Krishna Updesh: जानिये क्या है धर्म और पाप

अधर्म का एक क्षण सारे जीवन के कमाये धर्म को नष्ट कर सकता है.

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Krishna Updesh: जानिये क्या है धर्म और पाप

डॉ. रूचि बागड़देव की रिपोर्ट 

Krishna Updesh: श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण के उपदेशों का वर्णन है. गीता के ये उपदेश श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए थे. गीता में दिए उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और मनुष्य को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं. गीता की बातों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति को खूब तरक्की मिलती है. गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है.इसी तरह जीवन में  गृहस्थ लोगों को भी श्री कृष्ण ने सदैव जीवन का दर्शन समझाया है. उन्होंने हमें हमारे कर्म और उसका फल भी समझाया है. उनकी हर बात तर्क पूर्ण थी. कहा गया है कि इस संसार में कृष्ण से अच्छा प्रेमी, कृष्ण से अच्छा मित्र, कृष्ण से बेहतर दार्शनिक, कृष्ण से श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कृष्ण से बेहतर वक्ता, कृष्ण से बेहतर शिक्षक-मार्गदर्शक, कृष्ण से बेहतर योद्धा नहीं हुआ है. कृष्ण ने अपनी पत्नी को महाभारत युद्ध के परिणामों के कारण समझाये हैं, हमें संसार में रहते हुए अधर्म पर मौन नहीं रहना चाहिए और एक पल का कर्म भी जीवन भर की तपस्या नष्ट कर देता है, इसलिए कर्म के पहले उसका परिणाम अवश्य सोचना चाहिए. आइये पढ़ते हैं  इस घटना का सार ——-

जब श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध पश्चात् लौटे तो रोष में भरी रुक्मिणी जी ने उनसे पूछा..,
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बाकी सब तो ठीक था, किंतु आपने द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया?
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श्री कृष्ण ने उत्तर दिया- ये सही है कि उन दोनों ने जीवन पर्यंत धर्म का पालन किया किन्तु उनके किए एक पाप ने उनके सारे पुण्यों को हर लिया.
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वो कौन से पाप थे?
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श्री कृष्ण ने कहा :- जब भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था तब ये दोनों भी वहां उपस्थित थे, और बड़े होने के नाते ये दुशासन को आज्ञा भी दे सकते थे,

किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया….
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उनके इस एक पाप से बाकी, धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई.

Mahabharat: इस तरह महाभारत में हुआ था द्रौपदी चीर हरण का शूटिंग, बनवाई गई थी 250

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रुक्मिणी जी ने पूछा- और कर्ण? वो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था, कोई उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया उसकी क्या गलती थी?
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श्री कृष्ण ने कहा, वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा…..
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किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में आहत हुआ भूमि पर पड़ा था तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी माँगा,
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कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया….!!!
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इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ पुण्य नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया…।

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अक्सर ऐसा होता है कि हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है और हम कुछ नहीं करते.
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हम सोचते हैं कि इस पाप के भागी हम नहीं हैं, अगर हम मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो सच्ची बात बोल तो सकते हैं परंतु हम ऐसा भी नहीं करते ऐसा ना करने से हम भी उस पाप के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं।
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आपके अधर्म का एक क्षण सारे जीवन के कमाये धर्म को नष्ट कर सकता है।

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डॉ. रूचि बागड़ देव हैदराबाद