हमारे संस्कारदाता, पिता श्रीराम जोशी

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हमारे संस्कारदाता, पिता श्रीराम जोशी
लेखक – हरि जोशी
A father always survives in the form of his children. एक पिता अपने बच्चों के रूप में हमेशा जीवित रहते हैं , इसीलिये मैं उन्हें दिवंगत नहीं मानता |उनके गुण हमारी नस नस में हैं|मैं भी वैसा ही कर्मठ और ईमानदार था इसीलिये मध्य प्रदेश शासन से लड़ पाया |मेरे पिता का जन्म ग्राम खूदिया में सन १९०२ में हुआ था , जहाँ हमारा भी हुआ था |बड़े भाई डॉ मूलाराम जोशी का जन्म भी १९३४ में उसी गाँव में और मेरा जन्म भी १९४३ में उसी गाँव में हुआ था |पिताजी का जीवन इतना सात्विक था कि वह ८३ वर्ष की उम्र तक कभी भी अस्पताल में दाखिल नहीं हुए | पहली बार और आखिरी बार वह किसी अस्पताल में भोपाल में दाखिल हुए और वहीं उनका निधन सितम्बर १९८५ में हुआ |एक भी दिन बिस्तर में पड़े नहीं रहे |
मेरी माँ भी गोरी ऊंची पूरी ५ फुट ८ इंच की बढ़िया स्वास्थ्य लिए थी |हम लोग बैलगाड़ी से अपने गाँव खूदिया से गोगिया जाते थे,वह अपने माता पिता की डाले परिवारर की एक मात्र संतान थी |पिताजी गाँव के पटेल भी थे अतः ग्रामीणों के झगडे भी सुलझाया करते थे |ऐसी ही संगीत , पंचायत तथा बच्चों को बार बार आकर हरदा में देखने जैसी अन्य व्यस्तताओं के बीच माँ ही नौकरों चाकरों से सारा काम लेती थी | नियम से शाम को रामायण पढ़ती थी |
पिताजी तो बीडी सिगरेट तम्बाखू यहाँ तक कि चाय का भी सेवन नहीं करते थे |मात्र लौंग इलायची खाते थे |हमारे गाँव में जो ड्राइंग रूम है , वह उस समय के चूने और सीमेंट का बना हुआ पक्का और काफी बड़ा है ,२०० लोग एक साथ उसमें बैठ सकते हैं , जिसे पिताजी के बड़े भाई इंजीनीयर रामकरण जोशी जी ने बनवाया था |उस ड्राइंग रूम को आज भी बंगला कहा जाता है |उसीमें हारमोनियम ढोलक ,तबले , बांसुरी , मंजीरे रखे होते थे , आज भी यथावत हैं |तब भी शाम को संगीत सभा जुटती थी ,आज भी कभी कभी जुट जाती है | हम लोगों में संगीत के जो थोड़े बहुत लक्षण हैं वे बचपन के संस्कारों की ही देन है | हमारी पैतृक खेती १०५ एकड़ थी | पिता जी के सबसे बड़े भाई डॉक्टर एन जी जोशी थे जो धार के प्रसिद्ध डॉक्टर दुबे के सहपाठी थे , और उन्होंने भी तत्कालीन LMP डिग्री हासिल की थी |बाद में वह नागपुर के शासकीय अस्पताल केजेल प्रभारी होकर रिटायर हुए |उनके काल में पट्टाभिसीतारमैया वहां थे |
हमारे पिताजी श्रीराम जोशी जी ने ग्वालियर में बड़े भाई केशोराम गोविन्दराम जोशी जी के पास रहकर कई वर्ष  पढ़े |वहां इन्होने प्रसिद्ध संगीतकार लक्ष्मण शंकरराव पंडित से संगीत की शिक्षा ली | किन्तु सात भाइयों में वह सबसे छोटे थे , और उन्हें वृद्धावस्था के चलते हमारे दादाजी गोविन्दराम जोशी जी ने हाई स्कूल की पढ़ाई छुड़वाकर पिताजी को गाँव खुदिया बुला लिया ,ताकि वह १०५ एकड़ ज़मीन संभाल सकें |

मेरे परिवार में पिताजी का अनुशासन इतना कड़ा था कि, मैं कॉलेज में व्याख्याता था, और मेरे पिताजी ने धार जाकर मेरे लिए स्वयं ही अकेले जाकर परिवार देखा, कन्या देखी, नारायण राव ज्योतिषी जी से कुंडलियों का मिलान कराया और विवाह सुनिश्चित कर दिया । मुझे विवाह से पहले अपनी पत्नी को देखने की अनुमति नहीँ थी। पिताजी के आदेश का पालन यथावत हुआ।

