तो मध्यप्रदेश को अब विक्रमादित्य से पहचानेगा देश…

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तो मध्यप्रदेश को अब विक्रमादित्य से पहचानेगा देश…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

विक्रमादित्य के नाम से उज्जयिनी को तो जाना जाता है, लेकिन अब मध्यप्रदेश को विक्रमादित्य के नाम से जाना जाएगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. मोहन यादव ने विक्रमादित्य की जीवनगाथा को जन-जन तक पहुंचाया है। और अब अतीत के गौरवशाली इतिहास को जन सामान्य के सामने लाने के लिये 2 हजार वर्ष पहले सम्राट विक्रमादित्य द्वारा सुशासन के सिद्धांतों पर स्थापित शासन संचालन व्यवस्था और उनकी कीर्ति पर केन्द्रित महानाट्य की प्रस्तुति दिल्ली के लाल किले पर 12-13-14 अप्रैल को होने जा रही है। यह मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सोच और प्रयासों से ही संभव हो रहा है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विरासत से विकास की ओर’ ध्येय वाक्य पर अमल के जरिए जन-जन के विचारों में विक्रमादित्य आदर्श शासक के रूप में स्थापित होंगे।

सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल सुशासन व्यवस्था का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। विक्रमादित्य द्वारा किये गये नवाचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं। 2000 साल पहले सम्राट विक्रमादित्य ने गणतंत्र की स्थापना की थी।विक्रमादित्य की दानशीलता, वीरता और प्रजा के प्रति अद्भुत संवेदनशीलता थी। सम्राट विक्रमादित्य की न्यायप्रियता आदर्श उदाहरण है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह विकास कार्यों में विरासत को महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार सुशासन को ध्यान में रखते हुए विकास और जनकल्याण की सभी गतिविधियां संचालित कर रही है। सम्राट विक्रमादित्य के विराट व्यक्तित्व को सबके सामने लाने के लिए महानाट्य की कल्पना की गई है।

 

महानाट्य का मंचन गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने लाने का मध्यप्रदेश सरकार का एक अभिनव प्रयास सराहनीय है। सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल, सुशासन व्यवस्था का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। वे एकमात्र ऐसे शासक थे, जिनके जीवन के विविध प्रसंगों से आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं। उनके द्वारा किए गए कार्य और नवाचार आज भी प्रासंगिक हैं। वर्तमान में हिजरी और विक्रम संवत प्रचलन में हैं। इसमें विक्रम संवत उदार परंपरा को लेकर चलने वाला संवत है, अर्थात संवत चलाने वाले के लिए शर्त है कि जिसके पास पूरी प्रजा का कर्ज चुकाने का सामर्थ्य हो, वही संवत प्रारंभ कर सकता है। सम्राट विक्रमादित्य ने अपने सुशासन, व्यापार-व्यवसाय को प्रोत्साहन और दूरदृष्टि से यह संभव किया विक्रमादित्य ने विदेशी शक आक्रांताओं को पराजित कर विक्रम सम्वत् का प्रारंभ 57 ईस्वी पूर्व में किया था। विक्रम संवत के 60 अलग-अलग प्रकार के नाम हैं। संवत 2082 को धार्मिक अनुष्ठानों के संकल्प में “सिद्धार्थ” नाम दिया गया है। ये 60 नाम चक्रीकरण में बदलते रहते है। विक्रमादित्य का न्‍याय देश और दुनिया में प्रचारित हुआ। यह सम्वत् भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आधार वाला कालगणना सम्वत् बन गया, जो आज भी प्रचलित है।

इतिहास पढ़ने वालों ने विक्रमादित्य के बारे में पढ़ा है। पर वर्तमान पीढ़ी कहीं न कहीं विक्रमादित्य के बारे में अनभिज्ञ है। ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार के यह प्रयास निश्चित तौर पर सम्राट विक्रमादित्य को जन-जन तक पहुंचाएंगे। मध्यप्रदेश विरासत से विकास का अध्याय लिखेगा तो विक्रमादित्य के नाम से मध्यप्रदेश को पहचाना जाएगा। यह मध्यप्रदेशवासियों के लिए गौरव की बात है

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