चातुर्मास संस्मरण : जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं तब धर्म का रास्ता खुला रहता है

क्या भूलूं क्या याद करूं उन गुणी गुरुजन को

1128

जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं तब धर्म का रास्ता खुला रहता है

अध्यात्म के क्षेत्र में अगर किसी व्यक्तित्व ने गहरा प्रभाव मेरे मन मस्तिष्क पर छोड़ा है, तो वह है पूज्य आचार्य भगवंत श्री उमेश मुनि जी अणु । निश्चित रूप से ज्ञान को, ध्यान को, चेतना को, चिंतन को ,संस्कार को, विचार को और इस पूरे ब्रह्मांड को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है और इसी कड़ी में महा मनस्वी परम पूज्य आचार्य भगवंत का आशीर्वाद सदा सर्वदा हमारे परिवार पर रहा ।
यह उन दिनों की बात है ,जब मेरे जीवन में कठिनाई और संघर्ष की घड़ियां ,जब तब विपत्ति रूपी दीवार पर संघर्ष के भयावह चित्र आरेखित कर रही थी । मानसिक विचलन ने , जैसे धैर्य के सारे कनो को सोख लिया था …।अग्नि परीक्षा के यक्ष के सामने वक्त ने मेरे कई प्रश्नों को अनुत्तरित कर दिया था…।

जीवन के जटिल प्रश्नों में उलझ कर मन यह मानने लगा था कि जहां धूर्तता और धोखा पाया जाता है , वहां सच्चा और निष्कपट होना कितना कठिन कार्य है , अन्यान्य त्रासद स्थितियां निर्मित हो जाती हैं और हम कुछ भी नहीं कर पाते । ऐसे में कोई निष्काम योगी का साक्षात आशीर्वचन मिल जाए ,तब तपते जीवन में शीतलता का झरना सहज ही आपके साथ चलने लगता है , आतप्त जीवन में भी जैविकय संचार ,कब मनोबल का संबल बन जाता है , पता ही नहीं चलता , सारे अंतर्द्वंदो और उलझनों को थाह मिल जाती है, और लगता है परेशानी जैसे पास ही से छूकर निकल गई ।उन्हीं दिनों थांदला में सन 1997 में आचार्य श्री का चातुर्मास था ।

Chaturmas 2021:इस बार 118 दिन का होगा चातुर्मास, मांगलिक कार्य रहेंगे निषेध, जानें इसका महत्व और नियम - Chaturmas 2021 Starts On 20th July And This Time Its 118 Days Know ChaturmasAacharya tulsi by pawan singhi | Art sketches, Art, Drawings

आज का विचार : एक अंधे व्यक्ति ने दिया यह उजियारा “औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय

उनके मुखारविंद से व्याख्यान श्रवण करने का सहज अवसर मिला ।शास्त्रों की गूढ़ व्याख्या , लोक जीवन की सरल शैली में ढलकर बोलने लगती , तब अध्यात्म की गौरवमयि कड़ियां श्रोता के मनोमय संसार में आस्था और श्रद्धा का एक संसार बसा देती ….।कहते हैं जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं तब धर्म का रास्ता खुला रहता है ।

एक दिन दोपहर के समय गुरुदेव के समक्ष मम्मी और मैं बैठे थे कि अचानक ही मेरी आंखों में आंसू आ गए ,अपने आप को संभाल कर मैंने अपनी डायरी गुरुदेव की और बढ़ाई , कि आप इसमें आशीर्वचन लिख दीजिए तब मोती जैसे अक्षरों में आपने लिखकर दिया कि ” जीवन में सुख और दुख धूप और छाया के समान आते रहते हैं ,सुख आत्मा की कमाई है तो दुख भी, सुख में भान नहीं भूलना है तो दुख में भी दीन नहीं होना है , यह समभाव ही आत्मा का सच्चा पुरुषार्थ है , जो आत्मा यह पुरुषार्थ साध लेता है , वह कृतकृत्य हो जाता है … ।
मुझे मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर मिल गया था , गुरु की परम कृपा ने मेरा खोया मनोबल लौटाया यह मेरा सौभाग्य था , यह अमृत वचन मेरे आत्मविश्वास की अमूल्य थाती है ।

