ने की वह खबर पूरे देश को स्तब्ध और क्रुद्ध करने वाली थी। क्योंकि वह देश की राजधानी नई दिल्ली से आई थी। जो खुलासा हुआ, उससे मन में यही सवाल उठा कि देश में यह हो क्या रहा है? शिक्षा में मनमाफिक रंग घोले ही जा रहे हैं, लेकिन विदयार्थियों को भी हिंदू मुसलमान में बांटा जा रहा है। और वो भी नन्हें मासूमों को, जिनके लिए दुनिया एक कोरी स्लेट की तरह है। जो किया गया, बच्चों को भी धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर बांटने और उनमें धार्मिक दुराग्रहों का जहर भरने की निकृष्ट कोशिश थी। खबर यह थी कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित वजीराबाद इलाके के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में कक्षाअों में बच्चों को हिंदू और मुस्लिम के आधार पर बांट दिया गया है। कहा गया कि छात्रों की ज्यादा संख्या को देखते हुए स्कूल में कक्षाअोंके कुछ नए सेक्शन बनाए गए हैं। जब मीडिया में यह मामला उछला तो शुरूआती जांच के बाद नगर निगम ने स्कूल के इंचार्ज चंद्रभान सिंह सेहरावत को निलंबित कर दिया तथा मामले की विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं। उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनएमसीडी) के मेयर आदेश गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हमने इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है, जो भी दोषी पाया जाएगा दंडित किया जाएगा। एमसीडी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती, सभी समान हैं।'
उधर दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्कूल प्रमुख को छात्रों को सेक्शन आवंटित करने में अपनाई प्रक्रिया का ब्यौरा देने का निर्देश दिया। आयोग ने यह भी पूछा कि किस क्लास में कितने बच्चे हैं और अलग-अलग कक्षाओं में अलग-अलग धर्म के बच्चों को बैठाने की वजह क्या है? साथ ही आयोग ने बच्चों के सेक्शन पूर्ववत करने के लिए भी कहा है। इस बीच दिल्ली सरकार ने राज्य के शिक्षा निदेशक को मामले की जांच के लिए कमेटी गठित करने तथा भविष्य में ऐसी घटना को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश भी दिए।
इस मामले पर राजनीति भी शुरू हो गई। दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया कि “बीजेपी शासित एमसीडी स्कूल में हिन्दू-मुसलमान बच्चों को अलग-अलग कमरों में बिठाने की यह हरकत देश के संविधान के खिलाफ सबसे बड़ी साजिश है।‘
यकीनन यह साजिश ही लगती है, क्योंकि बच्चों को उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर अलग’अलग सेक्शन में बिठाना उनके कोमल मन में साम्प्रदायिकता का जहर बोने का विचार किसी दुष्ट और अंध विचार से ही उपज ही सकता है। अब तक जो बातें सामने आई हैं, उनके नुसार इस स्कूल के प्रिसिंपल जुलाई में ही छुट्टी पर चले गए थे। उसके बाद प्रभार चंद्रभान सिंह के हाथ में आया। चंद्रभान ने कक्षाअो में छात्रों की अधिक संख्या का बहाना लेकर उन्हें धर्म के आधार पर अलग-अलग सेक्शन्स में बांट दिया। मतलब यह कि हिंदू-हिंदू और मुस्लिम-मुस्लिम बच्चे एक साथ रहें। दोनो के बीच कोई अपनत्व न पनपे। कहते हैं कि स्कूल के दूसरे शिक्षकों ने इस कार्रवाई का विरोध किया तो चंद्रभान ने उन्हें यह कहकर चुप करा िदया िक आपका काम पढ़ाना है। सेक्शन आवंटन नहीं है। बताया जाता है कि इस स्कूल में हर क्लास के चार सेक्शन हैं और स्कूल में कुल 625 बच्चे पढ़ते हैं।
