कानून और न्याय: हिंदी में कानूनी शिक्षा एवं विधिक तंत्र में उसका उपयोग

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कानून और न्याय: हिंदी में कानूनी शिक्षा एवं विधिक तंत्र में उसका उपयोग

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हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने विधिक शिक्षा एवं विधिक तंत्र में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषा के उपयोग के बारे में बात की। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने नव स्थापित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में हिंदी माध्यम से कानूनी शिक्षा प्रदान करने की वकालत की, ताकि उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ छात्र वकील बन सकें। डाॅ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज के पहले शैक्षणिक सत्र का उद्घाटन करने के बाद प्रयागराज में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैं प्रयागराज में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने की अपील करता हूँ कि शिक्षा का माध्यम हिंदी हो, ताकि उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ छात्र उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले सर्वश्रेष्ठ वकील बन सकें।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इन छात्रों में से कई जिला न्यायपालिका में शामिल होंगे। इनमें से कुछ राजनीति में शामिल होंगे। अन्य वही करेंगे जो वे करना चाहते हैं। लेकिन वे हमारे राज्य की महान संस्कृति और ऐतिहासिक परंपरा को उज्जवल रखेंगे। उन्होंने कहा कि समकालीन कानूनी शिक्षा प्रणाली केवल कुछ अंग्रेजी बोलने वाले शहरी छात्रों का पक्ष लेती है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पांच राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (एनएलयू) के आंकड़ों से पता चलता है कि लिंग क्षेत्र के संदर्भ में स्कूलों की संरचना और अंग्रेजी भाषा के प्रवाह से जुड़ा प्रीमियम और छात्रों के बीच अंग्रेजी भाषा के ज्ञान की कमी विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों की पूर्ण भागीदारी और एकीकरण में बाधा के रूप में कार्य करती है। उन्होंने कहा कि देशभर में राष्ट्रीय विधि महाविद्यालय की स्थापना ने छात्रों की गुणवत्ता के स्तर को बढ़ाया है, लेकिन ये पहुंच और प्रभावी सामाजिक योगदान में सीमित हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता समान होनी चाहिए। प्रौद्योगिकी और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद के इस युग में, सर्वोच्च न्यायालय ने 1950 के दशक से 2024 तक सर्वोच्च न्यायालय के लगभग 36,000 फैसलों का अनुवाद किया है।
ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि हम चाहते हैं कि प्रत्येक नागरिक जो अंग्रेजी में कुशल नहीं है, उसे भी निर्णयों की पहुंच मिलनी चाहिए। यह एक मुफ्त सेवा है और एक गुणवत्ता भी। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इंटर्न, मूट कोर्ट और प्रतियोगिताओं जैसे अवसर भी पारंपरिक रूप से कुलीन और अंग्रेजी बोलने वाले पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के पक्ष में तैयार किए गए हैं। इसलिए काॅलेज परिसर सांस्कृतिक रूप से विविध छात्र आबादी के लिए होने चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें एक गतिशील स्थान प्रदान करना चाहिए जहां विचारों और विश्वासों के मतभेद आपस में जुड़ें।
यह पहली बार नहीं है जब विधिक शिक्षा में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा के अभाव की बात की गई है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने भी न्यायप्रणाली के हिन्दी एवं प्रांतीय भाषाओं में अपने फैसलों को उपलब्ध कराने की एक अनूठी पहल की थी। इसी कड़ी में नीति आयोग एवं अन्य विभागों के द्वारा साथ मिलकर तैयार एक रिपोर्ट की माने तो सेन्ट्रल गर्वनमेंट के अफसरों की भर्ती में भी हिन्दी के ज्ञान की जरूरत को जोड़ा जाना चाहिये। यह रिपोर्ट कहती है कि सेवा में शामिल होने से पहले केंद्र सरकार के कर्मचारियों के हिन्दी के ज्ञान की आवश्यकता है।
देश की स्वतंत्रता के बाद, केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिन्दी की प्रगति और प्रचार के लिए कई योजनाएं तैयार कीं। इन योजनाओं के तहत देश में हिन्दी शिक्षा पर जोर देने का कार्यक्रम शुरू किया गया था। हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिलने से हिन्दी शिक्षा के कार्य को वांछित गति भी मिली। जब देवनागरी लिपि वाली हिन्दी संघ की राजभाषा बन गई तो इसका देश में शिक्षा परिदृष्य पर प्रभाव पड़ना तय था। केंद्र सरकार के अधिकारियों को हिन्दी शिक्षा प्रदान करना सरकार का कर्तव्य बन गया।
