सत्ता का सफर और लाड़ली बहना की सवारी..!

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सत्ता का सफर और लाड़ली बहना की सवारी..!

 

निरुक्त भार्गव की खास प्रस्तुति

 

मैदान-ए-जंग में किसी की जीत तो किसी की पराजय होती है, सो 3 दिसंबर-2023 को भी यही परिपाटी निभेगी. अभी मतगणना में 10 दिन शेष हैं और कयासबाज़ी जमकर चल रही है. इस बीच, भाजपा और कांग्रेस ने बड़े-बड़े दावे ठोकने शुरू कर दिए हैं, अपनी-अपनी विजय के सन्दर्भ में. भाजपा तो लाड़ली बहनाओं के जरिये सत्ता में बने रहने को लेकर आश्वस्त हो चुकी है, तो कांग्रेस एंटी-इनकमबेंसी की दुहाई देकर वल्लभ भवन में बैठने के सपने देखने लगी है. बहरहाल, मुद्दा ये है कि क्या जनादेश इन्हीं दावों और प्रति-दावों के मध्य सिमट जाएगा या फिर अवाम द्वारा सत्ता के सूत्र सौंपने की पांच साला कवायद कुछ अलग संदेसा लेकर आने वाली है?

 

मध्य प्रदेश में 5.60 करोड़ से भी अधिक वोटरों ने जिस प्रकार की वोटिंग 17 नवम्बर को की है, बहस यहीं से छेड़ दी गई. शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के मत प्रतिशत के कई किस्से सामने लाए गए. अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति बहुल विधानसभा क्षेत्रों के वोटिंग पैटर्न के चर्चे उछाल दिए गए. मुस्लिम मतदाताओं के निर्णायक मतदान वाली सीटों को लेकर भी उदाहरण गिनाए जाने लगे. कथित उच्च और दबंग बिरादरियों द्वारा किए गए और करवाये गए मतदान को लेकर भी गुणा-भाग पेश किए जाने लगे.

 

मतदान के बाद कुछ घंटे बीते, तो चुनावी इश्यूज़ पर सवाल-जवाब का सिलसिला आरम्भ कर दिया गया और उसकी गिनती दहाई के अंक के पार पहुंचा दी गई. सस्ती रसोई गैस, आयुष्मान कार्ड, किसानों के खाते में हर माह एक हजार रुपए का बोनस, शादी-शुदा यानी लाड़ली बहनों के बैंक अकाउंट में बढ़ते क्रम में लगातार एक हजार से बारह सौ पचास रुपए क्रेडिट करने जैसी बातों का खूब ढिंढोरा पीटा गया. आगे और क्या-क्या देंगे, इसके भी पर्याप्त सब्ज़बाग दिखाए गए.

 

प्रतिपक्षी भी कहां पीछे रहने वाले थे: उन्होंने सत्ता छिन जाने के बावज़ूद, मतदाताओं को जन्नत की सैर करवाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. जातिगत जनगणना, आदिवासियों के भूमि अधिकार, गरीबों को आवासीय पट्टे देने, किसानों के लोन की माफ़ी-सस्ती बिजली देने, युवा बेरोजगारों को भत्ता देने, कक्षा एक से बारह तक मुफ्त शिक्षा देने, चिकित्सा की बड़ी-बड़ी सहूलियतें उपलब्ध कराने और समस्त नारियों को हर माह 1500 रुपए प्रदान करने के सुर-ताल छेड़े गए. नाना क़िस्म की गारंटियों के नाम पर भी खूब सपने बेचे गए.

 

नैरेटिव को शख्सियतों तक केंद्रित करने के तो बखूबी अनेकानेक जतन किए गए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे लोकप्रिय चेहरे को पीछे रखने की मुहिम किसने, कहां से और क्यों छेड़ी? सामूहिक नेतृत्व के नाम पर एक अजीब प्रयोग मध्य प्रदेश में किया गया और लब्ध-प्रतिष्ठित सूबेदारों को छोटे-छोटे इलाक़ों में घिरवा दिया गया! महानायक मोदी जी सदल-बल प्रकट हुए और विज्ञापनों, होर्डिंग्ज-पोस्टर्स-बैनर्स में छा गए!

