Is Congress Against Hindutva:राहुल गांधी का हिंदुत्व पर प्रहार फांस न बन जाये ?

798

Is Congress Against Hindutva:राहुल गांधी का हिंदुत्व पर प्रहार फांस न बन जाये ?

वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का विश्लेषण

जो लोग कल तक राहुल गांधी को पप्पू,नासमझ या अराजनीतिक व्यक्ति समझते थे, गत तीन माह से राहुल की बयानबाजी और आचरण से उनके जाले साफ हो जाने चाहिये। लोकसभा में 1 जुलाई को बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने जो भाषण दिया,उसने तो जैसे एटम बम ही फोड़ दिया हो। ऐसा उनके समर्थक,विपक्षी साथी और भाजपा विरोधी तबका तो समझता ही है। भाजपा के लिये यह चुनौती भी है और अवसर भी। देश में आने वाले समय के लिये भाजपा व कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष के बीच महादंगल के लिये अखाड़ा सज चुका है, लाल मिट्‌टी बिछाई जा चुकी है। आशा करें कि इसमें पसीना तो बहे, लेकिन मिट्‌टी का रंग और लाल न हो तो बेहतर।

images 2024 07 02T184534.842

बीते कुछ समय से लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी की भाषण शैली खास ढांचे में ढली साफ नजर आती है। वे जो बोलते हैं,वैसा सोचते भी हों, जरूरी नहीं । अलबत्ता बोलते हैं पूरी आक्रामकता के साथ और उस पर टिके भी रहते हैं। याने उन्हें यह बताया गया है और उन्होंने भी मान लिया है कि लड़ाई आर-पार की लड़ना होगा। इसमें इस पार दलित,पिछड़े,अल्प संख्यक हैं तो दूसरी तरफ हिंदू, हिंदुत्व,भाजपा,संघ है। अब इस बहस से कोई मतलब नहीं कि दलित,पिछड़े भी तो हिंदू ही हैं। लोकसभा चुनाव में प्रहार की इस धार के एक हद तक असरकारी होने के बाद राहुल गांधी को यह बता दिया गया हो कि धार और वार लगातार जारी रखना ही सफलता की सीढ़ी साबित होगा।

अब बात कर लेते हैं राहुल के उस बयान की,जिसने इस समय फिजा में अंगारे उछाल रखे हैं। राहुल ने दमदारी के साथ कहा कि जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे हिंसा और नफरत फैलाने में लगे रहते हैं। इस बयान का वही अर्थ है, जो उन्होंने बताया है। संसद में भी बाद में या सड़क पर,टीवी बहस में किसी सफाई का मतलब नहीं रह जाता है। यह अनायास बोली हुई बात नहीं है, क्योंकि हिंदू या हिंदुत्व का कोई संदर्भ तो था ही नहीं । वे भाजपा,संघ पर हल्ला बोलना चाहते थे, लेकिन न जाने किस लमतरानी में वे हिंदुत्व पर आक्षेप कर बैठे। यह भी संभव है कि यही उनका एजेंडा भी रहा हो। अब तीर निशाने पर लगा या गलत जगह जा गिरा,यह आने वाले समय में तय होगा। ऐसा लगता है कि यह तीर चिड़िया की आंख की बजाय मधु मक्खी के छत्ते पर जा लगा है। इसके जहर बुझे दंश से कौन प्रभावित होगा, देखना होगा।

images 2024 07 02T184634.900

वैसे राहुल एंड कंपनी ने 2029 तक के अपने एजेंडे को साफ कर दिया है। उन्होंने यह मान लिया है कि वे हमेशा संविधान बदलने का डर दिखाकर और आरक्षण समाप्त करने का हौवा खड़ा कर दलित-पिछड़ों की सहानुभूति हासिल नहीं कर पायेंगे या स्थायी नहीं रख पायेंगे, तब उन्होंने सीधे हिंदुत्व को निशाने पर लिया। इससे उन्हें मुस्लिमों के थोकबंद वोट फिर से मिलने की उम्मीद है, जो अभी प्रांतवार अलग-अलग दलों में बंट गया है। राहुल का यह दांव अकेल भाजपा को निपटाने तक सीमित नहीं है। इस बहाने वे अपने उन प्रांतीय सहयोगियों के वोट बैंक में भी सेंधमारी करना चाहते होंगे, जो स्थानीय कारणों से भाजपा के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ हो जाता है। जैसे, तृणमुल कांग्रेस,वाईआरएस,डीएमके,राष्ट्रवादी कांग्रेस,आम आदमी पार्टी,राजद वगैरह। संभवत यही सोचकर राहुल गांधी ने खालिस निष्णात जुआरी वाला ब्लाइंड गेम खेला है।

