इटारसी में है,देश का अद्भुत रत्नेश्वर स्फटिक शिवलिंग मंदिर जहां नव ग्रह व मां कामाख्या के साथ विराजित हैं भोलेनाथ

आत्मा से परमात्मा का मिलन कराने वाली,सभी कष्टों को दूर करने वाली है,आज की महाशिवरात्रि की निशा बेला,देखें राशिगत आधार पर भी कैसे करें जप,पूजन लेखक, चिंतक चंद्रकांत अग्रवाल की मंदिर संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक शर्मा से हुई एक्सक्लूसिव वैज्ञानिक व आध्यात्मिक सत्संग चर्चा

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इटारसी में है,देश का अद्भुत रत्नेश्वर स्फटिक शिवलिंग मंदिर जहां नव ग्रह व मां कामाख्या के साथ विराजित हैं भोलेनाथ

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इटारसी। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को भगवान शिव और जगजननी माता पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसी मान्यता है, इसलिए महाशिवरात्रि मनाई जाती है। और भी कई पौराणिक आख्यान हैं। जैसे समुद्र से निकले महाविष का पान शिव जी ने किया था। 2.भगवान ब्रह्मा और विष्णु में बहस हुई कि कौन बड़ा है तभी एक प्रज्जवलित स्तंभ प्रकट हुआ था। जिसका आदि और अंत का पता लगाने ब्रम्हा आकाश में हंस रूप से और विष्णु जी वराह रूप से पाताल में गए थे लेकिन पता नहीं लगा पाए। तभी से शिव के प्राकट्य स्वरूप शिव रात्रि मनाई जाती है।3.इसी दिन से शिव ने वैराग्य छोड़कर गृहस्थी में प्रवेश किया था। इसलिए शिव रात्रि मनाई जाती है और भी अन्य कई आख्यान हैं।

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ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक शर्मा के अनुसार इस वर्ष 8 मार्च 2024 की रात्रि 9.57 बजे से 9 मार्च शाम 06.17 बजे तक महाशिवरात्रि पर्व है। सभी शिवभक्त इस रात्रि में पांच बार भगवान शिव का अभिषेक,पूजन व आरती करते हैं। इसमें शिव जी का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद चंदन, बेलपत्र, भांग ,धतूरा,गन्ने का रस, आक के फूल, मिष्ठान, इत्र,धूप, दीप,दक्षिणा अर्पित करना चाहिए। शिवजी की स्तुति करना चाहिए। अपनी अपनी इच्छानुसार दारिद्र नाश, धन प्रप्ति के लिए दारिद्रय दहन स्त्रोत पढ़ें, पाप नाश के लिए लिंगाष्टक का पाठ करे,संतान प्राप्ति के लिए अभिलाषा अष्टक स्त्रोत का पाठ करें। शिवकृपा को प्राप्त करने के लिए शिव भुजंग प्रद्यात स्त्रोत कर पाठ करें। समस्त सांसारिक कर्मों के क्षय व शिव सायुज्य प्राप्त करने हेतु शिव मानस पूजा स्त्रोत पढ़ें। संकट नाश के लिए तो महा मृत्युंजय स्त्रोत है ही और अन्य अन्य समस्याओ के निराकरण हेतु अपने अपने गुरू से मार्गदर्शन प्राप्त करें,यथा मंत्र मूलम गुरु वाक्यमे । यदि किसी को जन्म कुंडली मे कोई मरण कारक दशा या ग्रह परेशान कर रह हो या नीच का कोई ग्रह हो,तब यह ग्रह जिस राशि में उच्च की अवस्था में हो उस राशि से संबंधित ज्योतिर्लिग शिव को मानस रूप से अपने पूजित शिवलिंग में का पार्थिव शिव लिंग बनाकर उसी भावना से पूजन, जप आदि करना चाहिए। इटारसी को रत्नेश्वर शिव मंदिर स्फटिक शिवलिग लिंग का देश का ऐसा अद्भुत मंदिर स्थल, तीर्थस्थल बनने का गौरव मिला है जहां अब देश भर में सबसे विलक्षण,अद्भुत,रत्नेश्वर स्फटिक शिव मंदिर है जहां मां पार्वती,श्री गणेश,नंदी,नवग्रह के साथ मां कामाख्या भी विराजित हैं। जो जलहरी है वह भी महाकाल मंदिर की भांति ही निर्माण की गई है और इसको बनाने वाले कलाकार भी उज्जैन के ही हैं । मंदिर में नव ग्रह की प्रतिमाएं, नंदी, श्री गणेश के साथ मां कामाख्या देवी की स्थापना भी की गई है। मंदिर का निर्माण ज्योतिष आचार्य पंडित अशोक शर्मा ने पूरे विधि विधान से कराया है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग नर्मदापुरम संभाग का सबसे बड़ा स्फटिक शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई सवा फीट है। जब मैंने मंदिर संस्थापक ज्योतिष आचार्य पंडित अशोक शर्मा से स्फटिक शिवलिंग का पूजा महत्व पूछा तो वे बोले कि स्फटिक शिव लिंग की पूजा का महत्व अद्भुत होता है।

