से पैदा हुई संतान के माता-
पिता का भी पता चल जाता है। लावारिस लाशों की पहचान हो
सकती है। इस बाबत देशव्यापी चर्चा में रहे नारायण दत्त तिवारी
और उनके जैविक पुत्र रोहित श्ोखर तथा उत्तर प्रदेश सरकार
के सजायाफ्ता पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी व कवयित्रि मधुमिता
शुक्ला के उदाहरण दिए जा सकते हैं। रोहित, तिवारी और
उज्जवला शर्मा के नाजायज संबंधों का परिणाम था। तिवारी पूर्व
से ही विवाहित थे, इसलिए रोहित को पुत्र के रूप में नहीं
स्वीकार रहे थे। किंतु जब रोहित ने खुद को तिवारी एवं
उज्जवला की जैविक संतान होने की चुनौती सर्वोच्च न्यायालय
में दी और डीएनए जांच का दबाव बनाया, तो तिवारी ने हथियार
डाल दिए। रोहित ने यह लड़ाई अपना सम्मान हासिल करने की
दृष्टि से लड़ी थी, इसलिए यह पवित्र और वैद्य हक के लिए थी।
इसी तरह अमरमणि नहीं स्वीकार रहे थे कि मधुमिता से उनके
नजायाज संबंध थे। किंतु सीबीआई ने मृतक मधुमिता के गर्भ
में पल रहे शिशु-भू्रण और अमरमणि का डीएनए टेस्ट कराया
तो मजबूत जैविक साक्ष्य मिल गए। जिससे अमरमणि व उनकी

पत्नी हत्या के प्रमुख दोषी साबित हुए व आजीवन कारावास की
सजा पाई।

हेल्थ कार्ड इसलिए भी बनाए जाना जरूरी है, जिससे
बीमारी के निष्कर्ष जीन डेटा से तालमेल बिठाकर निकाले जा
सकें। साफ है, यह परिणाम चिकित्सा के क्षेत्र में अहम् होंगे।
क्योंकि अभी तक यह शत-प्रतिशत तय नहीं हो सका है कि
दवाएं किस तहर बीमारी का प्रतिरोध कर उपचार करती हैं।
जाहिर है, अभी ज्यादातर दवाएं अनुमान के आधार पर रोगी को
दी जाती हैं। जैसा कि हमने कोरोना की दो लहरों में देखा है।
कोरोना की कोई दवा सुनिश्चित नहीं होने की वजह से ही इसका
सभी पैथियों में इलाज हुआ और लोग ठीक भी हुए। अभी भी
कोरोना वायरस की दवा का बनाया जाना संभव नहीं हुआ है।
कारगर टीका जरूर आ गया है। जीन के सूक्ष्म परीक्षण से
बीमारी की सार्थक दवा देने की उम्मीद बढ़ जाती है। लिहाजा
इससे चिकित्सा और जीव-विज्ञान के अनेक राज तो खुलेंगे
ही,दवा उद्योग भी फले-फूलेगा। इसीलिए मानव-जीनोम से मिल
रही सूचनाओं का दोहन करने के लिए दुनिया भर की दवा, बीमा
और जीन-बैंक उपकरण निर्माता बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरबों का

न केवल निवेश कर रही हैं, बल्कि राज्य सत्ताओं पर जीन-बैंक
बनाने का पर्याप्त दबाव भी बना रही हैं।
प्रत्येक व्यक्ति की आंख, त्वचा, बालों के रंग, नाक व कान
के आकार, आवाज, लंबाई जैसे सभी लक्षणों से लेकर बीमारियों
का होना या न होना जीन से तय होता है। जीन हरेक प्राणी की
कोशिका में होते है। कोशिका में मौजूद तीन अरब जीन की
श्रृंखला को जीनों का समूह जीनोम कहा जाता है। इन्हीं जीनों
को क्रमवार लगाना जीन कुंडली कहलाना है। जीन की किस्मों
का पता लगाकर मलेरिया, कैंसर, रक्तचाप, मधुमेह और दिल की
बीमारियों से कहीं ज्यादा कारगर ढंग से इलाज किया जा सकता
है। हेल्थ कार्ड में रोगी की जीन संबंधी किस्मों का डेटा भी दर्ज
होगा, नतीजतन डॉक्टर को सही इलाज करने में आसानी होगी।
इस हेल्थ कार्ड के डेटा डेटा संधारण के लिए देश भर में डेटा
केंद्रों को अपडेट करना होगा।

मानव-शरीर में मौजूद जीनोम कुंडली यानी डीएनए
(आॅक्सीरिवोन्यूक्लिक एसिड) की आंतरिक सरंचना यूनिक हेल्थ
कार्ड से डॉक्टर को जानना आसान हो जाएगा। डीएनए नामक

सर्पिल सरंचना अणु कोशिकाओं और गुण-सूत्रों का निर्माण करती
है। जब गुण-सूत्र परस्पर समायोजन करते हैं तो एक पूरी संख्या
46 बनती है, जो एक संपूर्ण कोशिका का निर्माण करती है।
इनमें 22 गुण-सूत्र एक जैसे होते हैं, किंतु एक भिन्न होता है।
गुण-सूत्र की यही विषमता स्त्री अथवा पुरूष के लिंग का
निर्धाररण करती है। डीएनए नामक यह जो मौलिक महारसायन
है, इसी के माध्यम से बच्चे में माता-पिता के आनुवंशिक गुण-
अवगुण स्थानांतरित होते हैं। वंशानुक्रम की यही वह बुनियादी
भौतिक रासायनिक, जैविक तथा क्रियात्मक ईकाई है, जो एक
जीन बनाती है। 25000 से 35000 जीनों की संख्या मिलकर
एक मानव जीनोम रचती हैं, जिसे इस विषय के विशेषज्ञ पढ़कर
व्यक्ति के आनुवांशिकी रहस्यों को किसी पहचान-पत्र की तरह
पढकर बीमारियों को ठीक से जान सकेंगे और उपचार के लिए
उपयुक्त दवा दे सकेंगे। बहरहाल इस मिशन के समूचे देश में
लागू हो जाने के बाद बीमारी का इलाज सरल हो जाएगा।

Author profile
प्रमोद भार्गव
प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ पत्रकार व साहित्‍यकार प्रमोद भार्गव
अलंकृत डॉ. सरोजिनी कुलश्रेष्ठ सम्मान