Spiritual Teacher Acharya Hemachandra Jiआज का विचार : तुलसी की सुगन्धित चाय और जीवन का सबसे सुन्दर सन्देश

आचार्य श्री का चातुर्मास तब कोटा में था दोपहर में पूज्य श्री के सानिध्य में धर्म चर्चा एवं प्रश्न उत्तर चल रहे थे , गुरु के आशीष की चाह में मैंने अपनी डायरी फिर से उनके सम्मुख कर दी , तब फिर से आपने आशीर्वचन लिख कर दिया कि ,” शांति कहीं बाहर नहीं है अपने आप में ही है, अतः जीव कहीं भी कभी भी शांत रह सकता है कषाय का आवेग और विषयों की चाह शांति को भंग करती है। किसी के प्रति क्रोध मत करो , क्योंकि हमारा क्रोध ही हमारी हानि करता है ”
क्या भूलूं क्या याद करूं उन गुणी गुरुजन को जिन्हें अपनी प्रतिभा एवं प्रसिद्धि पर लेश मात्र भी गर्व नहीं था । सन 2004 फरवरी में पापा को अचानक ब्रेन हेमरेज का अटैक आया, डॉक्टर का कहना था कि तुरंत बाहर ले जाना होगा, तब सर्वप्रथम उस परम उपकारी गुरु का स्मरण हो आया और मन पुकार उठा कि हे उमेश गुरु आप हमारे साथ रहना … कहीं दूर विराजमान उस अवधूत मुनि ने मेरी बात सुन ली थी , तभी तो थांदला से 5 घंटे का इंदौर का सफर सिर्फ 3:30 घंटे में तय होना, बिना फोन किए विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम का उपलब्ध होना, तुरंत इलाज चालू होकर पूरी रात में स्थिति कंट्रोल में आना , सुबह ऐसा लगा जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं था ।

पापा के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार आया , तब उन्होंने गुरुदेव के अनुमोदनार्थ पत्र लिखा कि “बीमारी की विकरालता के बावजूद भी आपके स्मरण ,भाव वंदन ,भाव मांगलिक से मेरे स्वास्थ्य लाभ में ,जिस द्रुतगति से चमत्कार हुआ ,उसे देखकर परिजन एवं डॉ भी विस्मित थे शांति और सहजता से कष्ट को भूल जाने का जो धर्ममय संबल था , वह पूज्य श्री अणु आप ही थे ” यह पत्र श्री कमलेश भाईचोपड़ा के साथ गुरुदेव के पास भेजा । वे जब गुरु दर्शन कर थांदला वापस आए तब गुरुदेव ने उसी पत्र के कोने पर लिखकर भेजा कि
” असाता का उदय जाना , कर्म का कर्जा चुका , धर्म की भावना बनी रही , यह उत्तम है , आगे भी धर्म भावना बढ़ती रहे , वीतराग प्रभु के मार्ग पर आगे बढ़ते रहें ” सचमुच ही हमने आचार्य उमेश के रूप में एक सच्चा गुरु पाया था । उनके अनुपम उपकार है , जिससे कभी उपकृत नहीं हो सकते , हर प्रश्न का समाधान , हर कठिनाई को पार पाने का निदान , अध्यात्म की दूरदृष्टि वर्तमान के वर्धमान , मेरे अनुभव में मैंने उन्हें साक्षात ब्रह्म की तरह पाया । अंत में कही पर पढ़ी कुछ पंक्तियां गुरुदेव को श्रद्धा सुमन के रूप में अर्पित करती हूं कि …
गुजरने को तो हजारों काफिले निकले
नक्शे जमीन पर कदम बस आप ही के पड़े
ए मौत आखिर तुझसे कैसी नादानी हुई
फूल जो चुना तूने गुलशन में वीरानी हुई
आप जैसे महान संत की विरुदावली हम कैसे गाएं ,
आपके
जीवन की महती कथा को शब्दों में कैसे प्रस्तुत करें ,
बस पलकों में आंसू के पुष्पों से याद करें और
ह्रदय के मंदिर में आपकी पुण्य स्थापना करें ।

सीमा शाहजी 

सीमा शाहजी की कविता : माता-पिता के ...

सीमा शाहजी
थांदला जिला झाबुआ
मो 7987678511