झूठ बोले कौआ काटे: जरा याद इन्हें भी कर लो आजादी का श्रेय लूटने वालों

झूठ बोले कौआ काटे:  जरा याद इन्हें भी कर लो आजादी का श्रेय लूटने वालों

आजादी दिलाने का श्रेय लूटने की होड़ मची है। यकीनन कांग्रेस का बड़ा योगदान रहा है, पर केंद्र में मोदी सरकार के आने बाद कांग्रेस नेताओं को बताना पड़ता है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने आजादी दिलाई। वैसे, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस जैसी हस्तियों का भी नाम कभी-कभार ले लेते हैं। लेकिन, दिल्ली षणयंत्र के मास्टर माइंड और आजाद हिंद फौज के संस्थापक रासबिहारी बोस जैसों को कौन याद रखता है!

रास बिहारी बोस

आज ही के दिन अर्थात् 23 दिसंबर 1912 को वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर उस समय बम फेंका गया जब उनकी शोभायात्रा दिल्ली के चांदनी चौक से निकल रही थी। इस प्रयास में हाथी पर सवार वायसराय घायल हो गया, लेकिन उसका महावत मारा गया। दिल्ली षड़यंत्र केस, दिल्ली-लाहौर षडयंत्र केस या हार्डिंग बम केस नाम से चर्चित इस कांड के मास्टर माइंड रास बिहारी बोस ही थे।

शोभायात्रा पर बम फेंकने काम अमरेंद्र चटर्जी और बसंत कुमार विश्वास ने किया था। इस बम को वास्तव में रास बिहारी बोस ने ही बनाया था। इस घटना के बाद बोस देहरादून में अपने आफिस भारतीय वानिकी संस्थान में काम करने लगे और अंग्रेजों को अपनी भनक तक नहीं लगने दी।

भले ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार में नौकरी की लेकिन वह हमेशा भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे। 1905 में बंगाल के विभाजन से अंग्रेजों के प्रति उनके मन में और नफरत भर गई। वैसे तो वह पहले से ही क्रांतिकारियों के संपर्क में थे लेकिन बंगाल विभाजन के बाद क्रांतिकारियों की मीटिंगों में हिस्सा लेना तेज कर दिया। उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही बम बनाना सीखा था। जब मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने का प्लान बनाया गया तो रासबिहारी बोस ने ही बम बनाया था। हालांकि, खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने गलती से किंग्सफोर्ड की जगह किसी और को मार दिया और पकड़े गए। बाद में उनको फांसी दे दी गई। लेकिन रासबिहारी किसी तरह बंगाल से बचकर निकलने में कामयाब हो गए। वह देहरादून चले गए और पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारियों से भेंट की।

वायसराय को मौत के घाट उतारने की योजना नाकाम तो हो गई लेकिन इस हमले से ब्रिटिश शासन हिल गया। ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों पर शिकंजा कसने की हर संभव कोशिश की। लेकिन इस बार भी रासबिहारी बच निकलने में कामयाब रहे।

उधर, अमेरिका और कनाडा में रहने वाले पंजाबियों ने गदर पार्टी का गठन किया था। पार्टी के गठन का उद्देश्य भारत को स्वतंत्र कराना था। 1914 में अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीयों ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए भारत आना शुरू कर दिया। वे अपने साथ गोला-बारूद भी ला रहे थे। इस गदर आंदोलन की कमान रासबिहारी बोस को सौंपी गई। उन्होंने 21 फरवरी, 1915 को ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ बगावत की योजना बनाई थी। लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई जिसके बाद बगावत की योजना को टाल दिया गया। इसके बाद रासबिहारी बोस अंग्रेजों के निशाने पर आ गए। अंग्रेजों से बचने के लिए रासबिहारी जापान चले गए जहां उन्होंने क्रांति के नए अध्याय की शुरुआत की।

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 जापान में ब्लैक ड्रैगन सोसायटी नामक एक कुख्यात चरमपंथी गुट हुआ करता था। रास बिहारी और ब्लैक ड्रैगन सोसायटी के विचार समान थे। यहीं रासबिहारी बोस की भेंट सोसायटी के अध्यक्ष से हुई। सोसायटी ने जापान में बोस की सुरक्षा का प्रबंध किया। बोस ने जापान के चरमपंथियों को भारतीयों की समस्या से अवगत  कराया। रासबिहारी ने जापान में खुद को रबिंद्रनाथ टैगोर का दूर का रिश्तेदार बताया। वहां उन्होंने पत्रकार के तौर पर काम किया।

इधर, अंग्रेजों को पता चल गया था कि रासबिहारी बोस जापान में हैं। जापान से अंग्रेजों ने मांग की कि रासबिहारी बोस को उन्हें सौंप दे। जापान सरकार रासबिहारी को अंग्रेजों के हवाले करने वाली थी। लेकिन रासबिहारी का सौभाग्य था कि ब्रिटेन और जापान के रिश्तों में दरार आ गई। इसका कारण यह था कि अंग्रेजों ने जापान के एक जहाज पर हमला कर दिया था। जापान ने बोस को अंग्रेजों के हवाले करने से मना कर दिया।

