नाग पंचमी: सनातन संस्कृति का जैव विविधता संरक्षण पर्व

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नाग पंचमी: सनातन संस्कृति का जैव विविधता संरक्षण पर्व

डॉ. विकास शर्मा
अगर आपको भी नागों के विषय मे भ्रांतियाँ हैं तो आइये दूर करते हैं। क्योंकि वास्तविक ज्ञान ही अधकचरे ज्ञान का इलाज है।
क्या आपको याद है..? बचपन मे नागपंचमी के दिन अपनी स्लेट पर कलम से नाग का चित्र बनाना फिर सारे विद्यार्थियों की स्लेट को बोर्ड के नीचे दीवार से सटाकर रखना, जिस पर गुरुजी द्वारा पूर्व से ही सुंदर विशालकाय शेषनाग बनाया गया होता था। अब एक एक करके सभी नागों का विद्यार्थियों द्वारा पूजन किया जाना। पूजन के बाद मुठ्ठी भर प्रसाद लेकर घर को चले आना, कितना सुखदाई होता था, रास्ते भर ये एहसास अलग बना रहता था कि आसपास ही नाग देवता हमे देख रहे हैं। कैसे उस समय कभी ऐसा हुआ नही कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता साक्षात दर्शन न दें। क्षेत्रीय संस्कृति की अगर बात करूं तो हमारे क्षेत्र में नाग पंचमी के दिन घर पर तबा नही रखा जाएगा अर्थात रोटी नही बनेगी क्योंकि इसे नाग की पीठ/ त्वचा का प्रतीक मानते हैं इसे गर्म करने से नाग को जलन होगी ऐसी मान्यता है। दाल नाग देवता की आंखे हैं यह भी नही बनेगी। और चावल उनके विषदंत हैं यह भी नही बनेगा। सिर्फ गांकड/ बाटी या कोहरी (पानी मे फुलाये और उबाले हुये गेंहू व चना) जैसे व्यंजन से भूख मिटानी होती थी। लेकिन अब यह विधि विधान न जाने कहाँ खो गया है। सिर्फ गाँव देहात में इसे मानने वाले रह गए हैं, शहर वालों ने तो जैसे भारतीय संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाने की कसम खा रखी हो। बड़े भयंकर भयंकर तर्क देते हैं भाई ये लोग। कोई कहता है, चावल के बिना पेट ही नही भरता, तो कोई कहता है, रोटी न खायें तो क्या भूखे मर जाये। कहीं कोई कहने लगता है, एक दिन नाग को पूज लो कल मारने के लिए ढूंढना, ऐसे त्योहार मैं नही मानता वगेरा वगैरा…
यह एक खास तर्क तो पढ़े लिखे लोगों को जैसे सबसे ऊँचे ओहदे पर स्थापित कर ही कर देता है। कुछ कट्टर सन्तातन विरोधी कहते हैं कि नाग दूध पीता ही नही है, उसे जबरदस्ती दूध पिलाये तो मर जायेगा। फिर ऐसा अंधविश्वास वाला त्यौहार मैं क्यों मनाऊं? पहली लाइन इतनी सत्य और सटीक है कि इसके चक्कर मे फिर न जाने कितने गलत पूर्वाग्रह पनपा दिए जाते हैं। यह 100℅ सत्य है कि साँप या नाग दूध नही पीते, इन्हें यह पिलाना हानिकारक ही होगा। लेकिन इनके संरक्षण के लिये सांकेतिक रूप से दूध पिलाने में क्या हर्ज है। जैसे कोई भी ईश्वर न तो अगरबत्ती का धुआँ महसूस कर सकता है और न ही किसी को वस्त्र ओढ़ा देने से उसकी ठंड मिट जायेगी, और न ही किसी आराध्य की माँस मदिरा पसंद है, फिर भी श्रद्धा स्वरूप ये सभी कार्य प्रचलन में हैं। तो फिर बुद्धिजीवियों के सारे ज्ञान चक्षु सिर्फ और सिर्फ हिन्दू तीज त्यौहारों पर ही क्यो खुल जाते हैं, इसका जबाब देने वाले कहीं नही मिलेंगे। लेकिन नाग पंचमी का रहस्य मैं आपको बताऊँगा। कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है, आखिर क्यों पत्थर की नाग मूर्तियो को दूध चढ़ाया जाता है? तो चलिए आइये जानते हैं, पूरा सच मेरे यानि Dr. Vikas Sharma Ethnobotanist के साथ। क्योंकि अधूरा ज्ञान जहर समान होता है।
इसीलिए ज्ञान का विस्तार करें। सनातन को समझे। वास्तव में नागपंचमी के दिन नाग प्रतिमा को दूध पिलाना केवल सांकेतिक श्रद्धा है, इसे कैसे सपेरों ने अपना रोजगार बना लिया और एकमात्र इस व्यवसाय का ही उदाहरण लेकर सनातन विरोधियों ने कैसे हमारे पवित्र पूजन पर्व पर उँगलियाँ उठानी प्रारम्भ की यह सोचने का विषय है। हमारी नयी पीढ़ी भी संस्कृति से दूर होने के कारण विज्ञान के नाम पर इसे धीमे धीमे स्वीकारने लगी और पारंपरिक तीज त्योहारों से दूरी बनाने लागू।इस विषय पर कुछ तथ्यों को ध्यान पूर्वक समझना और नई पीढ़ी को समझाना अत्यंत आवश्यक है।
