पटवा-दिग्विजय के मुकाबले ज्यादा साहसी निकले शिवराज…

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नौकरशाही के तमाम विरोधी सुरों के बावजूद मध्यप्रदेश पुलिस के हौंसलों को नई उड़ान भरने का अवसर दे ही दिया। यूं कहा जाएं पुलिस कि नई उड़ान इंदौर-भोपाल में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने के साथ-साथ ही भारत के नक्शे में उन महत्वपूर्ण शहरों की पुलिस आयुक्त प्रणाली प्रभा मंडल की तरह काम कर पाएगी, जिस पुलिस ने अपनी गौरवगाथा से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चैन्नई, बंगलौर में पुलिस के दम पर सरकारें सुरक्षित रखने के दावे को प्रमाणित किया है।

भोपाल, इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली का आना अंधेरे में रौशनी के एक दिए के समान जरूर है, परंतु इसे लागू करने का साहस दिखाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने गुरु पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा तथा अपने राजनीतिक जानी दुश्मन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पीछे ही नहीं छोड़ा है, बल्कि यूं कहा जाए कि नौकरशाही की 30 वर्षों से जारी उस बड़ी जिद्द को आइना दिखा दिया है, एैसा माना जाये तो आश्चर्य नहीं होगा।

जिसमें प्रदेश का हर बड़ा नौकरशाह मठाधीश के अंदाज में मुख्यमंत्री के सामने यह कहकर खड़ा हो जाता था कि ‘नो सर प्लीज यहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम’ नहीं लागू हो सकता। जब बड़े-बड़े नौकरशाह विशेषकर मुख्यसचिव ही ठान बैठे, आय.ए.एस. एसोसिएशन से विरोध पत्र जारी करवा दे तो आखिर मुख्यमंत्री हिम्मत कहां जुटाते , और यही हुआ पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा के जमाने में, पटवाजी चाहते थे कि मध्यप्रदेश में पुलिस आयुक्त प्रणाली आ जाए,

उन्होंने राजस्थान सरकार से संबंधित हस्तावेज बुलवाए थे यह जानने के लिए कि पुलिस आयुक्त प्रणाली से जनता को क्या फायदा होगा, अपराधों में नियंत्रण की गुणवत्ता में सुधार कितना होगा। दस्तावेज आए अध्ययन हुआ, पटवाजी सहमत हुए परंतु तत्कालीन मुख्य सचिव श्रीमती निर्मला बुच अपने आय.ए.एस. पति महेश नीलकंठ बुच के द्वारा पुलिस आयुक्त प्रणाली के भयंकर विरोध के कारण पटवा जी ठंडे पड़ गए।

फिर आए मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनकर 1993 में दिग्विजय सिंह और दस वर्ष रहे मुख्यमंत्री। दिग्विजय की पहली पारी में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की बात गंभीरता से उठाई गई और बाकायदा दूसरी पारी में इंदौर- भोपाल में प्रयोग के तौर पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के लिए कमेटी का गठन हुआ, कमेटी ने कहा लागू करो तो फिर नौकरशाही के सामने मुख्यमंत्री के घुटने टेकने का तमाशा हुआ। वही महेश बुच, वही निर्मला बुच, वही IAS लॉबी।

कहा गया कि यदि पुलिस कमिश्नर सिस्टम आया तो राजनीति ही खतरे में पड़ जाएगी। बस फिर होना क्या था, दिग्विजय सिंह जैसा दुस्साहसी नेता के भी साहस ने दम तोड़ दिया और पुलिस आयुक्त प्रणाली प्रदेश में आते-आते रह नहीं गया।

नौकरशाही के चार-पांच नामों के लिए जश्ने जिद्द हो गया और अपराधों में मध्यप्रदेश का किस तरह ग्राफ बढ़ा है आपके सामने है। पुलिस वालों को अब शिवराज जी का वंदन और अभिनंदन करना चाहिए। उन नौकरशाही को जो दबी जुबान से कहते थे यहां भी पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होनी चाहिए, लेकिन वे चाहकर उन्हीं चार-पांच जिद्दी नौकरशाही के कारण हार मान गए थे।

अब तो इस बात पर जश्न होना चाहिए और पुलिस मुख्यालय में ‘असली दीवाली ’ मनाई जानी चाहिए। यह जानकर कि जिस पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा तथा उनके जानी दुश्मन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नौकरशाही के सामने हिम्मत नहीं जुटा पाए थे, उसी पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू करने में विधानसभा में एक बार कहा, याद आया वायदा तो बिना पल गुमाए शिवराज ने मध्यप्रदेश के दो बड़े शहर इंदौर और भोपाल में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करके सही मायने में मध्यप्रदेश की राजनीति में लौह पुरुष होने का खिताब हासिल कर लिया है।

लब्बो लुआब यह है कि पिछले 6 महीनों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फैसले लगातार भाजपा में इस भ्रम को तोडऩे में कारगर साबित हो रहे थे कि मध्यप्रदेश में बदलाव होने वाला है, परंतु आज के फैसले ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि 2023 का चुनाव भाजपा शिवराज के ही चेहरे पर लड़ेगी। लेकिन ध्यान रखना होगा पुलिस बेकाबू ना हो…