कानून और न्याय: तीन कानून- 1भारतीय न्याय व्यवस्था को बदलने वाले तीन कानून

271

कानून और न्याय: तीन कानून-1भारतीय न्याय व्यवस्था को बदलने वाले तीन कानून

देश के आपराधिक कानून को बदलने वाले तीन अहम कानून भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का रास्ता साफ हो गया है। एक बार लागू होने पर ये कानून भारतीय दंड संहिता, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता एवं साक्ष्य विधान की जगह ले लेंगे। अब कोई अभियुक्त आरोप मुक्त होने की अपील साठ दिनों के भीतर ही कर सकता है। पहले एक प्रकरण में अगर 25 अभियुक्त हैं तो वो एक के बाद एक अपील दायर करते थे। इस वजह से दस साल तक मुकदमा शुरू ही नहीं होता था। अब साठ दिनों के अंदर ही न्यायाधीश को इस पर सुनवाई भी करनी है। ज्यादा से ज्यादा 120 दिनों में केस ट्रायल पर आएगा। प्ली बारगेनिंग के लिए नए कानून में तीस दिनों का समय दिया गया है। अब आरोप तय होने के तीस दिनों के अंदर अगर किसी ने गुनाह मान लिया, तो ही सजा कम होगी। ट्रायल के दौरान कोई दस्तावेज पेश करने का प्रावधान नहीं था। लेकिन अब तीस दिनों के भीतर सभी दस्तावेज पेश करना अनिवार्य होगा। इसमें कोई देरी नहीं की जाएगी।

यह तीनों बिल पहली बार अगस्त में हुए संसद के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन सदन में रखे गए थे। इसके बाद इन्हें संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया था। समिति ने सितंबर से अक्टूबर के बीच छह दिनों से अधिक बैठक की। इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान विपक्ष के कुल 97 सांसद अनुपस्थित रहे। इन्हें सदन से निलंबित किया गया था। इन नए फौजदारी कानूनों को राज्यसभा में पारित होने के बाद इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई है। अब कैबिनेट इसके लागू होने की तारीख तय करेगी। इनमें अंग्रेजों के समय का राजद्रोह कानून खत्म किया गया है। नाबालिग से रेप और माॅब लिंचिंग जैसे अपराधों में फांसी की सजा दी जाएगी। आतंकवाद की व्याख्या अब तक किसी भी कानून में नहीं थी। पहली बार सरकार द्वारा आतंकवाद की व्याख्या की है। सरकार ने राजद्रोह को देशद्रोह में बदला। गृह मंत्री ने सदन में कहा कि मॉब लिंचिंग घृणित अपराध है। इस कानून में माॅब लिंचिंग अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। इन कानूनों में व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सबके साथ समान व्यवहार रूपी तीन सिद्धांत के आधार पर कानून लाये गए हैं।

अब भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 में राजद्रोह से लेकर फर्जी खबरों और माॅब लिंचिंग तक में सजा के प्रावधान बदले गए हैं। आईपीसी में धारा 124 ए में राजद्रोह को लेकर प्रावधान किया गया है। इस कानून को निरस्त कर दिया है। भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह की जगह ‘देश द्रोह लाया गया है। इसकी व्यापक परिभाषा दी गई है। देशद्रोह में प्रावधान किया गया है कि देश के खिलाफ कोई नहीं बोल सकता है और इसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। भारतीय न्याय संहिता में धारा 150 में ‘देश द्रोह’ से जुड़ा प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि ‘‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य‘‘ को कानून के दायरे में लाया जाएगा। बीएनएस में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को सात साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। साथ ही जुर्माना भी लगाया गया है।