नागबपंचमी के दिन किसान अपने खेत या मेड में स्थापित गार पत्थर की नागप्रतिमा पर दूध अर्पित करता है। जैसे हम अन्य पूजन अनुष्ठानों में प्रभु को भोग लगाते हैं या लड्डू आदि प्रसाद चढ़ाते हैं। यह दूध चढ़ाना भी इसी तरह है।
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इसके पीछे सह अस्तित्व और जीव संरक्षण की भावना छिपी हुई है। असल मायने में जिस तरह माँ अपने पुत्र को दूध पिलाती है, और उसका पालन पोषण- रक्षण भी करती है। ठीक सामर्थ्यवान मनुष्य जाति भी आज के दिन नाग और सर्पो का रक्षण और पोषण करने के लिए नाग देवता के समक्ष दूध चढ़ाकर नागवंश के संरक्षण का वचन लेते हैं। बदले में नाग देवता उनकी फसल की रक्षा आवश्यकता पड़ने पर हानिकारक कीटो से करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे पुत्र युवा होकर वृद्ध माँ-पिता की देखभाल करता है। हमारे खेत मे आज भी गुसाईं बाबा के नाम से जामुन के पेड़ के नीचे नागदेवता का स्थान है। यहीं कई गार पत्थर वर्षों से उन्ही के प्रतीक चिन्ह के रूप में पूजे जा रहे हैं। कोई भी खेती किसानी का कार्य उनकी पूजा और अनुमति के बिना सम्पन्न नही होता। आसपास के किसान भी भयवश और श्रद्धावश हमारी पूजा से पूर्व खेत से एक दाना भी नही लेते हैं। बहुत बड़े आकार के नाग देवता को देखकर उन्हें ही गुसाईं देवता मानकर सभी लोग वहाँ से दूर चले जाते हैं। आखिर इसे ही तो संरक्षण कहते हैं, जो हमारे तीज त्योहारों, ग्रामीण संस्कृति ने आस्तित्व में लाया।
क्यो मनाई जाती है नागपंचमी:
पौराणिक कथा के अनुसार जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे। जब जनमेजय ने पिता की मृत्यु का कारण सर्पदंश जाना तो उसने बदला लेने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया। नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की। इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया। आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उनपर कच्चा दूध डाल दिया था। तभी से नागपंचमी मनाई जाने लगी। वहीं नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। यहाँ पर स्पष्ट रूप से यह जानकारी उपलब्ध है कि नागों को दूध जलन रोकने या ठंडक के लिये चढ़ाया जाता है, दूध पिलाने का उल्लेख धार्मिक या पौराणिक कथाओं में भी शामिल नही है।
किन्तु सपेरों और फर्जी बोलीबुडिया धर्मविरोधी लेखकों ने इसे अपने फायदे के लिए चटपटी मसालेदार फिल्मों के रूप में परोसकर कई गलतफहमियां पेश की और खूब पैसा कमाया। नागिन, शेषनाग, नाचे नागिन गली गली, आई मिलन की रात जैसी कई फिल्में इसका जीवंत उदाहरण हैं, जिनमे नागों के विषय मे सर्वदा गलत और औचित्तहीन तर्क परोसे गये। लंबे समय तक सनातन को बदनाम करने का प्रोपेगेंडा चलाया गया। सनातन विरोधियों की धर्म विरोधी भावनाओ ने एक जैवसंरक्षण से जुड़े महान त्यौहार को कब कैसे अंधविश्वास बताना प्रारम्भ किया हम सबको कभी पता ही नही चला, और धीरे धीरे ज्ञान के अभाव में हमारे भाई बंधु भी उन्ही की बोली बोलने लगे। आप सभी आने बच्चो को नई पीढ़ियों को भारतीय संस्कृति की महानता और इसमी छिपे हुए प्रकृति संरक्षण के भावों को अवश्य बतायें। मैं और मेरे गुरूदेव Dr. Deepak Acharya सर ने सदैव हमारी क्षेत्रीय संस्कृति, तीज त्योहारों की महत्ता और पारंपरिक ज्ञान को ऐसे ही खंगाल कर आप सभी के समक्ष लाने का कार्य किया है। आज भारतीय संस्कृति, धर्म शास्त्रों और वेदों का अध्ययन दुनिया के कोने कोने में हो रहा है, हमारे पूजा पाठ, रीति रिवाजों में विज्ञान की प्रासंगिकता ढूंढी जा रही है और हमारे ही देश मे अब वे दृश्य दिखाई नही देते। लेकिन इतिहास गवाह है, कि उतार चढ़ाव आते रहते हैं। भविष्य पुनः भारतीय संस्कृति का होगा, पारंपरिक ज्ञान का होगा।
Dr. Vikas Sharma (डॉ. विकास शर्मा )
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
नाग चित्र- साभार श्री Omprasad Sohani सर।🙏
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