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वास्तु शास्त्र के अनुसार स्फटिक शिवलिंग की पूजा और इसके घर में होने पर सभी वास्तु दोष खत्म हो जाते हैं और घर में सुख शांति लाने के लिए, पति-पत्नी के बीच कलह को दूर करने के लिए स्फटिक शिवलिंग की घर में नित्य पूजा लाभकारी मानी गई है। उन्होंने बताया कि स्फटिक का शिवलिंग अधिक ऊर्जावान होने के कारण घर की सारी नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है और घर में सकारात्मक उर्जा बनाए रखता है। इसी प्रकार ऑफिस पर, दुकान, मंदिर या तिजोरी में स्फटिक के शिवलिंग के नित्य जलाभिषेक अथवा पूजा से- धन धान्य की समृद्धि बनी रहती है। साधक पंचामृत से जल अभिषेक करें तो उसे और अधिक करण्याणकारी माना गया है। छात्रों को स्फटिक शिवलिंग पूजा स्थल पर एवं पर्स में स्फटिक का पत्थर रखने से उन्हें काफी लाभ होता है। इसकी पूजा से दरिद्रता, सभी रोग, गरीबी,वास्तु दोष दूर होता है। साथ ही नकारात्मकता, असफलता आदि से बचने के लिए स्फटिक शिवलिंग का नित्य पूजन करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पंडित अशोक शर्मा बताते हैं कि स्फटिक शिवलिंग के जलाभिषेक करते समय ॐ नमः शिवाय का उच्चारण करें। अभिषेक के जल में दूध तिल व शहद मिलाकर और एक अन्य मंत्र का,जो मैं आपको बाद में बताऊंगा के यथाशक्ति जल अभिषेक करने के बाद जप करें तो अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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स्फटिक शिवलिंग के तो दर्शन मात्र से ही भक्त/ साधक को सभी रोगों,कष्टों परेशानी से मुक्ति मिलती है। स्फटिक के बने शिवलिंग पर पूजन व अभिषेक करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूरी होती हैं।
मैने जब उनसे विस्तार से बताने को कहा तो उन्होंने निम्नानुसार बताया
स्फटिक शिवलिंग पूजन के लाभ :-
① शिवपुराण के अनुसार स्फटिक के शिवलिंग में लक्ष्मी जी सहित सभी देवी देवता का वास माना गया है।

② वास्तु शास्त्र के अनुसार जहाँ स्फटिक शिवलिंग होता है, वहाँ के सारे वास्तुदोष पूर्णरूप से समाप्त हो जाते हैं।

3 स्फटिक शिवलिंग नित्य पूजा करने से घर में सुख शांति की प्राप्ति और पति पत्नी के मध्य कलह दूर होती है।

④ अत्यधिक सकारात्मक उर्जावान होने के की सारी नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाती है। तथा घर में सकारात्मक उर्जा सदैव बनी रहती है।

5 ऑफिस, घर, दुकान, मंदिर या तिजोरी में सस्फटिक शिवलिंग के नित्य जलाभिषेक अथवा नित्य पूजा से घन धान्य समृद्धि बनी रहती है एवं नित्य वृद्धि होती रहती है। 6 शिक्षा के क्षेत्र में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को स्फटिक शिवलिंग की पूजा एवं अभिषेक करना चाहिए। स्फटिक की गोली पास में रखना चाहिए।

