“एक बूँद प्रेम की या पानी की काफ़ी है जीने के लिए”

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पुस्तक चर्चा  “एक बूँद प्रेम की” डॉक्टर पुष्पा रानी गर्ग की कविताओं का संग्रह-

              “एक बूँद प्रेम की या पानी की काफ़ी है जीने के लिए”

आज का कठिनतम होता जा रहा जीवन संघर्ष, मनुष्यता को चूर-चूर करनेवाली प्रवृत्तियों ने एक अनैसर्गिक विश्व का निर्माण कर दिया है। उसी को कोमलता से भरना, करुणा अपनाना, नैसर्गिक बनाना, सौंदर्य से परिपूर्ण बनाने का आवाहन आज लेखकों के समक्ष है। डॉक्टर पुष्पा रानी गर्ग की कविताओं का यह गुलदस्ता हर तकलीफ़, हर संघर्ष से उपजी थकान को दूर कर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक अमृत बूँद है। जो मन को सुकून देती है। एक बूँद प्रेम की या पानी की काफ़ी है जीने के लिए। उनकी संवेदनाओं के विश्व में मानवता की हरियाली है ,करुणा के कुसुम हैं , गहराई तक पहुँची हुई जीवन मूल्यों की जड़ें हैं। सभी कविताओं में कहीं प्रेम है ,आनंद है , प्रेरणा है, कौतूहल है, उल्लास है, उत्कंठा है, यानी जीवन का हर राग ,हर रंग उपस्थित है। हर कविता अनूठी और चिंतन योग्य है।

शब्दों की मितव्ययिता और अर्थ का विस्तार कविता की खासियत है। उनकी सभी कविताएं अतुकांत हैं ,जिनमें स्पष्टता और साफगोई मिलती है। उनके काव्य संसार में प्रेम, प्रकृति और पर्यावरण का समावेश है ।और इन पर आधारित कविताऐं बार-बार सुधि पाठक का ध्यान केंद्रित कर लेती हैं।

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उनकी कविता “मेरी बेटी” में माँ की भावनाऐं तीव्रता से उतर आईं हैं । बिटिया के पायल की रुनझुन को अनायास ही नर्मदा की कल- कल से उन्होंने जोड़ दिया है। कविता में बड़े ही सुंदर शब्दों में दर्शाया गया है कि बेटी माँ का दर्पण होती है। बेटी के लिए उनकी प्रेम की बूँदें हृदय कलश से छलक कर मन को शीतल कर देती हैं। “वह बालक” कविता प्रेम को सर्वोच्च स्थान देती है। प्रेम सूखे ठूँठ को भी दूसरा जन्म दे देता है। बालक के सहलाने मात्र से ठूँठ लहलहाने लगता है ।वाह! अद्भुत कल्पना। वसंत को बालक का रूप देना, निर्मल- निश्छल प्रेम का दर्शन है। “इसी को वसंत कहते हैं” आमतौर पर लिखी जाने वाली कविताओं जैसी है। मौसम का खिलना, कलियों का चटकना, हवा का महकना, कोयल की कूक आदि । अमूमन सभी कवि वसंत का ऐसा ही वर्णन करते हैं।

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पर्यावरण आधारित एक और कविता “बात करेगी सड़क” जो पर्यावरण शुद्ध और मानवोपयोगी रखने का उद्देश्य रखकर मानव की सेहत के लिए एक बेहतरीन उपाय यानी पैदल चलने का संदेश देती है । “बोलने दो मन को” कविता में बताया है कि शब्दों की तुलना में मौन मुखर होता है ।मौन भाषा की एक ऐसी शक्ति है, जिसके समक्ष हर भाषा नतमस्तक हो जाती है। “हँस रही थी जमीन” सही में मानव की असीमित तृष्णा पर कटाक्ष है। वह जीते जी ढेर सारी ज़मीनें, ढेर सारा ऐश्वर्य , रिश्तों से दूरी अलगाव, भाईबंधुओं से धोखा फ़रेब सभी काम करता है लेकिन अंत में आवश्यकता केवल दो गज जमीन की होती है।जमीन के लिए इस हवस को पुष्पा जी ने सारगर्भित पंक्तियों में प्रस्तुत किया है। ताउम्र इस उधेड़बुन में व्यस्त रहकर वह , अंत में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही लौटता है।

“गुलमोहर” सुंदर शब्दों में पिरोई गई माला है। आज विकास के नाम पर अनगिनत वृक्ष कट जाते हैं। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पर्यावरण को बुरी तरह से रौंदा जा रहा है। ऐसा ही कुछ “जहाँ वृक्ष था” में लिखा गया है। जब वृक्ष था, शीतल छाया थी। कवि की कल्पना है कि उस समय गगन भी वृक्ष के समीप आकर उससे बतियाता था। “सच की खोज” में पुष्पा जी का मन आज की चकचौन्ध भरे झूठ से तार तार हो चुका है। सच उन्हें किसी बड़े स्थान पर नहीं अपितु दो रुपये के गुब्बारे में प्राप्त होता है।

