Big Faces on Small Seats : बड़े चेहरों को छोटा चुनाव लड़वाने के पीछे आखिर भाजपा का क्या सोच! 

चुनावी संकट से निजात पाने का पार्टी का ये रास्ता मुश्किलों से भरा!

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Big Faces on Small Seats : बड़े चेहरों को छोटा चुनाव लड़वाने के पीछे आखिर भाजपा का क्या सोच! 

Bhopal : मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने तीन किस्तों में 79 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए। भाजपा ने जिन सीटों पर ये नाम घोषित किए वहां भाजपा के विधायक नहीं हैं। दरअसल, दूसरी लिस्ट 8 बड़े नामों की वजह से चर्चा में आ गई। इनमें 7 सांसद हैं, जिनमें 3 केंद्रीय मंत्री। इसके अलावा एक पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। केंद्रीय मंत्री हैं नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते। सबसे चौंकाने वाला नाम राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का हैं, जिन्हें 10 साल बाद विधानसभा चुनाव में उतारा गया।

79 सीटों में तीन विधायकों का टिकट भी कटा है। भाजपा ने दो बार जिन 79 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित किए, उनमें से तीन विधायकों के टिकट काटे गए। यानी इन सीटों पर भाजपा के विधायक थे। बाकी अन्य सीटों पर कांग्रेस और बसपा का कब्जा था। जिन 3 सीटों पर विधायकों के टिकट काटे गए वे हैं, उनमें मैहर, सीधी और नरसिंहपुर शामिल है।

भाजपा ने यह नया प्रयोग नहीं किया। जहां भी चुनौती बड़ी दिखाई देती है, पार्टी सांसदों को विधानसभा सीटों पर उतारती है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में भी ये हो चुका है। मध्य प्रदेश भाजपा का गढ़ रहा है, इसलिए वो इस बार किसी भी स्थिति में यह प्रदेश खोना नहीं चाहती। यह भी माना जा रहा है कि ये एक तरह से शिवराज सिंह चौहान पर लगाम कसने की कोशिश है। जो 8 बड़े नेता प्रदेश के चुनाव में उतारे गए। उनमें से पांच कभी न कभी मुख्यमंत्री पद का विकल्प समझे गए हैं।

पार्टी के इस फैसले से शिवराज सिंह के पद और कद दोनों पर खतरा देखा जा सकता है। अभी मुख्यमंत्री की बुधनी सीट से उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई, इसलिए ये संशय भी है कि कहीं गुजरात फार्मूला इस्तेमाल करके मुख्यमंत्री समेत ज्यादातर मंत्रियों को किनारे तो नहीं किया जा रहा। वैसे भाजपा में कुछ भी हो सकता है। इसलिए बुधनी सीट से कोई और नाम सामने आ जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

मैहर से बगावत जैसे सुर निकालने वाले नारायण त्रिपाठी को हाशिए पर रखा गया। उनकी जगह श्रीकांत चतुर्वेदी को उम्मीदवार घोषित किया गया। सीधी के विधायक केदारनाथ शुक्ल का टिकट काटकर उनकी जगह पर सीधी सांसद रीति पाठक को उतारा गया। नरसिंहपुर से जालम सिंह पटेल का टिकट काटकर उनके भाई और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को टिकट दिया गया।

पिछले 2018 विधानसभा चुनाव में 79 में से 5 सीटें भाजपा की झोली में गई थी। लेकिन, उपचुनाव में भाजपा को 2 सीटें और गवाना पड़ी। जिनमें झाबुआ और शाजापुर की सीटें भी शामिल है। दोनों सीटों को कांग्रेस ने उपचुनाव में भाजपा से छीन ली थी इस तरह से वर्तमान में सिर्फ 3 सीटों पर ही भाजपा के विधायक थे। 5 अन्य सीटों पर 2020 में उपचुनाव हुए थे जिसमें पांचों कांग्रेस के खाते में गई थी।

 

क्यों 8 बड़े नेताओं को टिकट दिया

● मुरैना जिले के दिमनी सीट से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को टिकट दिया गया। दिमनी सीट भाजपा 2013 से हार रही है। इस सीट पर कांग्रेस और बीएसपी का अच्छा दबदबा है। 2018 में भाजपा यहाँ से 18,477 वोटों से हारी थी।

● मंडला जिले की निवास विधानसभा से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री और आदिवासियों के नेता फग्गन सिंह कुलस्ते को उतारा है। 2018 में पार्टी ने कुलस्ते के छोटे भाई रामप्यारे कुलस्ते को टिकट दिया गया था जो 28,315 वोट से हार गए थे।

● चार बार के सांसद और पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह को जबलपुर (पश्चिम) से उतारा गया। यह सीट भी भाजपा 2013 से हार रही है। 2018 का चुनाव भाजपा यहां से 18,663 वोटो से हारी थी।

● गाडरवारा सीट से होशंगाबाद के सांसद उदय प्रताप सिंह को टिकट मिला। वे पहली बार सांसद कांग्रेस से 2009 में बने थे। उसके बाद वे भाजपा में आ गए और 2014 और 2019 में चुनाव जीते। 2018 का चुनाव भाजपा यहां से 15,363 वोटों से हारी थी।

● इंदौर-1 से भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को उतारा। वास्तव में यह भाजपा की ही सीट मानी जाती है। 2018 में कांग्रेस ने यह सीट इंदौर के पूर्व भाजपा नेता के बेटे संजय शुक्ला को उतारकर 8,163 वोटो से जीती थी। यहां से कैलाश विजयवर्गीय के लिए चुनौती इसलिए है कि संजय शुक्ला को कथा आयोजनों में महारत है और आर्थिक रूप से भी वे बेहद समृद्ध हैं।

● सतना से भाजपा ने सांसद गणेश सिंह को उतारा है। यह सीट भाजपा ने 2018 में 12,558 वोटों से हारी थी। लेकिन, यहां पार्टी में ही उनके खिलाफ बगावत शुरू हो गई।

● दो सीटें नरसिंहपुर और सीधी पहले से भाजपा जीती हुई है। पर, सीधी में पूर्व विधायक केदारनाथ शुक्ला के विद्रोह के बाद यहां लड़ाई मुश्किल हो गई। अगर इन सीटों पर पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो इसका असर 2024 के चुनावों पर पड़ेगा।