7 दरिद्रता और रोग ,नकारात्मक वास्तु,असफलता से बचने के लिए स्फटिक शिवलिंग का नित्य पूजन करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अभिषेक के समय ॐ नमः शिवाय का उच्चारण करें। दूध, तिल व शहद जल में मिलाये। -: मंत्र:-
ॐ ह्रौं वं शिवाय सशक्तिकाय नमः उपरोक्त मंत्र का जलाभिषेक के बाद यथा शक्ति जप करें।

यह अद्भुत रत्नेश्वर मंदिर इटारसी के महर्षि नगर में स्थित मां विजयासन देवी मंदिर के ठीक पीछे वाली गली में,मात्र 50 कदम की पैदल दूरी पर ही स्थित है। होली के पहले फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। श्रावण मास में शिवरात्रि और फाल्गुन माह में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिवजी की विशेष पूजा और आराधना होती है और विशेष अभिषेक किया जाता है। अधिकतर मतों के अनुसार शिवजी की पूजा निशीथ काल में की जाती है। 08 मार्च 2024 शुक्रवार को रहेगी महाशिवरात्रि।

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 08 मार्च 2024 को रा‍त्रि 09:57 बजे।
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 09 मार्च 2024 को शाम 06:17 बजे।

चूंकि महाशिवरात्रि की पूजा रात में होती है और वह भी निशीथ काल में इसलिए 08 मार्च 2024 को यह पर्व मनाया जाएगा। चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है।

महाशिवरात्रि की चार प्रहर मुहूर्त पूजन
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रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – शाम 06 बजकर 25 मिनट से रात 09 बजकर 28 मिनट तक

रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – रात 09 बजकर 28 मिनट से 9 मार्च को रात 12 बजकर 31 मिनट तक

रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – रात 12 बजकर 31 मिनट से प्रातः 03 बजकर 34 मिनट तक

रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – प्रात: 03.34 से प्रात: 06:37

निशिता काल मुहूर्त – रात में 12 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक (9 मार्च 2024)

व्रत पारण समय – सुबह 06 बजकर 37 मिनट से दोपहर 03 बजकर 28 मिनट तक (9 मार्च 2024)

पूजा के शुभ मुहूर्त :-
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अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:08 से 12:56 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:30 से 03:17 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:23 से 06:48 तक।
सायाह्न सन्ध्या : शाम 06:25 से 07:39 तक।
अमृत काल : रात्रि 10:43 से 12:08 तक।

सर्वार्थ सिद्धि योग : सुबह 06:38 से 10:41 तक।
निशिता मुहूर्त : रात्रि 12:07 से 12:56 तक।

महाशिवरात्रि की पूजा विधि
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महाशिवरात्रि के दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव शंकर के आगे व्रत का संकल्प लें।
संकल्प के दौरान उपवास की अवधि पूरा करने के लिए शिव जी का आशीर्वाद लें।
इसके अलावा आप व्रत किस तरह से रखेंगे यानी कि फलाहार या फिर निर्जला ये भी संकल्प लें।
फिर शुभ मुहूर्त में पूजा प्रारंभ करें।
सबसे पहले भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं।
साथ ही केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं और पूरी रात्रि का दीपक जलाएं। इसके अलावा चंदन का तिलक लगाएं।बेलपत्र, भांग, धतूरा भोलेनाथ का सबसे पसंदीदा चढ़ावा है।
इसलिए तीन बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं।
सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर सबको प्रसाद बांटें।

क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि का पर्व?
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फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।

शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

– ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था।

– प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है।

– इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

– ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। सूर्यदेव इस समय पूर्णत: उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया है। विशेष महत्व है ( कौन सी राशि के जातक को कौन से शिव लिंग का पूजन व उसका मंत्र क्या होना चाहिए यह इसी आलेख में उल्लेखित है।)