कविता , “कितने दिनों बाद” प्रिय के प्रति प्रेम उसके आने से गहरा जाता है।प्रेम की बारिश में सरोबार प्रेमी के आँगन में जब धूप उतरती है, गौरैय्या भी चहकने लगती है।अतिथि आगमन का प्रतीक कौव्वा आँगन की मुँडेर पर बैठा है । “पागल” कविता में पागल कौन है? वह लड़की या समाज जिसने उसे इस स्थिति में पहुँचाया है। सही अर्थों में यह कविता आज की सामाजिक व्यवस्थाओं पर, समाज के पुरोधाओं पर गहरी चोट है। पुष्पा जी “चिट्ठियों में” कविता द्वारा माता-पिता के एक पत्र द्वारा उनके सामीप्य और आशीर्वाद महसूस करती है।

मोबाइल, कंप्यूटर, मेल आदि में वह स्पर्श कहाँ ? वह तृप्ति कहाँ ? जो स्वलिखित पत्र से मिलती है । “चाहता है मन में” वह पंक्ति दर पंक्ति शब्दों को इस तरह उकेरती हैं मानों कोई चित्रकार पंछी ,पुष्प, ढलती साँझ, रंभाती, दूध पिलाती गायों को चित्रित करता है। पुष्पाजी ने विभिन्न विषयों को अपनी कलम से आकार बाग़ीचे को महकाया है, एक माली की मानिंद संजोया है। कटते पेड़ों की पीड़ा को महसूस करके “जहाँ वृक्ष था” में विश्व के नष्ट होते पर्यावरण के बारे में लेखनी उठाकर एक लेखक का दायित्व निभाया है।
जीवन के कुरुक्षेत्र में हर व्यक्ति पार्थ है।उसे ही अपनी राह निर्धारित करनी है क्योंकि अब कोई कृष्ण नहीं है , उसका विश्वास, उसका हौंसला ही उसे इस जीवन रण में रक्षा करेगा “समय के कुरुक्षेत्र में”।

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लेखक के मन की किरचें जितनी गहरी होंगी, सृजन उतना ही गहराई लिए होगा। तभी तो रचनाऐं हमें संवेदना के गहन लोक में विचरण करा देती हैं। अपनी प्रतिनिधि कविता “एक बूँद प्रेम की” में तो उन्होंने अपने मन के ‘जादूगर कलश’ के माध्यम से चाहा है कि काश! इसमें प्रेम की एक बूँद भी घुल जाऐ तो सारी की सारी कायनात प्रेम जल से भीग जाऐ। समस्त रचनाऐं हृदय की बात समझ कर हृदय की गहराइयों तक उतर जाने की क्षमता रखती हैं , मन को सींचती हैं बस एक शब्द को लेखिका अलग लिख सकतीं थी “नल से टपकी तो प्यास बन गई” के स्थान पर “प्यास बुझा गई” होता तो बूँद का मान बढ़ जाता।

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हर कविता का कुछ ना कुछ उद्देश्य है, संदेश है जो जीवन की हर अच्छाई बुराई से रूबरू करवा कर पाठक के मन में उत्सुकता- उत्कंठा जगाती है। कविताऐं निश्चित ही पाठक को भावनात्मक स्तर पर उद्वेलित करतीं है। मानव की जिंदगी में प्रेम भास्कर का उदय होना ज़रूरी है , तभी तो इस गहन तिमिर को वह चीर सकेगा। प्रेम लेना भी है और देना भी है एकतरफ़ा कुछ नहीं होता । हम प्रकृति माँ से लेते तो जा रहें हैं मगर लौटाते कुछ नहीं।

पुष्पा जी ने बहुत ही उम्दा काव्य रचा है । कविताऐं बदलाव की बयार बहा रही हैं। मानव जो हर प्रकार से अमानवीय हो गया है, को बेहतर बनने का संदेश देती हैं। संपूर्ण काव्य यात्रा विभिन्न पड़ावों से गुज़र रही है। हकीकतों से गुज़रते सफर में उजास की अनुभूति है तो निराशा का अंधकार भी है। अव्यवस्था के प्रति आक्रोश भी दिखाई पड़ता है। डॉ. पुष्पा रानी गर्ग हिंदी साहित्य की पुरानी और मँझी हुई लेखिका हैं। ताजिंदगी एक उत्कृष्ट और संवेदनशील कवि को जीती रही हैं।

डॉ.सुनीता फड़नीस

लेखिका ,प्राध्यापक .इंदौर .

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