पूरी दुनिया पागल हो गई है…

पूरी दुनिया पागल हो गई है…

इक्कीसवीं सदी का तीसरा दशक और दुनिया के बिगड़ते हालात खौफ पैदा कर रहे हैं। ठीक वैसा ही या उससे सौ गुना, हजार गुना और लाख गुना ज्यादा खौफ दुनिया में पसरने को तैयार है, जैसा बीसवीं सदी के दो विश्वयुद्ध कहर बरपाकर खौफ का अहसास करा चुके हैं। अब फिर इधर-उधर से चिंगारियां उठती दिखने लगी हैं। न कमजोर के चेहरे पर भय है और शक्तिशाली तो निर्भय होकर दहाड़ ही रहा है। कर्कश स्वरों में युद्ध की विभीषिका की आहट सी लग रही है। पहले दो ताजा दृश्यों पर नजर डाल लें, जो बदले की आग में निर्वस्त्र होकर तांडव का अहसास करा रहे हैं।

पहला दृश्य यह है कि चीन की सेना ताइवान की सीमा के पास बड़ा युद्धाभ्यास कर रही है। चीन की सेना ने ताइवान को चारों तरफ से घर लिया है। और इस दौरान चीन ने कड़ी चेतावनी दी है कि ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करने वालों के ‘सिर तोड़ दिए जाएंगे और खून बहेगा।’ चीन ने कहा स्वशासित द्वीप ताइवान के आसपास उसके सैन्य अभ्यास का उद्देश्य ‘गंभीर चेतावनी’ देना है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने ताइवान द्वीप के चारों ओर चीनी सैन्य अभ्यास को ‘गंभीर चेतावनी’ बताया और उन्होंने कहा कि चीन जब ताइवान को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेगा तो ताइवान की स्वंत्रता की मांग करने वालों के सिर तोड़ दिए जाएंगे। इस दौरान चारों तरफ सिर्फ खून बहेगा। दरअसल, चीन हमेशा से ताइवान को चीन का अंग बताता आ रहा है। चीन ताइवान को कभी भी अलग राष्ट्र की मान्यता नहीं देना चाहता है। दूसरी तरफ ताइवान के लोग चाहते हैं कि चीन उसपर अपना अधिकार जताना बंद कर दे। अब चीन ने बगैर नाम लिए पूरी दुनिया को धमकी दी है।

दूसरा दृश्य और भी भयंकर है। यूक्रेन जंग के बीच रूसी सेना ने इस्कंदर और किंझल मिसाइलों के साथ टैक्टिकल न्यूक्लियर टेस्ट शुरू कर दिए हैं। रूसी रक्षा मंत्रालय ने 21 मई को बताया कि ये टेस्ट यूक्रेन के दक्षिणी सैन्य इलाके में हो रहे हैं। यह इलाका काफी बड़ा है। इसमें ठीक किस जगह टेस्ट किए जा रहे हैं यह रूस ने नहीं बताया है। अलजजीरा के मुताबिक, रूस ने जंग के शुरुआती दिनों में इस इलाके पर कब्जा कर लिया था। इस टेस्टिंग में ​​​​​बेलारूस के भी शामिल होने की उम्मीद है। पिछले साल रूस ने ऐलान किया था कि वे बेलारूस में टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन तैनात करेगा। रूस इस टेस्ट से पश्चिमी देशों की धमकियों का जवाब देने की कोशिश कर रहा है। पिछले महीने ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने अपनी सेना को परमाणु हथियारों की ड्रिल करने का आदेश दिया था। इसमें उन्होंने नेवी और यूक्रेनी सीमा के पास तैनात सैनिकों को भी शामिल होने को कहा था।रूस ये टेस्ट ऐसे समय में कर रहा है जब कुछ दिन पहले नाटो और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन की मदद के लिए सेना भेजने की बात कही थी। इनमें फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश शामिल हैं। रूस और यूक्रेन का युद्ध फरवरी में तीसरे साल में पहुंच गया है। विनाश का तांडव सबने देखा है।

ऐसे ही दृश्यों की परिणति दो विश्व युद्धों का महाविनाश यह दुनिया बीसवीं सदी में देख चुकी हैं। और तब चारों तरफ दीनता और करुणा का भाव था। प्रथम विश्व युद्ध यूरोप में होने वाला यह एक वैश्विक युद्ध था जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था। इसे महान युद्ध या “सभी युद्धों को समाप्त करने वाला युद्ध” के रूप में जाना जाता था। इस युद्ध ने 6 करोड़ यूरोपीय व्यक्तियों यानि गोरों सहित 7 करोड़ से अधिक सैन्य कर्मियों को एकत्र करने का नेतृत्व किया, जो इसे इतिहास के सबसे बड़े युद्धों में से एक बनाता है। यह इतिहास में सबसे घातक संघर्षों में से एक था, जिसमें अनुमानित 9 करोड़ सिपाहियों की मौत और युद्ध के प्रत्यक्ष परिणाम के स्वरूप में 1.3 करोड़ नागरिकों की मृत्यु, जबकि 1918 के स्पैनिश फ्लू महामारी ने दुनिया भर में 1.7-10 करोड़ की मौत का कारण बना, जिसमें कि यूरोप में अनुमानित 26.4 लाख मौतें और संयुक्त राज्य में 6.75 लाख मौतें स्पैनिश फ्लू से हुईं।

यही लड़ाई पूरी तरह से 1919 में खत्म हुई थी।28 जून 1914 को, बोस्निया के सर्ब यूगोस्लाव राष्ट्रवादी गैवरिलो प्रिंसिपल ने साराजेवो में ऑस्ट्रो-हंगेरियन वारिस आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या कर दी, जिससे जुलाई संकट पैदा हो गया। इसके उत्तर में, ऑस्ट्रिया-हंगरी ने 23 जुलाई को सर्बिया को एक अंतिम चेतावनी जारी कर दी। सर्बिया का उत्तर ऑस्ट्रियाई लोगों को संतुष्ट करने में विफल रहा, और दोनों युद्ध स्तर पर चले गए। गठबंधनों के एक संजाल ने बाल्कन में द्विपक्षीय मुद्दे से यूरोप के अधिकांश भाग को संकट में डाल दिया। जुलाई 1914 तक, यूरोप की महाशक्तियों को दो गठबंधन में विभाजित किया गया था, ट्रिपल एंटेंटे : जिसमें फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे; तथा ट्रिपल एलायंस :जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली। ट्रिपल एलायंस की प्रकृति केवल रक्षात्मक था, जिससे इटली को अप्रैल 1915 तक युद्ध से बाहर रहने की अनुमति मिली, जब वह ऑस्ट्रिया-हंगरी के साथ अपने संबंधों के बिगड़ने के बाद मित्र देशों की शक्तियों में शामिल हो गया। रूस ने सर्बिया को वापस लेने की आवश्यकता महसूस की, और 28 जुलाई को ऑस्ट्रिया-हंगरी के बेलग्रेड के सर्बियाई राजधानी पर गोलाबारी के बाद आंशिक रूप से एकत्रीकरण को मंजूरी दी।

तो वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चलने वाला विश्व-स्तरीय युद्ध था। लगभग 70 देशों की थल-जल-वायु सेनाएँ इस युद्ध में सम्मलित थीं। इस युद्ध में विश्व दो भागों मे बँटा हुआ था – मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। इस युद्ध के दौरान पूर्ण युद्ध का मनोभाव प्रचलन में आया क्योंकि इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया, तथा यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार- जिसमें होलोकॉस्ट भी शामिल है- तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है, जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। अमूमन दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत 1 सितम्बर 1939 में मानी जाती है जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया।

1939 के अन्त से 1941 की शुरुआत तक, अभियान तथा संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छः पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर क़ाबिज़ हो गया। फ़्रांस की हार के बाद युनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ़्रीका की लड़ाइयाँ तथा लम्बी चली अटलांटिक की लड़ाई शामिल थे। लंबे और थकाऊ युद्धों के बाद सन् 1945 के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर क़ब्ज़ा कर लिया और युरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अन्त 8 मई 1945 को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन् 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी नौसेना को शिकस्त दी और पश्चिमी प्रशान्त के कई द्वीपों में अपना क़ब्ज़ा बना लिया। जब जापानी द्वीपसमूह पर आक्रमण करने का समय क़रीब आया तो अमेरिका ने जापान में दो परमाणु बम गिरा दिये। 15 अगस्त 1945 को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया जब जापानी साम्राज्य ने आत्मसमर्पण करना स्वीकार कर लिया।

इन दो विश्वयुद्ध ने पूरी दुनिया को अंधेरे में धकेल दिया था। और अब 75 साल बाद ही फिर दुनिया युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। फिर से मित्र राष्ट्र और शत्रु राष्ट्र जैसी गोलबंदी हो रही है। फिर से अहंकार और नफरत का जहर भाषा को विद्रूप और निर्वस्त्र करने पर उतारू है। ऐसा लगने लगा है कि कमजोर भी अमर्यादित होकर मरने-मारने पर उतारू है, तो शक्तिशाली कमजोरों पर कब्जा करने के लिए और अपने अहंकार की पराकाष्ठा की परख करने पर उतारू है। सबको मालूम हैं कि परिणाम की आग सब कुछ जलाकर खाक करने वाली है। पर सारी दुनिया पागल हो गई है और महाविनाश में अपनी-अपनी आहुति देने को पूरी तरह से तैयार है…।

Author profile
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कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के जाने-माने पत्रकार हैं। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में लंबा अनुभव है। फिलहाल भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र एलएन स्टार में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले एसीएन भारत न्यूज चैनल के स्टेट हेड रहे हैं।

इससे पहले स्वराज एक्सप्रेस (नेशनल चैनल) में विशेष संवाददाता, ईटीवी में संवाददाता,न्यूज 360 में पॉलिटिकल एडीटर, पत्रिका में राजनैतिक संवाददाता, दैनिक भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ, एलएन स्टार में विशेष संवाददाता के बतौर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा भी नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन किया है।