images 2024 07 02T184540.903

अब यह तो आने वाले समय में स्पष्ट होगा कि राहुल का वार सधा हुआ था या बूमरेंग बनकर उन पर आ लगा। भाजपा औऱ् संघ चुप बैठने वालों में से तो नहीं हैं और न ही यह मुद्दा खामोशी ओढ़ लेने वाला है। राहुल ने हिंदुत्व के मर्म पर ही चोट कर दी है कि उसे मानने वाले हिंसा व नफरत फैलाते हैं। अब सोशल मीडिया पर एक बार फिर से उन घटनाओं,संदर्भों की बाढ़ आ जायेगी, जिसमें यह बताया जायेगा कि स्वतंत्रता के बाद से किस तरह से कांग्रेस और नेहरू,गांधी परिवार ने अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया,कैसे हिंदू हितों की बलि दी, कैसे वक्फ बोर्ड को सर्व शक्तिमान बनाया,कैसे देवस्थानों के चढ़ावे से मदरसे,मस्जिदें,मजारें रोशन की जाती हैं,वजीफे बांटे जाते हैं। शाहबानो प्रकरण से लेकर तो 2013 में वक्फ कानून में संशोधन की परतें फिर से खोली जायेंगी।

मुद्दा यह भी है कि राहुल गांधी ने क्या इस बहाने अगले पांच साल के लिये एक नई बहस का बीजारोपण किया है ? क्या इस तरह से वे यह दिखाना चाहते हैं कि वे तमाम सफाई को एक तरफ रखकर और जनेऊ,त्रिपुंड,धोती धारण कर चुनाव के दौरान हिंदू मंदिरों की परिक्रमा को पूरी तरह से तिलांजलि देकर केवल मुस्लिम हकों की बात करना चाहते हैं। क्या वे जातिवाद के नासूर को खाद-पानी देकर पोषित करना चाहते हैं? क्या यह उनकी खुद की दिमागी फितरत है या किन्हीं ऐसी विदेशी ताकतों से संचालित हो रहे हैं, ,जो किसी भी हाल में न तो भारत को आने वाले समय में तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने देना चाहते हैं, न स्थिर सरकार वाला देश रहने देना चाहते हैं, न जातिगत सौहार्द कायम रहने देना चाहते हैं, न भाजपा का शासन रहने देना चाहते हैं,न ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बरदाश्त कर पा रहे हैं?

सवाल और शंकायें हिमालय जितनी विशाल हैं और तसल्ली एक टीले जितनी। देश में बनने वाले विषैले वातावरण के लिये दोष तो किसे भी दे दिया जायेगा, लेकिन भुगतेगी तो वह जनता जनार्दन,जिसने इस चिंगारी को नहीं भड़काया। अब यह भी संभव है कि हिंदू धर्माचायों,संस्थानों की तरफ से राहुल व गांधी परिवार का मंदिर,धर्म स्थलों पर प्रवेश वर्जित कर दिया जाये। उनके खिलाफ देश भर में हिंदू संगठन विरोध प्रदर्शन छेड़ दें। भाजपा उन्हें संसद व सड़क पर घेरे । इतना तो तय है कि इस मामले को अब ठंडा तो नहीं पड़ने दिया जायेगा। जो हिंदू समाज 2024 के लोकसभा चुनाव में बंटा हुआ या दुविधाग्रस्त लगा, वह संभवत इस घटनाक्रम के बाद काफी हद तक पास आ जाये। यदि ऐसा कर पाने में भाजपा,संघ सफल हुए तो जो नतीजे 2024 में नहीं मिल पायें, वे 2029 में हाथ लग जायें। यह अभी दूर की कौड़ी नजर आती है, लेकिन संघ प्रणीत भाजपा इसे दूर तक अवश्य ले जायेगी।

Author profile
thumb 31991 200 200 0 0 crop
रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।