मोदी राज की योजनाओं पर दीमक चढ़ाता बाबु तंत्र

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भारतीय गांवों से लेकर अमेरिका यूरोप तक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की कुछ कल्याणकारी योजनाओं की सराहना होती रही हैं| गरीबों के लिए मुफ्त इलाज की आयुष्मान योजना हो या शौचालय, मकान, रसोई गैस से लेकर डिजिटल दस्तावेज, किसानों को खाद बीज के लिए बैंक खातों  में सीधे अनुदान राशि और बच्चों के लिए नई शिक्षा सुविधाओं का कोई विरोध नहीं कर सकता| लेकिन ऐसी योजनाओं की सफलता की दीवारों को भ्रष्ट अथवा निकम्मे बाबु तंत्र(Babu Tantra)

कुछ देशी विदेशी कम्पनियाँ और कुछ मंत्रियों की ढिलाई दीमक की तरह खोखला कर रही हैं| सबसे बड़ा प्रमाण सरकारी खजाने में सेंध लगाने में अग्रणी आय कर विभाग की डिजिटल व्यवस्था है| भ्रष्टाचार के आरोपों से सने आय कर विभाग के घटिया पोर्टल का है| जब खजाना ही खाली होगा, तो योजनाओं का समय पर क्रियान्वयन कैसे हो सकेगा?

प्रधान मंत्री पर निजी स्वार्थ, भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लग सकते, लेकिन निचले स्तर पर गड़बड़ियां होने पर गलियां और बदनामी तो उनकी भाजपा सरकार को ही झेलनी पड़ेगी| कोरोना महामारी  से निपटने में भारत सरकार के प्रयासों की तारीफ हुई| लेकिन कुछ राज्यों के नेताओं, अधिकारियों, अस्पतालों, रिकार्ड मुनाफा कमाने वाली फार्मा कंपनियों और लेब दुकानों ने जनता को धोखा देने और लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी| पराकाष्ठा का आलम यह है कि राजधानी दिल्ली में इस समय भी ऐसी लेबोरेटरीज चल रफही हैं, जो कोई टेस्ट लिए बिना कोरोना का कोई असर न होने का सर्टिफिकेट जारी कर रही हैं, ताकि लोग यात्राएं कर सकें या अपने बिलों का भुगतान सरकारी विभागों या निजी कपनियों से ले सकें| यह संभव है कि लेब की जांच पड़ताल की जिम्मेदारी दिल्ली की केजरीवाल सरकार की हो, लेकिन इसका पूरा रिकार्ड तो केंद्र सरकार ही रखती है| नाक के नीचे इतनी भयानक गड़बड़ी से कोरोना महामारी को फैलने का खतरा बढ़ने वाला है|

