दिल वालों की दिल्ली क्या इस बार आम चुनावों के परिणामों के मिथक को कायम रखेगी?

दिल वालों की दिल्ली क्या इस बार आम चुनावों के परिणामों के मिथक को कायम रखेगी?

मीडियावाला के नेशनल हेड गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

18 वीं लोकसभा के गठन के लिए भारत में सातवें और अंतिम चरण में आगामी एक जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी (यूपी) सहित 8 प्रदेशों की 57 लोकसभा सीटों पर मतदान होने के साथ ही देश के सभी 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में लोकतंत्र का सबसे बड़ा महोत्सव सम्पन्न हो जाएगा। एक जून की शाम छह बजे के बाद एग्जिट पोल्स के नतीजे भी सामने आएंगे। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 102, दूसरे चरण में 89, तीसरे चरण में 94, चौथे चरण में 96, पांचवें चरण में 49 और छठे चरण में 57 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है।

सातों चरणों के चुनाव संपन्न होने के बाद चार जून को निर्विरोध चुने गए सांसदों के अतिरिक्त लोकसभा की सभी सीटों के चुनाव परिणाम आ जायेंगे और परिणाम आने एवं बहुमत जाहिर होने के बाद केंद्र में नई सरकार के गठन का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा। बता दें कि 17 वीं लोकसभा का कार्यकाल आगामी 16 जून को पूरा हो रहा हैं।

देश में संसद के निचले सदन लोकसभा की कुल 543 सीटें हैं। जिनमें 412 सामान्य सीटें हैं जबकि 84 अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनूसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। गौर तलब है बहुमत के लिए 272 सीटों का जादुई आंकड़ा छूने वाला दल अथवा गठबंधन ही नई सरकार बनाएगा।

चार जून को आने वाले लोकसभा आम चुनाव के नतीजों से पहले ही राजनीतिक हलकों, मीडिया, चुनाव विश्लेषकों, विशेषज्ञों और सट्टा बाजार आदि में अगली सरकार को लेकर अलग-अलग भविष्यवाणियां, कयास, अनुमान और दावें भी सामने आ रहे हैं। यह भी एक मिथक बताया जाता है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सातों सीटों पर जो दल अथवा गठबंधन अपनी विजय पताका फहराता है प्रायः वह केंद्र में अपनी सरकार बना लेता है। पिछड़े आंकड़े भी इस बात के गवाह है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर प्रायः केन्द्र में उनकी ही सरकार बनती है जो दल या गठबंधन दिल्ली की सीटों को जीतने में कामयाब रहते है। पिछले 17 लोकसभा चुनावों में 9 बार ऐसा ही देखा गया है। वर्ष 1967,1989 और 1991 को छोड़ दिया जाय तो दिल्ली में जिस पार्टी को लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटों पर विजय मिली, उस पार्टी की ही केन्द्र में सरकार बनी।

1952 में जब पहले आम चुनाव हुए तो दिल्ली में लोकसभा की मात्र तीन सीटे ही थी और उन तीनों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी और केंद्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ही बनी थी।1957 और 1962 में भी यही कहानी दोहराई गई, हालाकि दिल्ली में लोकसभा की सीटे बढ़ कर पहले 4 और उसके बाद 5 हो गई। 1964 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का और उसके बाद 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के उपरांत 1967 में हुए आम चुनाव में दिल्ली की लोकसभा सीटे बढ़ कर 5 से 7 हो गई और उस आम चुनाव में भारतीय जनसंघ ने दिल्ली की 7 में से 6 सीटें जीती लेकिन अपवाद स्वरूप केंद्र में फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ही बनी। वर्ष 1971 के चुनाव में भी दिल्ली की सभी 7 सीटें फिर से कांग्रेस ने ही जीती और केन्द्र में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी। देश में इन्दिरा सरकार द्वारा आपातकाल लगाने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में दिल्ली की सभी 7 सीटों पर चौधरी चरण सिंह के भारतीय लोक दल के उम्मीदवार जीते और केन्द्र में पहली बार कोई गैर कांग्रेसी सरकार विभिन्न विपक्षी दलों के विलय से बनी मोरार जी भाई देसाई के नेतृत्व में जनता सरकार बनी। जनता पार्टी के टूटने के बाद 1980 में हुए आम चुनाव में फिर से कांग्रेस ने दिल्ली की 7 में से 6 सीटे जीती तथा केन्द्र में एक बार फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ही सरकार बनी।

1984 मे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर से दिल्ली फतह की और राजीव गांधी की अगुवाई में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बन गई। बोफोर्स घोटाले के आरोपों से घिरी कांग्रेस,1989 में दिल्ली में मात्र दो सीटों पर सिमट गई और भारतीय जनता पार्टी ने चार सीटे जीती तथा केन्द्र में वी पी सिंह के नेतृत्व में दूसरी गैर कांग्रेस सरकार बनी, फिर 1991 के चुनाव में कांग्रेस को दो और भाजपा को 4 सीटे हासिल हुई लेकिन नरसिंहा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। 1996 में कांग्रेस दिल्ली में मात्र 2 सीटें ही जीत पाई लेकिन भाजपा 5 सीटों पर जीत गई तथा भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार मात्र 13 दिनों तक ही चल पाई। बाद में एच डी देवेगोडा गठबंधन के प्रधानमंत्री बने। 1998 में फिर से भाजपा ने दिल्ली की 6 सीटे जीती और केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेई की भाजपा नीत सरकार बनी लेकिन 13 महीनों बाद 1999 में फिर से आम चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने दिल्ली की सभी 7 सीटें जीती और केन्द्र में भी भाजपा की सरकार बनी। वर्ष 2004 और वर्ष 2009 में फिर से बाजी पलटी और कांग्रेस दिल्ली की 6 सीटों पर विजय रही तथा केन्द्र में डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार बनी। फिर आया 2014 का आम चुनाव जिसमें मोदी लहर के चलते कांग्रेस राजधानी दिल्ली की सभी 7 सीटे हार गई तथा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार भाजपानीत एनडीए के पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। पिछले 2019 के आम चुनाव में भी इसी कहानी की पुनरावृत्ति हुई और मोदी साकार ने सफलता के झंडे गाड़ दिए।

अब देखना है कि 2024 के इस बार के लोकसभा आम चुनाव में दिल वाले लोगों की दिल्ली किसे अपने जेहन में रख चुनाव में जीताती है। कमोबेश उसी दल को केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिलेगा। दिल वालों की दिल्ली क्या इस बार भी आम चुनावों के परिणामों के अपने अनूठे मिथक को कायम रखेगी?