 

कांग्रेस की दाल तो पहले से ही पतली है, लेकिन पार्टी के झंडाबरदारों ने गांधी परिवार को ही पुश करने की हरचंद कोशिशें कीं, पूरे चुनाव अभियान में. बुर्जुआ कमल नाथ की अगुवाई में हांडी में तड़का डालने के प्रयास किए जाते रहे. राजनीति के बाज़ीगर दिग्विजय सिंह अपना अस्तित्व जतलाने की गतिविधियों में लिप्त दिखाई दिए. संगठन के लिहाज से बेहद लचर कांग्रेस, चुनावी फण्ड जुटाने में भी अभिशप्त नज़र आई. अपने-ही प्रत्याशियों से कथित तौर पर अनाप-शनाप उगाही कर जिस फण्ड की जुगाड़ कर भी ली गई, उसे राहुल गांधी-प्रियंका वाड्रा-कमल नाथ के हवाई दौरों और रोड-शो पर फूंक दिया गया!

 

*निर्णायक तथ्य*

 

(1) जो किसी राजनीतिक विचारधारा, प्रलोभन और प्रपंचबाजियों से मुक्त है, उस मतदाता ने काफी संख्या में मतदान किया.

(2) मतदाता ने इस बार प्रत्याशियों को विभिन्न कोणों से तराजू में तोला.

(3) जातिगत मतदान करने को भी ध्यान में रखा गया.

(4) किस एमएलए और मंत्री ने क्या-क्या किया और क्या-क्या नहीं किया, इसको भी व्यापक पैमाने पर कसौटी पर कसा गया.

(5) अधिसंख्य मतदाता ने कैलकुलेशन लगाया कि फलां-फलां उम्मीदवार या पार्टी को वोट दूं, तो उसका खुद-का क्या फायदा अथवा नुकसान होगा.

(6) वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के मुख्य कारणों में नए मतदाताओं की संख्या, चुनाव आयोग के निरंतर प्रयास, निष्पक्ष और सर्वव्यापी मीडिया माध्यमों की भूमिका के साथ-ही प्रतिस्पर्धी उम्मीदवारों के घोर सक्रिय प्रयास शामिल रहे.

(7) शहरों के पॉश इलाक़ों की बजाय सघन बस्तियों और सुदूर ग्रामीण अंचलों तक मतदान करने में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी हुई.

(8) जिस भारतीय समाज व्यवस्था को पुरुष वर्ग कथित तौर पर नियंत्रित करता है, वहां स्त्री मतदान में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के साथ पुरुष-महिला मतदान में दो फीसदी से ज्यादा का अंतर रहा.

(9) मोदी का जादू दिखाने के लिए आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठनों का योगदान चर्चाओं में आया.

(10) हमास मामले के बरक्स मुस्लिम वोटों को साधने के अभियान ने भी सुर्खियां बटोरीं.

(11) वोटों के सौदागरों के माध्यम से निचली, पिछड़ी और गरीब बस्तियों तक प्रति वोट रुपए दो से पांच हजार फेंकने के दांव खूब खेले गए.

(12) रूठे कार्यकर्ताओं को पोलिंग केंद्रों तक मुफीद मतदाताओं को लाने-ले-जाने और विपरीत मतदाताओं को हतोत्साहित करने के एवज में दो-पहिया, चार-पहिया वाहन सहित गूगल टीवी सेट, फ्रिज, कूलर-एयर कंडीशनर, कंप्यूटर-लैपटॉप-महंगे मोबाइल हैंडसेट, हवाई टूर पैकेज के ऑफर्स दिए गए.

(13) नीचे-से-नीचे स्तर के सरकारी तंत्र को हड़काने और प्रलोभित करने के हथकंडे भी सामने आए.