Cigarette and Woman: स्त्री सशक्तिकरण का भ्रम- एक मार्केटिंग चाल की सच्चाई

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Cigarette and Woman: स्त्री सशक्तिकरण का भ्रम- एक मार्केटिंग चाल की सच्चाई

बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक के अंत का समय था. पहला विश्व युद्ध बस पूरा हुआ ही था. अमेरिका में भी जीवन पुराने ढर्रे पर लौट रहा था. लेकिन, सामान्य होते जीवन के बीच अमेरिकन टोबैको कंपनी के मालिक जॉर्ज वाशिंगटन हिल चिंतातुर थे. अमेरिकन टोबैको कंपनी ही अमेरिका की सबसे प्रमुख ब्रांड की सिगरेट लकी स्ट्राइक्स बनाती थी. युद्ध के दौरान जितने पुरुषों को सिगरेट पीने वालों में बदला जा सकता था, बदला जा चुका था. समस्या यह थी कि अब और नए ग्राहक कहाँ से लाए जाएं. एक ऐसे समाज में जो पूँजी को पूजता हो, नए ग्राहक लाने का सवाल सीधे-सीधे कम्पने के मुनाफ़े से जुड़ा हुआ था.
हालाँकि, वाशिंगटन हिल जानते थे कि उन्हें सिगरेट बेचने के लिए और ग्राहक कहाँ से मिल सकते हैं. आख़िरकार, उनके सामने लगभग-लगभग आधी जनसंख्या थी जो सिगरेट नहीं पीती थी. अमेरिका की इस आधी जनसंख्या ने सन 1920 में, अमेरिका के संविधान में 19 वां संशोधन करवा कर वोट डालने का ताज़ा-ताज़ा अधिकार पाया था. इस संशोधन ने उसे राजनीतिक सत्ता और सामाजिक स्वतन्त्रता का नया-नया स्वाद चखाया था. यह आधी जनसंख्या थी: स्त्रियाँ.
वाशिंगटन हिल ने इस बदलते सामाजिक परिदृश्य को एक व्यावसायिक अवसर के रूप में देखा. लेकिन, वाशिंगटन हिल के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि स्त्रियों को सिगरेट पीने के लिए राज़ी कैसे किया जाए. दरअस्ल, उस समय समाज में वेश्याएं ही सिगरेट पीती थीं. रेड लाइट इलाकों की गलियों में, किसी लड़की का हाथ में सिगरेट लिए खड़ा होना, उस लड़की की उपलब्धता का कोड था. ऐसे में किसी संभ्रांत महिला का सिगरेट पीना तो छोड़ उसे हाथ लगाने का भी सवाल ही नहीं था.
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वाशिंगटन हिल इसी पशोपेश में थे कि कोई ऐसी तरकीब निकाल लें जिससे स्त्रियों के सिगरेट पीने को न केवल समाज में सर्वमान्य बनाया जा सके, बल्कि, उसे पॉपुलर भी बना दिया जाए तो बस क्या ही कहने! इसी उधेड़बुन में कि समाज की सोशल इन्जीनियरिंग किस तरह से की जाए, अपनी समस्या को लेकर वाशिंगटन हिल, एडवर्ड बर्नेज़ की पास गए.
एडवर्ड बर्नेज़, तब तक प्रोपगैंडा और पब्लिक रिलेशंस के शीर्ष पुरुष हो चुके थे. संयोग यह था कि एडवर्ड बर्नेज़, सिग्मंड फ्रायड के भांजे थे. एडवर्ड बर्नेज़ ने सिगरेट बेचने के लिए विज्ञापन की एक कैम्पैग्न ही नहीं चलाई, बल्कि, सिगरेट पीने की सांस्कृतिक अर्थ में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया.
बर्नेज़ जानते थे कि संभ्रांत स्त्रियों में सिगरेट पीने से जुड़ी हुई वर्जनाओं को तोड़ने के लिए यह ज़रूरी है कि सिगरेट पीने को न केवल स्वीकार्य बनाना होगा, बल्कि, उन्हें स्त्रियों को वोट देने की ताज़ा-ताज़ा मिली स्वतन्त्रता और समानता के नए प्रतीक के रूप में परिभाषित करना होगा. सन 1929 में, उन्होंने न्यूयॉर्क शहर के ईस्टर संडे परेड के दौरान एक सुनियोजित प्रचार अभियान की योजना बनाई.
बर्नेज़ ने न्यूयॉर्क के उच्च वर्ग की फैशनेबल युवतियों के एक समूह को पैसे देकर काम पर रखा, और उन्हें काम दिया कि वे खुलेआम सिगरेट पीते हुए ईस्टर संडे परेड में शामिल हों। बर्नेज़ ने इन सिगरेटों को का नाम दिया: “टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम यानि स्वतंत्रता की मशालें”.
इस बात का ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रचार हो इसके लिए बर्नेज़ ने फोटोग्राफरों और पत्रकारों को पहले से ही सूचना दे दी थी, ताकि इस ‘घटना’ का धुंआधार मीडिया कवरेज भी सुनिश्चित हो सके।
ईस्टर परेड में सार्वजनिक रूप से सिगरेट पीने वाली संभ्रांत महिलाओं की छवि पूरे देश में पहले पन्ने की खबर बन गई। इसने एक सांस्कृतिक बदलाव को जन्म दिया, जिसने सिगरेट पीने को महिला सशक्तिकरण के एक छद्म प्रतीक के रूप में स्थापित किया। यह अभियान सफल रहा: सन 1930 के दशक में महिलाओं के बीच सिगरेट की बिक्री में धमाकेदार बढ़ोतरी होने लगी।
मानवता के इतिहास में यह पहला मौक़ा था, जब व्यावसायिक हितों को साधने के लिए जनमत को नए सिरे से गढ़ने के लिए इतने सुनियोजित तरीके से एक कुत्सित चाल चली गई थी.
तो, आज जब अंग्रेज़ी की एक प्रतिष्ठित लेखिका की नई-नई आई पुस्तक के आवरण पर उनका युवावस्था का सिगरेट पीता हुआ चित्र देखता हूँ तो मुझे स्त्री सशक्तिकरण की याद नहीं आती, बल्कि, मुझे न्यूयॉर्क की ईस्टर सन्डे की परेड की उन फैशनेबल युवतियों की ही याद आती है, जिन्हें एडवर्ड बर्नेज़ ने, एक व्यवासायिक हित को साधने के लिए पैसे देकर काम पर रखा था.
यह कदाचित दुर्भाग्य ही है कि समाज में स्त्री की समानता और स्वतन्त्रता के उदात्त लक्ष्यों को लेकर चलने वाले आन्दोलन, अमूमन ऐसे छद्म प्रतीकों को न जानते हुए गोद ले लेता है, जिनका जन्म उन उदात्त लक्ष्यों की सेवा के लिए नहीं, बल्कि, किसी उद्योग-धन्धे के तात्कालिक व्यावसायिक हितों को साधने के लिए होता है.
स्त्री समानता के आन्दोलनों में ऐसा एक बार नहीं बल्कि, कई-कई बार हुआ है. कभी समय मिला तो उनके बारे में भी आगे लिखूंगा.
(चित्र में एडवर्ड बर्नेज़ और उनके विज्ञापन)
पुनश्च: सिगरेट पीने से सिगरेट पीने वाले पुरुषों और स्त्रियों के फेफड़े तो खराब होते ही हैं, लेकिन उन लोगों के भी फेफड़े खराब होते हैं, जो सिगरेट नहीं पीते, विशेषकर बच्चों के.