अब यदि इसके वैज्ञानिक और आध्यमिक पक्ष की बात करें तो सभी कथाओं में इसका मर्म छुपा रहता है।
बसंत ऋतु में इस दिन महाशिव रात्रि की रात में उत्तरी गोलार्ध में आकाशीय
ग्रहों की स्थिति इस प्रकार की होती है
कि अपनी आंतरिक ऊर्जा अपने आप ऊपर उठती है। यही शिव पार्वती के मिलन का रहस्य है। वर्ष के अन्य
दिनों में तो स्वयं को भगवान से जोड़ने का प्रयास करना पड़ता है। लेकिन शिवरात्रि की रात में इसमे अधिक प्रयास की जरूरत नहीं होती है। परम शिव स्वयं ही प्रकट होते है अपने अंतः करण में आत्मा का परमात्मा से मिलन ही शिव पार्वती विवाह का रहस्य है। इस रात्रि में जागरण एवं ध्यान यदि सही तरीके से किया जाए तो इस एक ही रात्रि में शिवत्व की प्राप्ति संभव होती है।

सीधे बैठकर रीढ़ की हड्‌डी को प्राकृतिक रूप से सर्पाकार रखकर यदि ध्यान करेंगे तो एक ही रात में कुंडलनी जागरण की ऊर्जा का अनुभव हो जाएगा। शिवरात्रि अमावस्या के गहरे अंधकार से
प्रकाश यानि शिव की और ले जाने वाली रात्रि है। इसमें आकाशीय ग्रह व ऊर्जा आपके अत्यधिक निकट व आपकी सहायक होती हैं। इसी रात्रि में साधक कैलाश पर्वत जैसी अविचल
अवस्था को प्राप्त कर सकता है। इसलिए कहा जाता है कि वर्ष भर जितनी साधना,जप,व्रत का पूरा फल इस एक ही रात्रि में प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि ग्रह नक्षत्रों की ऐसी स्थिति होती है, जिससे शरीर के भीतर की ऊर्जा को उने प्राकृतिक रूप से ऊपर उठती है। यह “सेंट्रल फ्यूगल फोर्स ” एक विशेष तरीके से कार्य करता है। यदि आप इस रात्रि में यदि थोड़ा सा प्रयास करेंगे तो यह अनुभव
आपको हो जाएगा इसलिए इस रात्रि का विशेष महत्व है जो अनेक शास्त्रोक्त और लोक कथाओं का छिपा हुआ मर्म भी है। किसी की भी जन्म कुंडली में यदि कोई ग्रह मरण कारक स्थान में हो या नीच की अवस्था हो तो उस समय यह ग्रह जिस – राशि में उच्च की अवस्था में हो उस राशि से समधित ज्योतिर्लिंग शिव की पूजन करनी चाहिए,स्फटिक शिवलिंग मे भावना करके। जब मैंने उनसे राशि अनुसार पूजन विधि जाननी चाही तो उन्होंने जो बताया वह निम्नानुसार है, मेष राशि में,रामेश्वरम , मंत्र।। hrim ॐ नमः शिवाय hrim ll
वृषभ राशि में, सोमनाथ,मंत्र,।। ॐ नमः शिवाय।।
मिथुन राशि में,नागेश्वर,मंत्र,।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।।
कर्क राशि में, ओंकारेश्वर,मंत्र।। ॐ hroum जूं स:।।
सिंह राशि में,घृष्णेश्वर,मंत्र,।।मृत्युंजय महा मंत्र।।
कन्या राशि में,मल्लिकार्जुन,मंत्र ।। ॐ नमः शिवाय मल्लिकार्जुनाय।।
तुला राशि में,महाकालेश्वर,।।ॐ नमः शिवाय।।
वृश्चिक राशि में,बैद्यनाथ,मंत्र,।।मृत संजीवनी मृत्युंजय मंत्र।।
धनु राशि में,विश्वनाथ,मंत्र,।।ॐ नमः शिवाय नमो विष्वनाथाय।।
मकर राशि में,भीमाशंकर,मंत्र,।।ॐ इंदु सहिताय विधमहे त्रयंबक धीमहि tanno भीमाशंकर प्रचोदयात।।
कुंभ राशि में,केदारनाथ,मंत्र,।। ॐ केदारयाय ज्योतिर्लिंगाये नमः।।
मीन राशि में,त्रयंबकेश्वर,मंत्र।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि tanno रुद्र प्रचोदयात।। मंत्रों की सही स्पेलिंग और उच्चारण के लिए इसी आलेख में एक तस्वीर भी दी जा रही है,जिसे पंडित अशोक शर्मा ने मंदिर में एक पोस्टर रूप में सभी की सहूलियत के लिए डिस्प्ले भी किया हुआ है।