O Bombay Positive Blood Group : नागपुर से इंदौर आया मरीज के लिए ओ बाम्बे पॉजिटिव ब्लड!

919

O Bombay Positive Blood Group : नागपुर से इंदौर आया मरीज के लिए ओ बाम्बे पॉजिटिव ब्लड!

भारत में सिर्फ 180 लोगों को है यह ब्लड ग्रुप, इंदौर में एक भी नहीं!

Indore : भर्ती महिला मरीज के लिए नागपुर से ‘ओ बाम्बे पॉजिटिव ब्लड ग्रुप’ सोमवार को फ्लाइट से बुलवाया गया। इसे रेयर ऑफ द रेयरेस्ट ब्लड ग्रुप भी कहा जाता है। दरअसल बड़नगर निवासी पवन पत्नी राहुल (26) को इलाज के लिए राबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती करवाया गया, महिला के ब्लड की जांच की तो ‘ओ बाम्बे ब्लड ग्रुप’ निकला। यह ब्लड ग्रुप काफी कम लोगों का होता है।

भारत में सिर्फ 180 लोगों का ओ बाम्बे ब्लड ग्रुप है। वहीं 30 लाख वाली आबादी वाले इंदौर में इस ग्रुप का कोई भी व्यक्ति नहीं है। इसके बाद डॉक्टरों की टीम ने एमवायएच ब्लड बैंक से संपर्क किया, यहां भी यह नहीं मिला। इसके बाद जांच में मरीज की बड़ी बहन संगीता में भी यही ब्लड ग्रुप पाया गया। जिससे एक यूनिट ब्लड महिला का चढ़ाया गया।
ब्लड कॉल सेंटर के अशोक नायक ने बताया कि हमने इसके लिए देशभर के डोनर से संपर्क किया। रविवार को शिरडी से रविंद्र कार से ब्लड देने के लिए इंदौर आए थे। इसके बाद भी दो यूनिट ब्लड की आवश्यकता और थी। इसके बाद वर्धा से रोहित और नागपुर से एक युवक का ब्लड वहीं डोनेट हुआ और फ्लाइट के माध्यम से यहां आया। अब महिला स्वस्थ है। साथ ही बताया कि ओ बाम्बे पॉजिटिव ब्लड ग्रुप इंदौर में तीसरी बार आया है। इससे पहले वर्ष 2014 में एक यूनिट और वर्ष 2018 में भी एक युनिट आ चुका है।

बड़नगर में चढ़ा दिया ओ पॉजिटिव ब्लड

महिला के पति राहुल ने बताया कि हम उज्जैन जिले के ग्राम करोंदिया के रहने वाले हैं। पत्नी को रक्तस्त्राव की समस्या के चलते बड़नगर के सिटी अस्पताल में इलाज के लिए लेकर गए थे। यहां ऑपरेशन किया और दो यूनिट ओ पॉजिटिव ब्लड ग्रुप चढ़ा दिया। इसके बाद तबीयत और बिगड़ने लगी। जिसके बाद हम इलाज के लिए इंदौर लेकर आए। यहां पता चला कि गलत ब्लड ग्रुप चढ़ा दिया गया, जिससे किडनी में समस्या हो गई। अभी उसकी डायलिसिस भी हो रही है। इंदौर से हमें काफी सहयोग मिला है, यहां ब्लड ग्रुप नहीं होने पर बाहर से बुलाकर पत्नी की जान बचा ली है।

1952 में बाम्बे में हुई थी इसकी खोज

जानकारी अनुसार रेयर ब्लड ग्रुप में शामिल बाम्बे ब्लड ग्रुप की खोज वर्ष 1952 में डॉ वाईएम भेंडे ने की थी। क्योंकि, यह खोज उस वक्त बाम्बे में हुई थी, इस वजह से इसे ‘बाम्बे ब्लड ग्रुप’ का नाम दिया गया। दूसरी वजह यह सबसे पहले बाम्बे के कुछ लोगों में पाया गया था। यह ब्लड ग्रुप ज्यादातर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।

किसे दें और किससे ले सकते हैं खून

विशेषज्ञों के मुताबिक इस ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति सिर्फ दूसरे बाम्बे ब्लड ग्रुप वाले से ही ब्लड ले सकते हैं। इसलिए इस ब्लड ग्रुप का जो भी व्यक्ति ब्लड डोनेट करता है, उसे स्टोर कर लिया जाता है। बाम्बे ब्लड ग्रुप बहुत दुर्लभ है, इसलिए डोनर को ढूंढना बहुत मुश्किल हो सकता है। किसी दूसरे ग्रुप का खून चढ़ाने पर बाम्बे ब्लड ग्रुप के मरीज की जान खतरे में आ सकती है।