Lord Krishna:आइये जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ

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Lord Krishna:आइये जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नाम एवं उनके अर्थ

विक्रमादित्य सिंह
संजय धृतराष्ट्र को,भगवान श्रीकृष्ण को पुकारे जाने वाले विभिन्न नामों के अर्थ बताते हैं। महाभारत में ऐसे कुछ ही नामों के बारे में बताया गया है, परंतु विष्णु सहस्रनाम में, भगवान विष्णु के 1000 नाम हैं, उनका अर्थ जानना अत्यंत ज्ञानवर्धक है। आदि शंकराचार्य जी ने विष्णु सहस्रनाम पर भाष्य लिखा है, जो अध्ययन योग्य है। और भी अनेक संतों ने विष्णु सहस्रनाम का माहात्म्य बताते हुए, उस पर टिकाएं लिखी हैं। आख़िर श्रीकृष्ण और विष्णु तो हैं ही एक। विष्णु सहस्रनाम का सुमधुर गायन भारत रत्न श्रीमती एम एस सुब्बुलक्ष्मी द्वारा किया गया है जो नियमित श्रवण योग्य है।
भगवान के एक नामों के ही अनेक अर्थ हैं, तथा यहाँ पर जो नाम के अर्थ महाभारत उद्योगपर्व के यानसंधिपर्व के अध्याय ७० से लिए गए हैं, इसके अतिरिक्त अर्थ, अन्य ग्रंथों में उल्लेखित हो सकते हैं, इसमें संशय का कोई कारण नहीं होना चाहिए।
१ संजय कहते हैं भगवान समस्त प्राणियों के निवास स्थान है तथा वे सब भूतों में वास करते हैं इसलिए “वसु” हैं। देवताओं की उत्पत्ति के स्थान होने से और समस्त देवता उनमें वास करते हैं इसलिए उन्हें “देव” कहा जाता है, अतएव उनका नाम “वासुदेव” है।
२-विष्णु -बृहत अर्थात व्यापक होने के कारण वे “विष्णु” हैं। विक्रमण (वामन अवतार में तीनों लोकों को आक्रांत) करने के कारण भी विष्णु कहलाते हैं
३-माधव-मौन, ध्यान और योग से उन्हें जाना जाता है अथवा उनका साक्षात्कार होता है इसलिए उन्हें “माधव” कहा जाता है।
४-मधुहा-मधु शब्द से प्रतिपादित पृथ्वी आदि संपूर्ण तत्वों के उपादान एवं अधिष्ठान होने के कारण मधुसूदन श्रीकृष्ण को “मधुहा” कहा कहा गया है।
५-कृष्ण-कृष धातु सत्ता अर्थ का वाचक है और ण शब्द आनंद अर्थ का बोध कराता है, इन दोनों भावों से युक्त होने के कारण “कृष्ण”कहलाते हैं।
६-पुंडरीक- नित्य,अक्षय, अविनाशी एवं परम भगवद्धाम का नाम “पुंडरीक” है।
७-पुण्डरीकाक्ष-पुंडरीक में स्थित होकर जो अक्षतभाव से विराजते हैं अथवा पुंडरीक- कमल के समान उनके नेत्र हैं इसलिए उनका नाम “पुंडरीकाक्ष” है।
८-जनार्दन- दस्युजनों को त्रास( अर्दन या पीड़ा) देने के कारण उनको “जनार्दन” कहते हैं।
९-सात्वत-वे सत्य से ही कभी च्युत नहीं होते और न सत्त्व से अलग ही होते हैं, इसलिए सद्भाव के संबंध से उनका नाम “सात्वत” है
१०-आर्षभ -आर्षभ कहते हैं वेद को, उससे भासित होने के कारण भगवान का एक नाम “आर्षभ” है।
११-वृषभेक्षण-आर्षभ के योग से ही वे “वृषभेक्षण” कहलाते हैं। वृषभ का अर्थ है वेद, वही ईक्षण नेत्र के समान उनका ज्ञापक है इस व्युत्पत्ति के अनुसार “वृषभेक्षण” नाम की सिध्दि होती है।