पढाई लिखायी की परंपरा हमारे परिवार में पुरानी है |ग्वालियर में सिंधिया सरकार के सचिवालय में नियुक्त केशोराम गोविन्दराम जोशी जी ने दो पुस्तकें लिखी (१) अहिल्याबाई का चरित्र तथा (२)माधव सुमनांजलि |उनके पुत्र मधु जोशी “प्रदीप “जो वीरेन्द्र मिश्र, मुकुट बिहारी “ सरोज “के समसामयिक और मित्र थे |उन्होंने भी दो पुस्तकें लिखी थी जिनमें एक किताब “ पथ के प्रदीप “ थी |बड़े भाई डॉक्टर मूलाराम जोशी ने तो अनेक पुस्तकें लिखी , और अनेक सम्मानों से विभूषित हुए |उन्होंने अंग्रेज़ी में D litt किया था | उनका जीवन भी बहुत संघर्षपूर्ण और प्रेरक रहा | यह सब पारिवारिक संस्कारों के कारण संभव हुआ |

पिताजी को ज्योतिष का ज्ञान था। उन्होंने मेरी जन्म कुंडली में केंद्र में गुरु होने पर कहा था, जिस पत्रिका के केंद्र में बृहस्पति हो उसका दुश्मन भी क्या बिगाड़ लेगा।और देखिये सरकार ने लेखन के कारण ही मुझे सेवा से निलंबित किया , मानहानि का दावा चलाया, चेतावनियों दी, बार बार तबादले किये किन्तु मेरा कुछ न बिगाड़ पाई ।मुझे हर बार लड़ना तो पड़ा ?

एक परंपरा और हमारे परिवार में थी |पिताजी के एक भाई साधु हो गए थे , जो धूनीवाले दादा के साथ केशवानंद महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए |मेरा छोटा भाई दयाशंकर जिसने पूरा अध्ययन मेरे पास रहते हुए किया | उसने डिप्लोमा फारमेसी किया |केंद्र सरकार में अच्छी नौकरी में था , दिल्ली में रहा ,२० साल की नौकरी पूरी की , वह अविवाहित ही रहा क्योंकि उसे भी साधु बनना था |वह ऋषिकेश में स्वामी ब्रह्म स्वरूपानंद के नाम से विख्यात हुआ |गत वर्ष उसका परलोक गमन हो गया |
मैं अमेरिका , मुंबई ,दिल्ली भोपाल सब जगह रहता हूँ किन्तु मुझे जिस सुख की अनुभूति अपने गाँव खूदिया में होती है वैसी अनुभूति और कहीं नहीं होती | वहां भी आजकल साथ में लैपटॉप होता है , प्रति सुबह कुछ न कुछ लिख ही लेता हूँ |लेखन मुझे भी सुख देता है , मैं कहीं भी रहूँ |
यह जो मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह हैं , इनके दादा टोडर शाह मकडाई स्टेट के राजा थे | उनके बेटे देवीशाह और उनके बेटे हैं विजय शाह |राजा टोडर शाह का महल हमारे घर से ३०० मीटर की दूरी पर है |राजा के बाद गाँव में सबसे अधिक ज़मीन हमारी थी |पिताजी और राजा टोडर शाह को अनेक अवसरों पर विचार विमर्श करते मैंने देखा था |

पिताजी का जीवन अत्यंत सात्विक था। वह बहुत अच्छे तैराक भी थे। 83 की उम्र में सन 1985 में रक्षा बंधन के दिन गांव की नदी में वह सब के साथ तैरने चले गए । भरपूर पानी था।ठंडा भी। देर तक नहाते रहे। वहीँ निमोनिया ने पकड़ लिया, बीमार हुए। भोपाल के निरामय अस्पताल.में दाखिल हुए और अगले दिन ही उनका स्वर्गवास हो गया।मेरी पोस्टिंग उज्जैन के शासकीय इंजिनीयरिंग कॉलेज में थी। मैं भी समय से पहुंच गया था, उनसे अच्छी बात भी की किन्तु अगले दिन वह दिवंगत हो गये।

पिताजी ने हम लोगों को ईमानदारी से जीवन यापन करने की सीख हमेशा दी |इसी कारण हम लोग जीवन में व्यवस्थित और शांति से जिए |
अपने सीमित साधनों में संतोष करना , और किसी अच्छे लक्ष्य को लेकर निरंतर कर्मठ बने रहना , पिताजी का ही दिया हुआ मूल मन्त्र है |

डॉ हरि जोशी