सिविक सेंटर के 22 प्लाटों की रजिस्ट्री शून्य करने के फैसले पर उच्च न्यायालय की रोक!

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सिविक सेंटर के 22 प्लाटों की रजिस्ट्री शून्य करने के फैसले पर उच्च न्यायालय की रोक!

नेता प्रतिपक्ष शांतिलाल वर्मा सहित अन्य पार्षदों ने इसे गलत ठहराते हुए निगम को आर्थिक हानि होने का दिया था हवाला!

Ratlam : बीते 7 मार्च को हुए नगर निगम के साधारण सम्मेलन में परिषद द्वारा सिविक सेंटर के 22 प्लाटों की रजिस्ट्री शून्य करवाने के निर्णय पर उच्च न्यायालय की इंदौर बेंच से रोक लग गई हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रणय वर्मा ने शुक्रवार को दिए आदेश में अगली सुनवाई तक रोक लगाने के साथ ही नगर निगम को नोटिस जारी करने के भी निर्देश दिए हैं। साथ ही निगम को 4 सप्ताह में जवाब देने को भी कहा है। इससे भाजपा बहुमत वाली नगर निगम परिषद को झटका लगा है।

बता दें कि नगर निगम ने दिसंबर 2023 में अलग-अलग तारीखों में विवादास्पद सिविक सेंटर के 26 प्लाटो की रजिस्ट्री करवाई थी। स्टे मिलने के बाद अब निगम के जवाब से आगे की कार्रवाई तय होगी।

आपको बता दें कि नगर निगम की योजना क्रमांक 71 सिविक सेंटर में वर्ष 1998 में आवंटित 22 प्लाटों की रजिस्ट्री निगम प्रशासन ने 2023 व जनवरी 2024 में करवाई थी। 7 मार्च को सम्मेलन में भाजपा पार्षद रत्नदीपसिंह राठौर, नेता प्रतिपक्ष शांतिलाल वर्मा सहित पक्ष व विपक्ष के अन्य पार्षदों ने इसे गलत ठहराते हुए निगम को आर्थिक हानि होने का हवाला दिया। सर्वसम्मति से रजिस्ट्री शून्य कराने की कार्रवाई के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था, सम्मेलन में आयुक्त एपीएस गहरवार ने परिषद को बताया था कि हाईकोर्ट के 2009 में हुए फैसले के बाद अवमानना याचिका लगने पर रजिस्ट्री करानी पड़ी। सिविक सेंटर की जमीन नजूल की होने से नजूल विभाग में 3 करोड़ 98 लाख 50 हजार 799 रुपए जमा कराए गए। प्लाट की रजिस्ट्री पर निगम को करीब 2.5 करोड रुपए मिलें।

मामले में राज्य शासन ने तत्कालीन आयुक्त एपीएस गहरवार को निलंबित कर दिया था। वहीं रजिस्ट्री कराने वाले उपायुक्त विकास सोलंकी से परिषद ने अविश्वास प्रस्ताव पारित कर अतिरिक्त शाखाओं का कार्य ले लिया था।

निगम का कानूनी पक्ष कमजोर हुआ!

कानूनी जानकार परिषद के फैसले को शुरू से ही कमजोर बता रहे थे। नगर निगम से प्लाट खरीदने वाले 22 खरीदारों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर बताया कि पूर्व में उच्च न्यायालय में लगाई याचिका पर हुए आदेश व शासन से मिली स्वीकृति के बाद निगमायुक्त ने सुनवाई कर रजिस्ट्री करवाई है। इसमें परिषद को इस तरह के निर्णय का अधिकार ही नहीं है।

निगम के जवाब पर रहेगी नजर!

इधर कानूनी जानकारों का भी कहना हैं कि रजिस्ट्री शून्य करने की प्रक्रिया सिविल कोर्ट से ही हो सकती हैं। निगमायुक्त ने जो रजिस्ट्री कराई थी उसमें पूर्व में उच्च न्यायालय में हुए निर्णय को आधार बनाया गया हैं, ऐसे में अब नोटिस मिलने के बाद निगम द्वारा पेश किए जाने वाले जवाब पर सबकी नजर रहेगी।