१२-अज-भगवान् श्रीकृष्ण किसी जन्मदाता के द्वारा जन्मग्रहण नहीं करते हैं इसलिए “अज” कहलाते हैं।
१३- दामोदर-देवता स्वयं प्रकाश रूप होते हैं अतः उत्कृष्ट रूप से प्रकाशित होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण को उदर कहा गया है, और दम( इंद्रियसंयम) नामक गुण से सम्पन्न होने के कारण उनका नाम दाम है इस प्रकार दाम और उदर इन दोनों शब्दों के संयोग से वे “दामोदर” कहलाते हैं।
१४-ह्रषीकेश-भगवान हर्ष अर्थात सुख से युक्त होने के कारण ह्रषीक हैं और सुख ऐश्वर्य से सम्पन्न होने के कारण ईश कहे गए हैं इस प्रकार भगवान कृष्ण “ह्रषीकेश” नाम धारण करते हैं।
१५-महाबाहु- भगवान अपनी दोनों बाहों द्वारा इस पृथ्वी और आकाश को धारण करते हैं इसलिए उनका नाम महाबाहु है।
१६-अधोक्षज-श्रीकृष्ण कभी नीचे गिरकर क्षीण नहीं होते हैं अतः अधोक्षज कहलाते हैं ।
१७-नारायण -भगवान् नरों (जीवात्माओं) के अयन (आश्रय) हैं इसलिए उन्हें “नारायण” भी कहते हैं।
१८-पुरुषोत्तम- भगवान सर्वत्र परिपूर्ण हैं तथा सभी के निवास स्थान है इसलिए पुरुष हैं, और सभी पुरुषों में उत्तम होने के कारण उन्हें “पुरुषोत्तम” कहा गया है।
१९-सर्व-भगवान सत और असत सब की उत्पत्ति और लय के स्थान हैं तथा सर्वदा उन सबका ज्ञान रखते हैं इसलिए उन्हें “सर्व” कहते हैं।
२०-श्रीकृष्ण सत्य में प्रतिष्ठित हैं और सत्य उनमें प्रतिष्ठित है। भगवान सत्य से भी उत्कृष्ट सत्य हैं अतः उनका एक नाम “सत्य” भी है।
२१-जिष्णु- भगवान सब पर विजय पाते हैं अतः “जिष्णु” कहलाते हैं।
२२-अनन्त-भगवान शाश्वत, नित्य होने से अनंत हैं।
२३-गोविंद- गौओं (इन्द्रियों) के ज्ञाता और प्रकाशक होने के कारण “गोविंद” कहलाते हैं।
महाभारत शान्ति पर्व अध्याय ३२८, ३३७ में इसे गुण कर्मज अर्थात गुण और कर्मों के आधार पर नामों के निर्वचन की शैली कहा गया है। मत्स्य पुराण (अध्याय २४८) में भी श्रीकृष्ण, नारायण, गोविंद आदि सोलह नामों की ऐसी ही व्युत्पत्तियाँ कही गई है।वायु पुराण( अध्याय चार एवं पाँच) तथा लिंग पुराण (अध्याय७०) में भी यह शैली प्राप्त होती है, यद्यपि इन सूचियों में आए हुए नाम भिन्न हैं।
अंत में संजय कहते हैं कि अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले महाबाहु श्री कृष्ण कौरवों पर कृपा करने के लिए यहाँ पधारने वाले हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि संजय द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की विशेषताएँ बताने के बाद, धृतराष्ट्र को भगवान श्रीकृष्ण की महत्ता का अनुभव हुआ एवं वे उनके दर्शन के लिए उत्सुक होने लगे एवं उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की शरण ग्रहण करने की बात कही।
जय श्री कृष्ण।
विक्रमादित्य सिंह