Komagatamaru Case : आज से ठीक 110 वर्ष पूर्व 23 May 1914 की घटना, जो युवा पीढ़ी के लिए जानना जरूरी है!

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Komagatamaru Case : आज से ठीक 110 वर्ष पूर्व 23 May 1914 की घटना, जो युवा पीढ़ी के लिए जानना जरूरी है!

इतिहास में दर्ज भारतीयों की जीवटता का प्रेरणादायी प्रसंग

कनाडा से सुदेश गौड़ की विशेष रिपोर्ट

आज से ठीक 110 वर्ष पूर्व कोमागाता मारू की साहसिक घटना का हिस्सा बने 376 भारतीयों का सबसे असाधारण पहलू उनके द्वारा दिखाई गई बहादुरी, देश की प्रतिष्ठा के लिए उनका दृढ़ निश्चय और मानवता के इस अंतर महाद्विपीय आंदोलन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करना था। गदर पार्टी के सिद्धांत से प्रेरित कोमागाता मारू की इस यात्रा ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत की आजादी के आंदोलन को प्रेरणा दी थी।

4 अप्रैल 1914 को सिंगापुर में कार्यरत व्यवसायी बाबा Gurdit Singh (गुरदीत सिंह) के नेतृत्व में पंजाब के 376 यात्रियों के साथ भापशक्ति से चलने वाले जापानी समुद्री जहाज ‘कोमागाता मारू’ Hong Kong से रवाना हुआ था। यह जापानी जहाज कोयला ढोने का काम करता था जिसे बाबा गुरदीत सिंह ने खरीद लिया था। इस जहाज में बैठाकर 340 सिख, 24 मुसलमान, 12 हिंदुओं को वेंकूवर रवाना किया था। ठीक 110 साल पहले 23 मई, 1914 को Vancouver के तट पर जब कोमागाता मारू जहाज पहुंचा तो किसी को भी उतरने नहीं दिया गया। जहाज को दो महीने तक वहीं खड़ा रहना पड़ा, क्योंकि Canada की सरकार ने स्थानीय कानूनों का हवाला देकर भारतीयों को वहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।

बात यही नहीं रुकी, अधिकारियों की शह पर जहाज पर खाना और पानी पहुंचाने पर भी रोक लगा दी गई थी। दो महीने तक 376 लोगों को जहाज में उपलब्ध रसद और पानी पर ही किसी तरह जीवन बसर करना पड़ा था। 2 महीने बाद कनाडा सरकार ने 24 लोगों को, जो जुर्माना राशि दे सके थे, उतरने की अनुमति दे दी थी। शेष 352 यात्रियों के साथ इस जहाज को जबरन समुद्र में धकेल दिया ताकि वापस भारत चला जाए।

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प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने के कारण जहाज को रास्ते में कहीं रुकने भी नहीं दिया गया। पांच महीने समंदर में भटकने के बाद 27 सितंबर, 1914 को Budge Budge Ghat, Kolkata पर जैसे ही ये जहाज पहुंचा तो अंग्रेजों ने यात्रियों को क्रांतिकारी बताकर गोलियां चला दी। इस घटना में 19 लोगों की मौत हो गई थी। अंग्रेज टीम उस जहाज के मालिक गुरदीत सिंह को गिरफ्तार करने पहुंची थी। गुरदीत सिंह गदर पार्टी से जुड़े थे।

इस पार्टी की स्थापना 1913 में अमेरिका और कनाडा में रहने वाले भारतीयों ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए की थी। हिंसक झड़प के दौरान कुछ लोग भाग गये लेकिन शेष को गिरफ्तार कर लिया गया। गुरदीत सिंह भागने में सफल रहे और 1922 तक छिपकर बचते रहे। महात्मा गांधी ने उनसे आग्रह किया कि वे एक ‘सच्चे देशभक्त’ होने के नाते आत्मसमर्पण कर दें। उन्होंने ऐसा ही किया और उन्हें पांच वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया था। इस तरह कोमागाता मारू घटना ने गदर आंदोलन के उदय में उत्प्रेरक का काम किया था।

इस प्रकरण का विवरण स्काटिश लेखक James Campbell जेम्स कंपबेल की पुस्तक “द पालिटिकल ट्रबल इन इंडिया 1907-1917” में भी मिलता है।

1952 में भारत सरकार ने बज बज के पास कोमागाता मारू शहीदों के लिए एक स्मारक बनवाया। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री Jawahar Lal Nehru ने किया था। स्मारक को स्थानीय रूप से पंजाबी स्मारक के रूप में जाना जाता है और इसे आसमान की ओर उठते हुए किरपान के रूप में बनाया गया है।

