Defeat in UP: योगी समर्थक नहीं मानते अपने नेता को जिम्मेदार!

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Defeat in UP: योगी समर्थक नहीं मानते अपने नेता को जिम्मेदार!

गोरखपुर (UP) से रंजन की खास रिपोर्ट

भाजपा के अंदर तथा बाहर योगी बनाम मोदी लड़ाई में योगी समर्थक अपने नेता को प्रदेश में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार नहीं मान रहे. उनके अनुसार पूरा चुनाव मोदी फैक्टर पर लड़ा गया. अगर जीत मिलती तो श्रेय मोदी को जाता अतः हार के लिए भी मोदी फैक्टर ही जिम्मेदार है.

अगर भाजपा पूरे देश में 63 सीट घटकर 240 पर सिमट गई है तो इसका सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहा और वो भी राम मंदिर बनने के बाद तथा संविधान का अनुच्छेद 370 ‘हटने’ के बाद.

एक योगी समर्थक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “यह सबको पता है कि पूरा चुनाव कैसे लड़ा गया. जहां योगी को चुनाव के केंद्रबिंदु से दूर रखा गया तथा मोदी ही पार्टी के एकमात्र पोस्टर बॉय थे, प्रत्याशियों का चयन तथा चुनाव प्रचार की रणनीति सब दिल्ली के नेताओं खासकर अमित शाह के हाथ में था. यही कारण था कि धरातल पर बदल रहे जातिगत समीकरणों से पार्टी हाई कमांड या तो अनभिज्ञ था या इसको गंभीरता से समझ नहीं पाया.”

वस्तुतः योगी समर्थकों में अमित शाह के विरुद्ध भारी नाराजगी है. उनका मानना है कि यह सब अमित शाह के कारण ही हुआ कि राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा से लेकर चुनावों तक शाह और उनकी टीम ने योगी को कोई महत्व नहीं दिया. योगी का दर्जा सिर्फ अन्य स्टार प्रचारकों तरह ही था.

इसके अतिरिक्त योगी के समर्थकों में इस बात की भी नाराजगी है कि लोक सभा चुनावों के बाद योगी को सीएम पद से हटाने की बात को हवा दी गई तथा जब ब्रजभूषण शरण सिंह ने भरे मंच से एक मंत्री को भावी मुख्यमंत्री के रूप में घोषित किया तब भी पार्टी ने इसका कोई खंडन नहीं किया. इस कारण पार्टी के अंदर तथा सरकार में नेतृत्व को लेकर एक अनिश्चितता का वातावरण बन गया जिसका खामियाजा ये हुआ कि योगी के कट्टर समर्थन निराश हो गए तथा उनको ये लगा कि अगर पार्टी की जीत का मतलब योगी की सीएम पद से विदाई है.

पार्टी के अंदर अनिश्चितता तथा बदलते जातिगत समीकरण का असर योगी आदित्यनाथ के होम टर्फ पर भी दिखाई दिया जहां पार्टी को कुछ सीट पर हार का सामना करना पड़ा. जाहिर है यहां मोदी फैक्टर भी बेअसर रहा.

जहां पार्टी गोरखपुर रीजन में योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर सीट को बचाने में सफल रही वहीं उसे आसपास के क्षेत्रों में महाराजगंज, कुशीनगर, बांसगांव, डुमरियागंज और देवरिया सीट पर विजय मिली. पर पार्टी को बस्ती और संत कबीर नगर में हार का सामना करना पड़ा.

प्राचार्य, श्री मुरलीधर भागवत लाल महाविद्यालय, मथौली बाजार, कुशीनगर डॉ अरुण श्रीवास्तव का कहना है, “उत्तर प्रदेश में मोदी और योगी दोनों फैक्टर ने काम किया है पर लगता है बहुत जगहों पर प्रत्याशी चयन में भूल हुई है जैसे अयोध्या जहां बताया जाता है कि स्थानीय प्रत्याशी के व्यवहार से जनता इतनी नाराज थी कि राम मंदिर और एयरपोर्ट सहित बहुत सारे विकास निर्माण के बाद भी जनता भाजपा को वोट देने को तैयार नहीं थी.”

डॉक्टर अरुण ने कहा, “भाजपा शासित राज्यों में प्रत्याशी चयन में मुख्यमंत्री की भूमिका जरूर होनी चाहिए. वैसे, भाजपा के लिए ये आत्मचिंतन और आत्ममंथन का समय है.”

पूर्व विभागाध्यक्ष, शिक्षा शास्त्र विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्ववि्यालय, गोरखपुर डॉक्टर सुषमा पांडेय ने कहा कि उनके विश्लेषण के अनुसार स्थानीय मुद्दे चुनाव में हावी हो गए और संविधान को लेकर को अफवाह फैली उसको काउंटर करने में पार्टी खासकर उत्तर प्रदेश में विफल रही.