उद्धव को राहुल ने आखिर झटका क्यों दिया?

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उद्धव को राहुल ने आखिर झटका क्यों दिया?

महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का भविष्य क्या होगा, इसको लेकर चल रही अटकलों के बीच विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने न केवल शिंदे को एक बड़ी राहत दी है बल्कि धीरे से उद्धव ठाकरे को जोर का झटका दे दिया है । अब देखने वाली बात यही होगी कि इससे उद्धव अपने आपको कैसे उबारते हुए महाराष्ट्र के राजनीतिक फलक पर उनकी अपनी शिवसेना की धमक बरकरार रखते हैं, क्योंकि शिंदे गुट को ही महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने असली शिवसेना माना है। हालांकि उद्धव ठाकरे ने तत्काल फौरी प्रतिक्रिया देते हुए नार्वेकर के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि जिस तरह से नार्वेकर को अध्यक्ष बनाया गया था उससे ही साफ जाहिर था कि उनकी मिलीभगत है और कल ही मैंने शंका प्रकट कर दी थी कि यह लोकतंत्र की हत्या की चाल है, उन्होंने खुद कई पार्टियां बदली हैं और आगे के लिए उन्होंने अपना रास्ता साफ किया है।

महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना विधायकों की अयोग्यता के मामले में फैसला लेते हुए कहा है कि इस मामले में निर्णय लेते वक्त चुनाव आयोग के फैसले को ध्यान में रखा है। उनका कहना था कि वह चुनाव आयोग के फैसले से बाहर नहीं जा सकते थे और चुनाव आयोग के रिकार्ड में शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना का 2018 का संविधान मान्य नहीं है क्योंकि इसके बाद शिवसेना में कोई चुनाव नहीं हुआ। एकनाथ शिंदे को बड़ी राहत देते हुए नार्वेकर ने इस आधार पर फैसला किया है कि पार्टी का संविधान क्या कहता है, नेतृत्व किसके पास था और विधान मंडल में बहुमत किसके पास है।

नार्वेकर ने कहा कि चुनाव आयोग के रिकार्ड में 1999 का संविधान ही मान्य है और संविधान में हुआ संशोधन रिकार्ड में नहीं है। उनका कहना था कि मैंने चुनाव आयोग के रिकार्ड को ध्यान में रखकर ही फैसला दिया है। इस फैसले से जो तीन प्रमुख बातें सामने आई हैं उनके अनुसार महाराष्ट्र राज्य विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने अपने फैसले में कहा है कि पार्टी के 2016 के संशोधित संविधान के अनुसार शिवसेना के नेतृत्व ढांचे पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि 2013 व 2019 में नेतृत्व चुनने के लिए शिवसेना में कोई चुनाव नहीं हुआ, इसका कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को पहला बड़ा झटका नार्वेकर ने शिवसेना के संशोधित संविधान को मानने से इन्कार करते हुए दिया। उन्होंने पुराने और असंशोधित संविधान के आधार पर ही फैसला किया। नार्वेकर ने कहा कि चुनाव आयोग में पार्टी के रुप में प्रस्तुत और स्वीकार किए गए संविधान पर विचार किया जायेगा न कि हाल ही में 2018 में किए गए संशोधित संविधान पर। इस प्रकार उन्होंने संशोधित संविधान के अनुसार विचार करने की उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की मांग को खारिज कर दिया। अपने आदेश में नार्वेकर ने कहा है कि दोनों पक्षों को सुनने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि संविधान और अन्य मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं है।

शिवसेना में हुए विभाजन के बाद 18 महीने और 18 दिन बीतने के बाद आखिरकार नार्वेकर ने एकनाथ शिन्दे सहित उनके गुट के 16 विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी और शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना, हालांकि उन्होंने उद्धव गुट के 14 विधायकों की सदस्यता भी बरकरार रखी। इस प्रकार इस सियासी घटनाक्रम में दोनों गुटों में से किसी भी गुट के किसी सदस्य की सदस्यता नहीं गयी। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी से हटाने का अधिकार नहीं था यह अधिकार सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पास है। फैसले के बाद उद्धव ठाकरे और उनके बेटे विधायक आदित्य ठाकरे ने कहा है कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट जायेगी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ने भी कहा कि उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट जायेंगे, उन्हें उम्मीद है कि कोर्ट से उन्हें न्याय मिलेगा।

 