इसी स्कूल में पांचवी के बी सेक्शन में पढ़ने वाले छात्र प्रिसं ने मासूमियत से मीडिया को बताया कि 'एक दिन मैडम ने हमसे कहा कि तुम्हारे सेक्शन बदलेंगे। हिंदू बच्चे अलग क्लास में पढ़ेंगे और मुसलमान अलग। इसके बाद मेरा दोस्त हमजा हमसे अलग हो गया। उसे दूसरे मुस्लिम बच्चों के साथ 'डी' सेक्शन में भेज दिया गया। पहले हम सब साथ पढ़ते थे। अब केवल लंच टाइम में ही साथ खेल पाते हैं।‘ प्रिंस को नहीं पता कि यह सब क्यों किया गया। उधर स्कूल इंचार्ज की दलील है कि नए सेक्शन पूरी तरह से धर्म आधारित नहीं है। ये मिक्स्ड हैं। लेकिन पड़ताल पर पाया गया कि इसमें आंशिक सचाई ही है। इस स्कूल में जो हुआ, वह बच्चों के अभिभावकों को भी हक्का बक्का करने वाला है, क्योंकि िकसी पेरेंट ने यह मांग नहीं रखी कि हमारे बच्चों को दूसरे धर्मो के बच्चों से अलग रखा जाए, उन्हें अलग ट्रीटमेंट िदया जाए। क्योंकि बच्चे अाखिर बच्चे हैं।
मुद्दा यह है कि बच्चों के कोमल मन को धर्म के आधार पर विभाजित करने के पीछे कौन- सी सोच और मानसिकता है ? दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसके लिए भाजपा पर निशाना साधा है। लेकिन दिल्ली के तीनो नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है और ये निगम दिल्ली में करीब 1800 सौ स्कूल संचालित करते है। और किसी स्कूल में ( अब तक तो) ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है। इसलिए यह आरोप पचने वाला नहीं है कि भाजपा के कारण ही वजीराबाद के स्कूल में बच्चों का धर्म आधारित बंटवारा किया गया। तो फिर किस सोच, दबाव अथवा दुष्प्रेरणा से ऐसा किया गया? अभी यह साफ नहीं हुआ है कि इंचार्ज प्रिंसिपल ऐसा करके क्या सिद्ध करना चाहता था, किसे खुश करना चाहता था? किस नए इंडिया की नींव रखना चाहता था? क्योंकि आज देश में समाज और संस्थाअोंका धार्मिक बंटवारा तो होने लगा है, लेकिन स्कूली बच्चों में भी यह विष ऐसे घोला जाएगा, यह सोचना भी मुश्किल है। लेकिन चंद्रभान जैसों ने वह भी कर िदखाया। अभी तक यही माना जाता रहा है कि बच्चे, वो चाहे किसी धर्म, प्रांत, समाज या जाति के हों, बच्चे ही होते हैं। ये वो फूल हैं जिन्हें अपने नैसर्गिक रंगों के साथ ही खिलने देना चाहिए। बाद में भले वो किसी रंग में रंगें। इंचार्ज चंद्रभान का क्या होता है, यह देखने की बात है, वरना जर-जरासी बात में ‘देशद्रोह’ सूंघने वालों को बालपन से ही नफरत और विभाजन के बीज बोने वालों को असल ‘देशद्रोही’ कहने में संकोच नहीं होना चाहिए। और फिर शिक्षक का काम तो शिक्षा और संस्कार देना है। प्रेम भाईचारे, समन्वय अौर समरसता का पाठ पढ़ाना है न कि देश के एक और ऊर्ध्व विभाजन की गहरी नींव डालना। चंद्रभान जैसे शिक्षक बच्चों में भी ‘हिंदुस्तान-पाकिस्तान’ बनाकर क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या यह कि स्कूल में मुस्लिम बच्चों को ‘बहिष्कृत’ के रूप में रहना है? या फिर हिंदू बच्चों का मुस्लिम बच्चों के साथ खेलना भी ‘कांच से नाजुक’ हिंदू धर्म को तड़का देगा?
वजीराबाद के स्कूल में जो घटा है वह पूरी तरह अवांछित और पूरी तरह से अस्वीकार्य है। अगर यह किसी धर्म की रक्षा भी है तो उसका तरीका बेहद घटिया और कुत्सित मानसिकता से भरा है। शिक्षा जैसे क्षेत्र से ऐसे लोगों को तत्काल बेदखल करने की जरूरत है। गनीमत मानिए कि इस हरकत का किसी ने समर्थन नहीं किया। करना भी नहीं चाहिए। क्योंकि जिस नीयत से यह सब किया गया, वो आजादी के पहले की वही सोच है, जब रेलवे स्टेशन पर पानी भी ‘हिंदू पानी और मुस्लिम पानी’ के नाम से बिका करता था। बोतलबंद पानी के युग में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है।