मराठी परिवारों के घर-घर में जेष्ठा कनिष्ठा महालक्ष्मी का आगमन, धन और सौभाग्य की होती है प्राप्ति!

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जेष्ठा कनिष्ठा महालक्ष्मी
जेष्ठा कनिष्ठा महालक्ष्मी

मराठी परिवारों के घर-घर में जेष्ठा कनिष्ठा महालक्ष्मी का आगमन, धन और सौभाग्य की होती है प्राप्ति!

महाराष्ट्रीयन परिवारों में गणपति जी के आगमन के पश्चात सप्तमी अष्टमी और नवमी को तीन दिवसीय महालक्ष्मी पूजन का आयोजन हो रहा है।भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होने वाले तीन दिन के महालक्ष्मी पर्व को महाराष्ट्रीयन परिवारों में धूमधाम से मनाया जाता है,जिसकी झलक इंदौर के मराठी समाज में भी देखी जा सकती है.

ऐसी मान्यता है कि जेष्ठा कनिष्ठा महालक्ष्मी जी, गणपति जी की बहने हैं और गणपति जी से मिलने तीन दिवस के लिए मायके आई हुई है।जो अपने बच्चों के साथ मायके आती हैं और कुछ समय अपने भाई गणेश और अन्य परिवार जनों के साथ बिताती हैं. जब वो घर में पधारती हैं तो सब परिवार वाले मिलकर उनकी खूब सेवा करते हैं और अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर उन्हें भोग लगाते हैं. महाराष्ट्रीयन संस्कृति के अनुसार जब 6 दिवसीय गणेश जी का विसर्जन होता है तो उनके साथ इनका भी विसर्जन किया जाता है.

सोने के पैर से जेष्ठा और कनिष्ठ महालक्ष्मी जी ने आज अलग-अलग दरवाजे से घर में प्रवेश किया। घर के मध्य दोनों बहनों की भेंट हुई। दोनों बहने हल्दी कुंकु लगाकर एक दूसरे से गले मिली और अपने मायके में घर में घूमी।

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जब देवी मां को रसोई घर ले जाया गया तब उन्होंने घर की बहू और बेटियों से पूछा, यह कौन सा कमरा है, जब उन्हें बताया कि यह रसोई है तब उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा की माता अन्नपूर्णा की कृपा हमारे मायके पर सदैव बनी रहे।

बैठक के कमरे में आने पर उन्होंने आशीर्वाद दिया की घर में अड़ोसी-पड़ोसी नाते-रिश्तेदार और समाज जनों की आवाजाई हमेशा ही बनी रहे।

भंडार गृह देख कर कहा कि घर में अन्न का भंडार भरपूर रहे।
तिजोरी को देखकर कुबेर का भंडार कभी कम ना हो का आशीर्वाद दिया।

घर में घूमाने के बाद उनकी विधिवत स्थापना की गई और 16 श्रृंगार किया गया उन्हें नई साड़ियां और वस्त्र पहनाऐ गये, यह साड़ियां बाद में प्रसाद स्वरूप विवाहित पुत्रीयों को दी जाती है। तत्पश्चात पूजा कर आरती हुई। और उन्हें भोग लगाया गया।

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कल अष्टमी को ज्येष्ठा और कनिष्ठा महालक्ष्मी जी की पूर्ण विधि विधान से महापूजा और महाप्रसाद होगा। महाप्रसाद में 16 तरह की सब्जियां, पांच तरह की चटनियां, पांच तरह की मिठाई, दाल, रोटी, चावल, कढी, अरबी के पत्तों के भजिए इत्यादि पकवान बनाये जाएंगे जिसमें पूरन पोली और चने की सुखी दाल प्रमुख है। अंत में उन्हें मुख शुद्धि हेतु तांबुल (पान) दिया जाएगा।इस त्यौहार में माताजी की मूर्तियां श्रृंगार कर स्थापित की जाती है, जिसके लिए एक त्रिकोण आकार के स्टैंड पर साड़ी पहनाकर दिव्य मुखौटा लगाया जाता है. इस त्रिकोण आकार के स्टैंड में गेहूं और चावल जैसे धान भरे जाते हैं, जो लक्ष्मी के आने का प्रतीक होता है. साथ ही इससे घर में सौभाग्य बना रहता है. हिंदू संस्कृति में यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है.

महालक्ष्मी जी को भोग लगाने के बाद सुहागिन महिलाओं को और ब्राह्मण को भोजन कराया जाएगा और उन्हें दक्षिणा स्वरूप रुपए दिए जाएंगे। सुहागिन महिलाओं की साड़ी व श्रीफल से गोद भराई जाएगी।

शाम को महिलाओं का हल्दी कुमकुम और पुरुषों के लिए दर्शन का आयोजन होगा उसमें बहुत से रिश्तेदार, पड़ोसी और पहचान के लोग शिरकत करेंगे यह प्रोग्राम शाम से देर रात तक निरंतर चलता रहेगा। सभी को पूरनपोली और चने की दाल का प्रसाद दिया जाएगा।

नवमी के दिन दोपहर में दही चावल का नैवेद्य दिखाकर महालक्ष्मी जी को उनके आगमन पर स्वागत में जाने-अनजाने में हूई गलती के लिए क्षमा मांगी जाएगी और अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी जाएगी।

तीन दिवस का यह आयोजन सभी के घर में नव उत्साह का संचार करता है। आपके महाराष्ट्रीयन परिचित परिवार में अगर यह आयोजन हो रहा है तब अष्टमी की शाम को दर्शन के लिए आवश्य जाइए, एक अलग अनुभव होगा।

वंदना दुबे,धार द्वारा साभार प्रस्तुत

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