राजभाषा पर संसद की समिति (सीपीओएल) ने राष्ट्रपति को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट के विभिन्न अध्यायों में देश में शिक्षा में हिन्दी को बढ़ावा देने के संबंध में अपनी सिफारिश दी हैं। समिति द्वारा राष्ट्रपति को फरवरी 1989 में सौंपी गई रिपोर्ट के तीसरे भाग में समिति ने शैक्षणिक संस्थानों में हिन्दी शिक्षा की जरुरत, इंजीनियरिंग और मेडिकल काॅलेजों की प्रवेश परीक्षाओं में हिन्दी माध्यम का विकल्प, तीन भाषाओं के फार्मूले के कार्यान्वयन, केंद्र सरकार के अधिकारियों को हिन्दी पढ़ाना, पत्राचार पाठ्यक्रमों के माध्यम से हिन्दी पढ़ाना, दूरदर्शन /आकाशवाणी द्वारा हिन्दी पाठों का प्रसारण आदि की सिफारिश की। इन सिफारिशों पर राष्ट्रपति के आदेश भी जारी किए गए हैं। इसी प्रकार समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के पांचवें भाग में हिन्दी माध्यम से विधि के अध्ययन के संबंध में महत्वपूर्ण सिफारिशें की गई थीं। इस सिफारिश के अनुसार देश के सभी विश्वविद्यालयों और अन्य विधि संस्थानों में भी हिन्दी माध्यम से स्नातक और स्नाकोत्तर स्तर पर विधि के अध्ययन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
समिति की रिपोर्ट के तीसरे भाग की अनुशंसा के अनुसार राजभाषा विभाग ने मई 1992 में आवष्यक निर्देश जारी किए थे कि सभी प्रकार के प्रशिक्षण चाहे वे अल्पकालिक हों या दीर्घकालिक, हिन्दी माध्यम से दिए जाने चाहिए ताकि हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कर्मचारी अपना मूल आधिकारिक कार्य हिन्दी में आसानी से कर सकें। अपनी रिपोर्ट के आठवें भाग में समिति ने सिफारिश की थी कि बहुत तकनीकी विषयों को छोड़कर केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों और अन्य संस्थानों के प्रशिक्षण केंद्रों में हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। समिति की इस सिफारिश को संशोधन के साथ स्वीकार कर लिया गया कि सेवा में प्रशिक्षण मुख्य रूप से हिन्दी में और द्वितीयक रूप से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के मिश्रित माध्यम में दिया जाना चाहिए।
वर्तमान में, हिन्दी को केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित केंद्रीय विद्यालयों और राज्य सरकार के में केवल आठवीं कक्षा तक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। केंद्र सरकार के अधिकारियों का समय-समय पर स्थानांतरण किया जाता है और उन्हें देश में अलग-अलग स्थानों पर तैनात किया जाता है। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष रूप से स्थापित सभी केंद्रीय विद्यालयों में हिन्दी की अनिवार्य शिक्षा के संबंध में एक स्पष्ट और प्रभावी नीति होनी चाहिए। मानव संसाधन और विकास मंत्रालय को इस संबंध में कुछ पहल करनी चाहिए। यह अधिक महत्वपूर्ण है।
क्योंकि, मानव संसाधन और विकास मंत्री ने हाल ही में कहा है कि भविष्य में देश के प्रत्येक जिले में केंद्रीय विद्यालय स्थापित किए जाएंगे। यदि केंद्रीय विद्यालय, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूल, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सभी स्कूल और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा संचालित सभी स्कूल दसवीं कक्षा तक अनिवार्य रूप से हिन्दी पढ़ाते हैं, तो हमारे पास निश्चित रूप से एक ऐसी पीढ़ी होगी जो अपनी संबंधित सेवा में शामिल होने के बाद हिन्दी में अपने शत-प्रतिशत आधिकारिक कार्य को पूरी तरह से निष्पादित करने में सक्षम होगी।
आज केंद्रीय विद्यालयों में 9वीं कक्षा से हिन्दी एक वैकल्पिक विषय है। देश के लगभग सभी स्कूलों में ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। इसलिए समिति का सुझाव है कि केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी स्कूलों और सीबीएसई द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूलों में दसवीं कक्षा तक हिन्दी पढ़ाई जानी चाहिए। लेकिन, किसी भी स्तर तक हिंदी का ज्ञान आवश्यक नहीं है। सरकारी सेवा में भर्ती के समय किसी भी स्तर पर हिंदी का ज्ञान अनिवार्य नहीं किया गया है, ऐसे परिदृश्य में यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे सेवा में शामिल होने के बाद हिंदी में काम करेंगे। ऐसी स्थिति केवल एक कार्यालय में ही नहीं बल्कि कई कार्यालयों में भी है।

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विनय झैलावत

लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं