आज की बात : जब जज साहब की सलाह पर मैंने भी रोजाना डेढ़ लीटर पानी पीना शुरू किया

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आज की बात : जब जज साहब की सलाह पर मैंने भी रोजाना डेढ़ लीटर पानी पीना शुरू किया

जिंदगी में कई बार विलक्षण प्रतिभा के धनी लोग किस्मत से मिल जाते हैं। ऐसे ही एक जज साहब मेरी जिंदगी में आए। बात शिवपुरी की है।

फील्ड प्रशिक्षण के बाद यह मेरी पहली पोस्टिंग थी। पोंटिंग के दौरान दैनिक मजदूरी पर कार्यरत ड्राइवर को उसकी की गयी गड़बड़ियों के कारण मैंने हटा दिया था। इसपर उसने एक इस्तगासा कोर्ट में पेश कर दिया कि “बरोनिया साहब ने मुझसे 5 हजार रुपये लिए और मुझे नौकरी से निकाल दिया।” पूरे प्रकरण की जानकारी मुझे तब मिली जब कोर्ट से अरेस्ट वॉरंट लेकर एक हवलदार मेरे आफिस आया।

स्वाभाविक रूप से मैं घबरा गया। डीएफओ कलेक्टर एसपी सभी से मिला। उन्होंने मुझे समझाया कि चिंता वाली बात नहीं, नौकरी में तो यह सब कभी भी किसी के साथ हो सकता है। खैर मैंने वकील के माध्यम से प्रकरण में जमानत ली। कोर्ट की पेशी में भी समय से पहुंचा। पहली पेशी के कुछ दिन बाद मैं जज साहब से मिलने घर चला गया। सामान्य बातचीत के बाद जब मैंने अपना केस बताना चाहा तो बिना पूरी बात सुने जज साहब नाराज हो गए और मुझे जाने को कहा।

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मैं घर तो आ गया लेकिन एक नई चिंता के साथ कि जज साहब मुझसे नाराज हैं तो निर्णय भी मेरे विरुद्ध ही जाएगा।

 

चिंता ज्यादा बढ़ी तो मैं डीजे साहब से मिलने उनके घर चला गया। अपना परिचय देकर उन्हें पूरी बात बताई। चिंता भी बताई कि निर्णय जज साहब नाराजगी के चलते मेरे विरुद्ध ही करेंगे इसलिए कोर्ट परिवर्तन का भी उनसे निवेदन किया।

डीजे साहब ने सारी बातें सुनी फिर मुझसे बोले “बरोनिया जी आप कोर्ट में एप्लीकेशन दे देंगे तो मैं जज जरुर चेंज कर दूंगा। लेकिन बेहतर होगा कि इन्हीं की कोर्ट में केस चलने दें। ये एक ईमानदार जज हैं। यह आपकी गलती थी कि आप इनके घर चले गए। कोई भी ईमानदार जज ऐसा कृत्य पसंद नहीं करता इसलिए वे आप पर नाराज हुए।” डीजे साहब की बातों से मेरा टेंशन कम हुआ और मैंने उन्हीं जज साहब की कोर्ट में केस चलने दिया। हर कोर्ट पेशी बिना नागा अटेंड करता रहा। मेरे भाग्य से शिवपुरी से ट्रांसफर के 3-4 दिन पहले निर्णय मेरे पक्ष में आकर प्रकरण समाप्त हो गया।

पश्चातवर्ती समय में मेरी जबलपुर पोस्टिंग हुई।

ज्वॉइन करते ही कनिष्ठ पुत्र राहुल को एडमिशन दिलाने रुड़की जाना हो गया। आईआईटी रुड़की में एडमिशन कराने के करीब माह भर बाद डीजे जबलपुर से सम्मान भेंट करने गया। 2-4 मिनट बाद ही डीजे साहब बोले “बरोनिया जी आपको महिने भर पहले शायद रुड़की में देखा है।” मैंने कहा “बिलकुल सही सर। मैं बेटे के एडमिशन के लिए गया था। लेकिन आश्चर्य की बात है कि वहां तब हजारों लोग थे फिर भी आपको मेरा चेहरा याद रहा।” इसपर डीजे साहब बोले “बरोनिया जी याद करिए शायद हम 15-20 साल पहले भी मिल चुके हैं।”

इतनी देर में चाय पीते पीते मुझे याद आ गया। मैंने कहा “सर हम जरूर मिले हैं, शिवपुरी में। और मुझे यह भी याद आ रहा है कि पहली भेंट में मुझे आपसे डांट सुननी पड़ी थी।” डीजे साहब मुस्कुरा दिए। इसके बाद हमारा बेहतरीन तालमेल हो गया। मेरे बंगले से वाकिंग डिस्टेंस पर उनका बंगला होने से हमारी प्रायः मुलाकात होने लगी।

कुछ समय बाद डीजे साहब की नियुक्ति मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में माननीय न्यायाधीश के रूप में हो गयी। लेकिन हमारा मिलना जुलना बरकरार रहा। बस पहले ज्यादा मुलाकात हो जाया करती थी लेकिन अब कम। क्योंकि उनके पद की गरिमा का भी मुझे ध्यान रखना था।

एक बार सबेरे के समय जज साहब के साथ उनके घर पर बैठा चाय पी रहा था तब मैंने मार्क किया कि करीब डेढ़ घंटे की उस मुलाकात के दौरान उन्होंने 3 लीटर पानी धीरे धीरे कर पूरा पी लिया। मेरे पूछने पर कि “आपको कोर्ट में दिक्कत नहीं होती?” जज साहब ने बताया कि “11 बजे तक कई बार टायलेट जाना होता है। इसके बाद पूरे दिन कोई परेशानी नहीं।” उनकी यह बात मुझे जमी और मैंने भी नियमित रूप से 1 से डेढ़ लीटर लगभग रोजाना पीना शुरू किया और इसे लगभग अपनी जीवनशैली में ही ढाल लिया है। जज साहब की ईमानदारी, गजब की याददाश्त और उनके सामान्य रहन सहन ने मेरे मन मस्तिष्क पर जबरदस्त प्रभाव डाला।