अब शादी के नाम पर गुमराह करने या पहचान छिपाकर शादी करने पर दस साल तक की सजा होगी। धोखाधड़ी या झूठ बोलकर किसी महिला से शादी करने या फिर शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता में खंड 69 में शादी के नाम पर धोखाधड़ी करने के बारे में प्रावधान है। शादी के नाम पर ‘‘धोखेबाजी‘‘ या पहचान छिपाकर शादी करने को अपराध घोषित किया है। ‘‘लव जिहाद‘‘ से निपटने के लिए सजा तय की गई है। खंड 69 कहता है कि जो कोई भी धोखे से या महिला से शादी करने का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाता है और बाद में शादी करने से मुकर जाता है तो ऐसे मामले अपराधी की श्रेणी में आएंगे। दोषी को पुरानी धारा 375 में बलात्कार को, धारा 63 और 64 में परिभाषित किया गया है।

धारा 64 में इन अपराधों के लिए सजा बताई गई है। इसमें कोई बदलाव नहीं है। बलात्कार के मामलों में दोषी पाए जाने पर कम से कम दस साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। अठारह साल से कम उम्र की नाबालिग से गैंगरेप के मामले में अभी तक दोषी को बीस साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। नए कानून में धारा 70 (2) के तहत नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है। सौलह साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के लिए सजा बढ़ाकर तीस साल कर दी गई है। नाबालिग से दुष्कर्म में मौत की सजा का भी प्रावधान है। बारह साल से कम उम्र की नाबालिग से दुष्कर्म पर कम से कम बीस साल जेल की सजा या मौत की सजा होगी।

माॅब लिंचिंग के दोषी को फांसी की सजा तक देने की व्यवस्था की है। अभी तक माॅब लिंचिंग के लिए सजा का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था। भारतीय न्याय संहिता में माॅब लिंचिंग को लेकर धारा 101(2) में सजा का प्रावधान है। इसके तहत पांच या उससे ज्यादा लोग जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर हत्या करते हैं तो आजीवन कारावास से लेकर फांसी की सजा तक मिल सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में केंद्र से माॅब लिंचिंग पर एक अलग से कानून लाने पर विचार करने के लिए कहा था। नए कानून में हत्या के लिए धारा 101 में सजा का प्रावधान है। इसमें दो सब-सेक्शन हैं। धारा 101(1) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति हत्या का दोषी पाया जाता है तो उसे आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है। साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। इसी तरह गैर-इरादतन हत्या के मामले में पुलिस के पास जाने और पीड़ित को अस्पताल ले जाने पर कम सजा होगी। लेकिन हिट एंड रन यानी घटना के बाद पीड़ित को छोड़कर भागने पर दस साल की सजा होगी।

नए कानून में संगठित अपराध करने के प्रयास और संगठित अपराध करने के लिए सजा एक ही है। लेकिन इस आधार पर अंतर किया गया है कि मौत कथित अपराध के कारण हुई है या नहीं। मौत से जुड़े मामलों के लिए आजीवन कारावास से लेकर मृत्यु तक की सजा का प्रावधान है। लेकिन जहां अपराध के कारण मृत्यु नहीं होती है तो वहां अनिवार्य न्यूनतम सजा पांच साल निर्धारित की गई है। इसे आजीवन कारावास तब बढ़ाया जा सकता है। छोटे संगठित अपराध की एक अलग श्रेणी भी रखी गई है, जो चोरी, छीना-झपटी, धोखाधड़ी, अनाधिकृत टिकटों की बढ़ती बिक्री, सट्टेबाजी या जुआ, सार्वजनिक परीक्षा प्रष्न पत्रों की बिक्री को अपराध मानती है। इससे पहले जो विधेयक लाया जा रहा था, उसमें छोटे संगठित अपराध की परिभाषा में व्यापक शब्द का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन नए कानून में यह शब्द हटा दिया गया है। हालांकि, इस प्रावधान का उद्देश्य रोजमर्रा की पुलिसिंग में छोटे कानून और व्यवस्था के मुद्दों से निपटना है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह सामान्य चोरी आदि से कैसे अलग होगा।

—–