मोदी सरकार स्वच्छता अभियान के लिए कई शहरों को हर साल पुरस्कार देती है| लेकिन दिल्ली में एक नहीं चार पांच सत्ता व्यवस्था के बावजूद गन्दगी के लिए राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जा सकते हैं| एक ही इलाके का कोई हिस्सा दिल्ली सरकार का है, दूसरा हिस्सा नगर निगम का है, तीसरा हिस्सा दिल्ली विकास प्राधिकरण का है और दो किलोमीटर आगे नई दिल्ली नगर पालिका का है| सो गन्दगी के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराकर नेता और बाबु फंड में हेरा फेरी करते रहते हैं| दुनिया के किस देश की राजधानी में इतने समानांतर विभाग शहर की सफाई, बिजली, पानी, जमीन- मकान का टैक्स लेने का काम करते होंगे? दिल्ली में केवल एक नगर निगम और महानगर परिषद् होने पर शहर अधिक सुविधाएं पाता था और नेता अधिकार जिम्मेदार होते थे| जमीन मकान के अधिकार और टैक्स से हर साल कई हजार करोड़ की कमाई वाले डी डी ए में डिजिटल क्रांति के प्रचार पर करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है, लेकिन विकास भवन के अहाते में दलालों की दुकानों  पर किसी सरकारी जांच एजेंसी की नजर नहीं जाती| आप जरा अंदाज लगाइये, किसी सामान्य नागरिक का फ्लेट तीस साल पहले बना है, दो पीढ़ी रहने लगी है लेकिन उसके फ्री होल्ड के कागज डी डी ए से निकलवाने के लिए अहाते में बैठा दलाल पचास से साठ हजार रूपये लेता है| डिजिटल पोर्टल इतना ख़राब है कि प्राधिकरण के अधिकारी कर्मचारी स्वयं रोना रोते हैं या कई इसी बहाने ऊपरी कमाई कर लेते हैं| कम्प्यूटर क्रांति भले ही हो गई, हजारों फाइलें मिटटी के साथ हर कोने में भरी पड़ी हैं| कबाड़ा घर की तरह जर्जर अलमारियों को बेचने के लिए महीनों से फाइलें घूम रही हैं| मान लीजिये दलाल से बचकर तीन चार महीने में कोई प्राधिकरण से अपने फ्लेट, मकान आदि का आधिकारिक कागज़ पा ले तो इसी अहाते में दिल्ली की मोदी सरकार के अफसर बाबु से प्रमाणीकरण की फीस जमा करवाने के लिए टिड्डी दल की तरह कब्ज़ा जमाए दलालों की सेवा किये बिना आपको दस्तावेजों पर अंगूठा लगाने फोटो खिंचवाने के लिए खून पसीना बहाना होगा| आपकी संपत्ति करने का प्रमाण पत्र हो या सालाना नगर निगम का टैक्स हो, क्या भारत का हर सामान्य नागरिक, बुजुर्ग स्त्री पुरुष इंटरनेट, डिजिटल के ज्ञाता हो गए हैं? उन्हें साइबर दुकानें खोजनी पड़ती है, धक्के खाने पड़ते हैं, दफ्तरों में ऑटोमेटिक एक्सचेंज हैं, इसलिए अधिकांश समय मशीन जवाब देती है? फिर यह हाल अकेले दिल्ली का नहीं है, कई शहरों का है| क्या ऐसी गड़बड़ियों को कोई एक एजेंसी और कुछ अफसर नहीं सुधार सकते हैं?

मोदी सरकार के प्रचार तंत्र और शिक्षा संस्कृति पर विशेष महत्व की बहुत चर्चा होती है| लेकिन संस्कृति मंत्रालय के तहत राजाराम मोहन रॉय पुस्तकालय प्रतिष्ठान ने पिछले दो वर्षों के दौरान देश के पुस्तकालयों में भिजवाई ही नहीं, क्योंकि संस्थान ने बजट के बावजूद पुस्तकों की खरीदी ही नहीं की| इसी संस्थान से विभिन्न राज्यों के सरकारी पुस्तकालयों को पुस्तकें और अनुदान जाता है| दिलचस्प बात यह है कि स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की “मन की बात” के हिंदी अंग्रेजी में प्रकाशित पांच खंड भी संस्थान ने किसी पुस्तकालयों को नहीं भेजे| जबकि संस्थान के अध्यक्ष अंग्रेजी संस्करणों के संपादक थे और पुस्तक सूचना प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग ने छापी है| मंत्रालय ने सन्दर्भ सामग्री की तरह भी किसी पत्रकार या लेखक को नहीं भेजी होगी| बहरहाल, बाबु तंत्र(Babu Tantra) का कमाल है कि अफसर ही प्रसार भारती, लोक सभा, राज्य सभा टी वी चैनल चला रहे हैं| लोक सभा राज्य सभा चैनल के विलय की प्रक्रिया साल भर से जारी है| प्रसार भारती का अध्यक्ष पद महीनों से रिक्त है, ताकि अफसर अपने ढंग से गाड़ी चलाते रहें| देश दुनिया में किसान आंदोलन और सरकार द्वारा किसानों के लिए कई लाभकारी कदम उठाने की चर्चा है, लेकिन प्रसार भारती के किसान चैनल को क्या कहीं महत्व मिला? मीडिया पर दबाव वाली सरकारी  छवि में क्या यह माना जा सकता है कि प्रधान मन्त्र्ती और उनका सचिवालय अपनी बातों और काम को पहुँचाने पर कोई अंकुश लगाते  हैं? समस्या मंशा  की  नहीं व्यवस्था को झकझोरने और बाबुओं(Babu Tantra) और डिजिटल के भूत से सामान्य जन को राहत देने की है| हाल में मंत्रालयों में कुछ बदलाव हुए हैं| थोड़ी आशा की जा सकती है कि बाबु तंत्र में भी सुधार किया  जाएगा|

(लेखक आई टी वी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं)

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।