इंदौर कीर्ति राणा।शहर की फुटपाथ पर पैदल सड़क नापते एक दीवाने संपादक को देखा जा सकता है। पहले लूना पर चला करते थे, वह भी कब तक साथ देती, अब सालों से पैदल हैं। सफेदी झलकाती दाढ़ी, बेतरतीब से बाल, कंधे पर लटका झोला, झोले में एक छाता, पानी की बोतल, कुछ कोरे कागज, खुद के द्वारा संपादित कुछ लघु पत्रिका, मटमैला शर्ट-पैंट, पैरों में जर्जर नजर आती चप्पल-ये पहचान है विक्रम कुमार की।जो नहीं जानते, वो सामान्य राहगीर खब्ती समझने की भूल कर सकते हैं लेकिन इंदौर के सांस्कृतिक-साहित्य जगत से लेकर देशभर के साहित्यकार विक्रमकुमार को इसी अंदाज में वर्षों से देख रहे हैं।अंग्रेजी की वो लाईन ‘वन मेन आर्मी’ इन पर पूरी तरह फिट बैठती है।
इनका एक परिचय और है-देश के दो सुप्रसिद्ध भाषा शास्त्री इंदौर से हुए हैं एक डॉ देवेंद्र जैन और दूसरे डॉ नेमीचंद जैन। भीली हिंदी कोष, भील : भाषा-साहित्य- संस्कृति पर नेमीचंद जैन ने खूब काम किया। साथ ही ‘तीर्थंकर’ लघु पत्रिका भी निकाली, इन्हीं से पुत्र विक्रम कुमार के मन में भी लेखन-सृजन का अंकुरण हुआ, बाकी दो पुत्रों में चक्रम कुमार पत्रकारिता से और विश्वास फोटोग्राफी से जुड़े हैं।नेमीचंद जैन तो रहे नहीं, उनकी विरासत को अपने दम पर, अपनी शर्तों पर जिंदा रखे हुए हैं, विक्रम यह भी नहीं चाहते कि उन्हें पिता के नाम-काम से ही पहचाना जाए।
विक्रम कुमार से बात करने का मतलब है मन ही मन यह सोचना कि बोलने का मौका मिलेगा भी या नहीं। कहने-सुनाने को उनके पास इतना कुछ रहता है कि सामने वाले को अपनी बात कहने के लिए वक्त झपटना पड़ता है।व्यवहार पल में नरम, अगले पल अंगारा। गलती से किसी ने दादा पुकार दिया तो बस उसकी शामत आ गई समझो, इनका तर्क यह कि हम लोग स्मार्ट सिटी में रहने वाले हैं सही उच्चारण सर होना चाहिए, ये दादा तो गंवई शब्द लगता है।वे यह नहीं चाहते कि कोई उनके घर का पता जाने, फिर घर आए और बिना मतलब दस तरह की सलाह दे।
प्रकृति से और किताबों से प्रेम है। किताबों के लिए ही एक कमरा किराए से ले रखा है, और जहां ये रहते हैं वहां खूब सारे पौधे लगा रखे हैं।विजिटिंग कार्ड आधारित इंटरव्यू की श्रृंखला कर रहे हैं लेकिन खुद मोबाइल भी नहीं रखते। तर्क यह कि मोबाइल और विजिटिंग कार्ड-पता आदि बदलता रहता है-व्यक्ति नहीं बदलता।बिना बेल्ट की घड़ी जेब में रखते हैं कारण भी जान लीजिए घड़ी समय देखने के लिए होती है, दिखाने के लिए नहीं। अमृता प्रीतम साहित्य के दीवाने हैं, उनकी तीन दर्जन से अधिक किताबें सहेज रखी हैं।
शहर के साहित्य जगत में अपने मुताबिक हमेशा कुछ अनूठा करते रहते हैं इसलिए उदारमना लोग इन्हें पसंद करते हैं।कवि के हम कदम श्रृंखला शुरू की तो शहर के अधिकांश कवि कविता सुनाने आए। कथाकार से मिलिए में नामचीन कथाकारों से बातचीत, उपन्यासकार से मिलिए में भी लेखकों को बुलाया। मिजाज के ऐसे कि एक कार्यक्रम में श्रोता कवि राजकुमार कुंभज को वहां से उठने का आदेश देकर मुख्य अतिथि वाली कुर्सी पर बैठने को कहा, उनका भाषण खत्म हुआ तो कह दिया यहां से उठिए अपनी पुरानी जगह पर बैठ जाइए।
पहले ‘ऋतुचक्र’ पत्रिका निकालते रहे, तकनीकी कारणों से ‘ऋतुपर्ण’ शुरु की, पत्रकार (स्व) राजेंद्र माथुर से लोकार्पण कराया।यात्रावृत-सफरनामा की पांच पुस्तिकाएं निकाल डालीं।हार्ड बाउंड में साक्षात्कार विधा की दस प्रतियां निकाल चुके हैं ।‘समय’ पत्रिका का संपादन, जिसका 25वां अंक प्रकाशित होना है।श्वेत-श्याम साक्षात्कार में शहर के छायाकारों से बात कर रहे हैं।इन दोनों त्रैमासिक पत्रिकाओं के साथ ही पत्रकारिता के विभिन्न संदर्भ, प्रसंग, समसामयिक-ऐतिहासिक सामग्री, साहित्यिक पत्रिकाओं का संग्रहण, परिशिष्ट पत्रकारिता, अखबारों के विशेषांक-आध्यात्मिक साहित्य के संचयन के साथ पुस्तकों की समीक्षा और स्वयं के काम की समीक्षा भी करते चलते हैं।