इस दौरान, रासबिहारी ने जिस रेस्टोरेंट में शरण ले रखी थी, उसके मालिक ने अपनी बेटी तोशिको सोमा से बोस को शादी करने का प्रस्ताव दिया। जुलाई 1918 में यह विवाह संपन्न हो गया। इससे जापान से उनका एक रिश्ता कायम हो गया और 1923 में उन्हें जापान की नागरिकता मिल गई। तोशिको से बोस को दो बच्चे हुए। 1925 में तोशिको की न्यूमोनिया से मौत हो गई। पत्नी की मौत के बाद बोस राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने टोक्यो में इंडियन क्लब की स्थापना की और पश्चिमी उपनिवेशवाद की बुराइयों पर जमकर लिखा और भाषण दिया। इस दौरान वह जापानी भाषा लिखना-बोलना भी सीख गए।

रासबिहारी ने ए.एम.नायर के साथ जापानी शासन को भारत के बाहर भारत की आजादी के आंदोलन में मदद के लिए राजी किया। बोस ने 28 से 30 मार्च, 1942 तक टोक्यो में एक सम्मेलन का आयोजन किया। उसी सम्मेलन में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना का फैसला लिया गया।

सुभाष चंद्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज

उसी साल, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की दूसरी कॉन्फ्रेंस हुई। उसमें लीग में शामिल होने के लिए सुभाष चंद्र बोस को आमंत्रित करने का फैसला लिया गया। उस समय नेताजी बर्लिन में थे। मई 1943 में नेताजी पनडुब्बी से जापान पहुंचे। मुलाकात के बाद रास बिहारी ने ‘इंडियन इंडिपेंडेंस लीग’ का नियंत्रण और नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस के हवाले कर दिया। बाद में महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच मतभेद होने पर रासबिहारी ने इंडियन नेशनल आर्मी अर्थात् आजाद हिंद फौज का झंडा सुभाष चंद्र बोस को थमाया।

झूठ बोले कौआ काटेः

21 जनवरी 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति से पहले रास बिहारी बोस की टोक्यो में मृत्यु हो गई थी। जापान सरकार ने उन्हें किसी विदेशी को दी जाने वाली सर्वोच्च उपाधि ‘द सेकेंड ऑर्डर ऑफ मेरिट ऑफ द राइजिंग सन’ से सम्मानित किया। यही नहीं, जापान के सम्राट द्वारा उनके निधन पर जो सम्मान दिया गया वह और भी मर्मस्पर्शी है। भारतीय महान क्रांतिकारी के शव को ले जाने के लिए इंपीरियल कोच भेजा गया था। लेकिन हम, स्वतंत्र भारत में, ऐसे महान देशभक्त की राख तक को मातृभूमि वापस लाने की कौन कहे आजादी दिलाने का श्रेय लूटने के लिए आपस में ही लड़-मरने पर आमादा हैं।

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान हाल ही में राहुल गांधी ने कहा कि चीनी सैनिकों द्वारा एलएसी पर भारतीय सैनिकों की ‘पिटाई’ की जा रही है। इसके पूर्व, कर्नाटक के तुमकुरु में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कहा, “भाजपा स्वतंत्रता संग्राम में कहीं नहीं थी। भाजपा ऐसे तथ्यों को छिपा नहीं सकती। कांग्रेस और उसके नेताओं ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।” राहुल ने पुलवामा हमले को भी ‘होम ग्रोन टेररिज्म’ बताया था और भारत द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक पर सवालिया निशान खड़े किए थे।

बेशक, सरकार-भाजपा की कार्यशैली, कमियों और गलतियों को एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका में उजागर कीजीए, लेकिन मोदी-भाजपा विरोध में सेना और देश के जवानों का मनोबल तो मत तोड़िये। स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका पर गर्व कीजीए, लेकिन नेहरू-गांधी परिवार से इतर देश के लिए जिन सपूतों ने प्राणों की आहुति दी या सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उनको भी बराबरी का सम्मान दीजीए। देश रहेगा तभी आप-हम रहेंगे।

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वायसराय पर हमले के बाद उसी शाम रास बिहारी बोस ट्रेन पकड़कर देहरादून चले गए। हैरानी की बात है कि हमले के कुछ महीनों बाद वायसराय लॉर्ड हार्डिंग मेहमान के तौर पर देहरादून के भारतीय वानिकी संस्थान आए। उनके सम्मान में रास बिहारी ने एक शानदार रिसेप्शन भी रखवाया था। किसी को भनक तक नहीं थी कि वायसराय पर हुए हमले के पीछे इसी व्यक्ति का हाथ था। उन्होंने जापानी भाषा सीख ली तो पत्नी सोमा को बंगाली सिखा दी। सोमा प्रायः समारोहों में बंगाली साड़ी पहने हुए दिख जातीं थीं।