Munawwar Rana’s , “Maa” Shayari : मुनव्वर राना की “मां ” पर मशहूर शायरी

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Munawwar Rana's ,

Munawwar Rana’s , “Maa” Shayari : मुनव्वर राना की “मां ” पर मशहूर शायरी

मुन्नवर राणा जी शायरी की दुनिया में एक ऐसा नाम हैं जो माँ के रूप को बड़े ही सरल शब्दों  में शायरियों के द्वारा लिखते हौं और  बताते हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी माँ के लिए ये शायरियां जिनका कोई जोड़ नहीं हैं. कम से कम शब्दों में माँ के प्यार को लिखने की कला तो बस मुन्नवर राणा साहब ही जानते हैं. उनकी कलम में मानो खुद माँ का ही वास हो, उनकी कलम तो बस माँ के प्यार के लिए बनी हैं. मुन्नवर राणा द्वारा लिखी गयी माँ नामक किताब जो पुरे विश्व में मशहूर हैं ,शायरी के लिए उनकी सोच में रिश्तों की गहराई है तो वे बातें भी हैं, जिनसे आदमी का पाला पड़ता ही रहता है. देखिए     मां पर मुनव्वर राना की कुछ मशहूर शायरी——-

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है.

मां के बारे में जब मुनव्वर राना शेर पढ़ रहे होते तो मंच पर ही उनकी आंखें नम हो आती रही. मैंने खुद देखा है कि मुशायरों में, उनके मां और रिश्तों पर शेर सुनकर बहुत सारे श्रोताओं की पलकें भी उनके साथ नम होती रही है.-

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है.

साथ ही वे ये भी ताकीद करते हैं कि मां के सामने दीनता नहीं दिखानी चाहिए क्योंकि मां की सबसे बड़ी उम्मीद और ताकत उसके बेटे ही होते हैं –

मुनव्वर मां के आगे यूं कभी खुल कर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती.

 

जब तक माथा चूम के रुख़्सत करने वाली ज़िंदा थी
दरवाज़े के बाहर तक भी मुँह में लुक़्मा होता था.

पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है


जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए


ऐ अंधेरे ! देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया


मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना


चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

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