कनाडा के प्रधानमंत्री ने मांगी माफी

कनाडा के प्रधानमंत्री Justin Trudeau जस्टिन ट्रूडो ने 20 मई, 2016 को कोमागाता मारू प्रकरण के लिए अपनी संसद House of Commons में आधिकारिक माफी मांगी थी। संसद में पेश कनाडा के प्रधानमंत्री का माफीनामा इस प्रकार है –

आज यह जानते हुए कि कोई भी शब्द कोमागाता मारू के उन यात्रियों द्वारा अनुभव किए गए दर्द और पीड़ा को पूरी तरह से मिटा नहीं सकता है, मैं उस समय लागू कानूनों के लिए सरकार की ओर से ईमानदारी के साथ माफी मांगता हूं, जिसने कनाडा को यात्रियों की दुर्दशा के प्रति उदासीन रहने की अनुमति दी।

कोमागाता मारू घटना कनाडा के अतीत पर एक दाग है। हमने अपने अतीत की गलतियों से सीखा है और सीखते रहेंगे। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन्हें कभी न दोहराया जाए।”
– जस्टिन ट्रूडो, कनाडा के प्रधानमंत्री

इस कानून के तहत की गई थी कार्रवाई

कनाडा में आज भारतीय मूल के 18 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन आजादी से पहले वहां भारतीयों को बसने की इजाजत नहीं थी। उस वक्त की कनाडा सरकार ने अफ्रीकी और एशियाई मूल के लोगों को यहां आने से रोकने के लिए कानून बना रखा था। यह कानून था कंटिन्यूअस पैसेज एक्ट मसलन अगर समुद्र में बगैर रुके कोई जहाज कनाडा के तट पर पहुंचता है तभी उसे कनाडा में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। कोमागाता मारू में यात्रा कर रहे 376 भारतीयों को इसी आधार पर रोका गया था कि उसमें भारतीय मूल के लोग हांगकांग से चले जहाज के माध्यम से वैंकूवर पहुंचे थे। अंग्रेजों ने इन लोगों को वहां उतरने नहीं दिया और वापस भारत भेज दिया।

बदला लेकर मेवा सिंह हुए शहीद

इस घटना में 19 सिखों की मौत ने कनाडा के पहले सिख क्रांतिकारी मेवा सिंह को उद्वेलित कर दिया था। उन्होंने इसका बदला लेने की ठानी। मौका पाते ही मेवा सिंह ने कोमागाता मारू जहाज को वैंकूवर समुद्र तट पर रोककर रखने वाले इमिग्रेशन इंस्पेक्टर विलियम चार्ल्स हॉपकिन्स की हत्या कर दी थी। इस कृत्य के लिए उन्हें 11 जनवरी 1915 में फांसी पर लटका दिया था। राजनीतिक हत्या के लिए कनाडा में फांसी की सजा पाने वाले वे पहले सिख थे।

कोमागाता मारू घटना पर कनाडा सरकार द्वारा माफी मांगने के बाद मेवा सिंह को भी कनाडा में सम्मान दिया गया। कनाडा के स्थानीय गुरुद्वारों भी अब उनके चित्र लगाए जा रहे हैं। पहले उनके बारे में कनाडा में रहने वाले बहुत कम भारतीयों को पता था और पूर्ववर्ती भारत सरकार ने भी कभी उनकी भूमिका का जिक्र नहीं किया।

2014 में भारत सरकार ने कोमागाता मारु घटना के 100 साल पूरे होने पर 5 और 100 रुपये के सिक्के जारी किए थे। बीते कुछ सालों में मेवा सिंह पर कनाडा में की गई रिसर्च और स्थानीय अदालती रिकॉर्ड से उनके बारे में काफी जानकारी हासिल की गई है।मेवा सिंह, कनाडा के स्थानीय सिख समुदाय के जाने माने चेहरे थे। सितंबर,1914 में मेवा सिंह के साथियों भाग सिंह और बादान सिंह का कत्ल कर दिया गया था। इनके कत्ल में भी हॉपकिन्स का हाथ था। उसने अपने एक जासूस बेला सिंह के हाथों ये कत्ल करवाए थे ताकि काम भी हो जाए और उसका नाम भी सामने न आए।

1880 से कनाडा आने लगे थे सिख

कनाडा में भारत से सिख 1880 से ही पहुंचना शुरू हो गए थे।पंजाब से कनाडा बसने में सिखों को काफी संघर्ष भी झेलने पड़े हैं। 1900 में अंग्रेजों के इशारों पर कनाडा सरकार के अंग्रेज अधिकारी लगातार सिखों को परेशान कर रहे थे। 20वीं शताब्दी के आरंभिक दिनों में एशिया के प्रवासियों को कनाडा और अमेरिका में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ब्रिटिश सरकार के आदेश पर ही कनाडा ने कामागाता मारु जहाज से भारतीय यात्रियों को उतरने नहीं दिया था। कनाडा सरकार को शक था कि भारत से आने वाले सिख अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे आजादी के आंदोलन में सक्रिय हैं।