सम्राट विक्रमादित्य के यशस्वी कार्यकाल की याद ताजा करवाते मोहन यादव

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सम्राट विक्रमादित्य के यशस्वी कार्यकाल की याद ताजा करवाते मोहन यादव

निरुक्त भार्गव की विशेष रिपोर्ट

कोई 2200 साल पहले वृहत्तर भारत के जिन सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन थी और जिनके कार्यकाल के चर्चे आज भी पूरी दुनिया में विख्यात हैं, आज उसी धरा के जनप्रतिनिधि बनकर मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत मोहन यादव के कुछ फैसले और कदम इन दिनों सबका ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. राज्य शासन के कैलंडर से विदेशी आक्रांताओं के समय से चले आ रहे ‘शक संवत’ के स्थान पर उज्जैन से 2080 वर्षों से प्रचलित “विक्रम संवत” को मान्यता देकर उन्होंने एक नई शुरूआत की है. इतना ही नहीं, उज्जैन में 1 मार्च से लगातार 40 दिनों तक विक्रम उत्सव, उज्जयिनी विक्रम ट्रेड फेयर और रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव की मेजबानी कर उन्होंने विक्रमादित्य के उस कालखंड की याद ताज़ा कर दी है जिसमें समाज जीवन में चहूँओर स्पंदन और जीवन्तता थी.

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देश-विदेश के अनेक ग्रंथों और मालवी लोक कथाओं में सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल के सैंकड़ों किस्से भरे पड़े हैं. तत्कालीन समय में प्रचलित सिक्कों और मुद्राओं जैसे महत्वपूर्ण प्रमाण भी अब पुरातत्ववेत्ताओं को मिल चुके हैं. उज्जैन से 57 ईसा पूर्व यानी आज से 2024 वर्ष पहले ‘विक्रम संवत’ प्रारंभ हुआ था, जिसका नाम अब आम जन की जुबान से सुना जा सकता है. ये एक तथ्य है कि जिन विक्रमादित्य के नाम पर 1957 में उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, मगर बाद के चार दशक और उसके पूर्व के सैंकड़ों साल तक विक्रमादित्य उपेक्षित ही रहे.

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मोहन यादव आज से करीब 20 साल पूर्व जब अपने सार्वजनिक जीवन के पहले राजनीतिक पड़ाव पर उज्जैन विकास प्राधिकरण के चेयरमैन बनाये गए, तो उन्होंने बड़े-ही योजनाबद्ध ढंग से सम्राट विक्रमादित्य से सम्बंधित पहलुओं को उभारने के उपक्रम शुरू किए. विक्रम उत्सव उसकी बानगी था. एक दिन का ये आयोजन पहले तीन दिन का आयोजन हुआ, फिर पांच दिन का, फिर सात दिन का, बाद में नौ दिन का और अब तो ये पूरे 40 दिन का महायोजन के रूप में तब्दील हो चुका है. आगामी 9 अप्रैल को वर्ष प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा पर नए विक्रम सम्वत 2081 का आगाज़ होगा तो उसकी पूर्व रात्रि राम घाट जश्न की रौशनी में डूबा दिखाई देगा. भारतवर्ष के नए साल का जब उदय होगा तो उसी राम घाट पर लोग सूर्य को अर्ध्य देते दिखाई देंगे.

2020 में जब मोहन यादव उच्च शिक्षा मंत्री बनाये गए तो उन्होंने कालजयी नगरी उज्जयिनी के अति-प्राचीन वैभव को पुनर्स्थापित करने के जतन करने आरम्भ किए. 27 सितम्बर 2022 को उनके ही प्रयासों से उज्जैन में पहली बार राज्य कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई. उज्जैन के अधिष्ठाता महाकालेश्वर जी की तस्वीर को केंद्र में रखकर हुई इस बैठक के जरिये सम्राट विक्रमादित्य की तत्कालीन राजधानी को शासन स्तर पर स्वीकार्यता देने की चेष्टा की गई. विभिन्न अकादमिक साक्ष्यों में विस्तार से इस बात का वर्णन है कि विक्रमादित्य के राज-काज में ज्ञान-विज्ञान, व्यापार-व्यवसाय, कला-संस्कृति जैसे आयामों को बोल-बाला था. बजरिये 40 दिनी महायोजन, मुख्यमंत्री मोहन यादव शायद उसी पूर्व काल का मिनिएचर क्रिएट कर रहे हैं.

विक्रमादित्य महान् क्यों?

1- विदेशियों से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जीतने वाला महानायक.

2- इस शासकीय उपलब्धि के उपलक्ष्य में एक ऐसा संवत् चलाया जो आज दो हजार अस्सी वर्ष बाद भी जनता में सुप्रचलित है.

3- जनता में सर्वाधिक लोकमान्य राजा, सार्वभौम राजा.

4- लोकप्रिय, परन्तु कुशल प्रशासन का मानदंड स्थापित किया.

5- सर्वश्रेष्ठ मानव के विभिन्न सद्गुणों से सम्पन्न.

6- निरपेक्ष, मनोवैज्ञानिक और तर्कपूर्ण सर्वमान्य तत्काल न्यायकर्ता.

7- पूरे समाज के समस्त (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) पुरुषार्थों के पथ का संरक्षक, प्रवर्तक और सबके भविष्य की उन्नति के लिए सजग सक्रिय. समाज से दुर्गुण दूर करने के लिए कृतसंकल्प.

8- सांस्कृतिक साम्राज्य स्थापित करने वाला.

9- अद्वितीय नौ नर रत्नों से सभा को अलंकृत करने वाला, जिनमें बहुधा आज तक अपने-अपने विषय के प्रेरक.

10- ऐसा प्रथम ऐतिहासिक राजा जिसके नाम को परवर्ती राजा अपनी उपाधि बनाने को आतुर रहते थे.

11- शील, शक्ति और साहस से जनता को अभिभूत करने वाला.

12- रामराज्य के आदर्श पथ का पुनः प्रवर्तक.

13- वह तनाव रहित था क्योंकि उसके लिए कोई समस्या नहीं थी.

14- वह अपनी मानवता के नाते जनता का प्रियपात्र था.

15- विक्रमादित्य के राज्य में तत्कालीन आर्थिक प्रगति तत्कालीन विश्व में सर्वाधिक 33 प्रतिशत से अधिक कही जाती है.