छवि गढ़ते मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव

मध्यप्रदेश के राजनीतिक फलक पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तेजी से अपनी एक सख्त प्रशासक होने की छवि गढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गयी विभिन्न गारंटियों को अमली जामा पहना रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि प्रदेश में 10 से 15 जनवरी तक मकर संक्रांति पर्व घोषित किया गया है। इस क्रम में महिला सशक्तीकरण गतिविधियों के विभिन्न कार्यक्रम हुए हैं और इसी तरह 13 जनवरी को शहडोल में जनजाति वर्ग के भाई-बहनों के साथ कार्यक्रम होंगे और 14 तथा 15 जनवरी को विभिन्न भारतीय खेलों व पतंगबाजी के कार्यक्रम होंगे। माता-बहनों के लिए यह पर्व उत्साह व उमंग का अवसर होता है। मुख्यमंत्री का कहना है कि मकर संक्रांति पर उत्तरायण प्रारंभ होता है, सूर्यदेव अपनी दिशा बदलते हैं। उज्जैन के निकट डोंगला वेद्यशाला में सूर्यदेव को कक्षा बदलते हुए देखा जा सकता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से ज्ञान एवं विज्ञान आधारित ऐसी गतिविधियों से आमजन को जोड़ने के प्रयास हो रहे हैं।

 

नये सदस्यों को प्राथमिकता देंगे

मध्यप्रदेश विधानसभा एवं लोकसभा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित षष्ठम विधानसभा के नव-निर्वाचित सदस्यों के दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम के समापन सत्र में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि आगामी 7 फरवरी से आरंभ होने वाले विधानसभा सत्र में प्रथम बार निर्वाचित सदस्यों को सदन में बोलने की प्राथमिकता दी जायेगी। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सदस्य को सदन में बोलने का अवसर मिले इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए। तोमर ने कहा कि शून्यकाल में लिखित सूचनाओं पर बोलने का प्रावधान अभी है किन्तु आगामी सत्र से यह भी निर्धारित किया जायेगा कि शून्यकाल में महत्वपूर्ण तात्कालिक घटनाओं पर भी सदस्य अपनी बात रख सकेंगे। तोमर की मंशा उन 69 विधायकों को अवसर देने की है जो पहली बार विधायक बने हैं।

उनका कहना था कि इन विधायकों को एक पत्र भेजकर उनसे दो दिवसीय प्रबोधन का अनुभव लिया जाना चाहिये और यदि नये विधायकों के लिए एक और प्रबोधन कार्यक्रम आवश्यक लगे तो उस पर भी विचार किया जाना चाहिये। दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम का शुभारंभ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा किया गया था और इसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार भी मौजूद थे। इस प्रबोधन कार्यक्रम में संसदीय कार्यमंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी उपस्थित थे। जहां तक वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के व्यक्तित्व का सवाल है तो उस पर प्रकाश डालते हुए पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष और कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह ने कहा कि नरेंद्र सिंह तोमर का व्यक्तित्व प्रशांत महासागर जैसा गहरा और हिमालय जैसा ऊंचा है।

 

और यह भी

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का रह -रह कर फिर से मुख्यमंत्री न बन पाने का दर्द छलकता रहता है और एक बार फिर वह महाराष्ट्र के पुणे में उस समय छलका जब वहां एमआईटी विवि के विद्यार्थियों की युवा संसद को वे सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपन रिजेक्टेड नहीं हैं, फार्मर चीफ मिनिस्टिर हैं। अपन छोड़ के आये तो ऐसे आये कि हर जगह जनता का स्नेह और प्यार मिलता है। लोग मामा-मामा करते हैं, यही असली दौलत है। छोड़ दिया इसका मतलब यह नहीं कि राजनीति नहीं करुंगा, क्योंकि मेरी राजनीति बड़े लक्ष्य के लिए है। उनका यह भी कहना था कि आजकल दूसरे तरह के नेता भी हैं जो पालिटिक्स को केरियर मान लेते हैं। कई लोग सोचते हैं कि हम क्या करेंगे राजनीति में आकर। आप अगर ऊपर जाते हैं और आवाज देते हैं तो सारी दुनिया को सुनाई देती है इसलिए राजनीति में जाने से डरो मत। हम कर्मठ हैं, चरित्रवान हैं, देशभक्त हैं, हम राजनीति छोड़ देंगे तो क्या चोरी करने वालों को राजनीति सौंप दें। शिवराज का इशारा किस ओर था उसे समझने वाले समझ गए और जो ना समझे वह अनाड़ी।

उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि क्या राजनीति में धन का प्रभाव खत्म करने के लिए तुम काम नहीं करोगे, क्या राजनीति केवल अमीरों की तिजोरी से चलेगी। अगर 35-40 करोड़ रुपया एमएलए बनने के लिए खर्च करेंगे तो देश की सेवा क्या करेंगे, हमें राजनीति से धन के प्रवाह को समाप्त करना होगा। जहां तक शिवराज के इस कथन का सवाल है सभी लोग यह महसूस करते हैं कि राजनीति को धनवान, पूंजीपतियों व उद्योगतियों के प्रभाव से मुक्त होना चाहिए पर लाख टके का यह सवाल अनुत्तरित ही रहता है कि आखिर इसे कौन,कब और कैसे करेगा।