40.In Memory of My Father: पिता की धरोहर आज भी मेरे साथ है

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मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता

पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 40 th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्र आलीराजपुर की लेखिका माधुरी सोनी मधुकुंज को .मधु का यह दुःख बहुत ही मार्मिक है कि उनका अपने पिता से तीन साल से अबोला था ,वे नाराज थी अपने पिता से लेकिन जब वे नाराजगी से बाहर आयीं तो बोलने के लिए पिता संसार से बिदाई ले चुके थे और उनका अबोला ताउम्र का हो गया 

पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ!

कभी पिता के घर मेरा जाना

माँ बहुत मनुहार से कहती

पिता से मिलने दालान तक नहीं गई

जा! चली जा बिटिया, तुम्हें पूछ रहे थे

कह रहे थे कि कब आई! मैंने उसे देखा नहीं!

मैं बेमन ही भतीजी के संग बैठक तक जाती हूँ

पिता देखते ही गद्गद होकर कहते हैं :

अरे कब आई! खड़ी क्यों आकर बैठ जाओ

40.In Memory of My Father: पिता की धरोहर आज भी मेरे साथ है

 

साइकिल के डंडे पर मुझे बैठाकर आप अक्सर घुमाने ले जाते,उस पल को आज आंखे बंद कर महसूस करती हूं जैसे ब्रह्माण्ड की सैर की मैंने ।हां पिता ही तो ब्रह्म है हर बेटी के लिए जो बेटी के जीवन सृजन के आधार होते हैं।
मेरे पापा का कथन आज भी मुझे उतना ही प्रेरणा देता हे “”शिक्षा और अच्छी पुस्तकें सागर की गहराई से भी गहरी होती है, ज्ञान का सागर कभी डुबाए तो तार देता हे आपका व्यक्तित्व “”
म्हारी लाड़ली मां और दादी की मीठे उलाहना पर उनका सटीक वाक्य यही होता था। पिता के संघर्ष को नादान बचपन क्या जाने? परंतु आज पिता का संघर्ष स्वयं के बच्चों के पिता की कर्मठता से अनुमान लगाती हूं । कर्तव्य निष्ठ, समय के साथ चलना, स्पष्ट वादी, आत्म सम्मान से भरपूर ,जैसे गुण पापा के मुझमें भी हे।

बचपन में ही सारे धार्मिक स्तुतियों, श्लोक और लोकगीत सिखाकर मुझे मेरी पहचान दिलाने में पिता ही प्रमुख रहे। ये धरोहर आज भी मेरे साथ है ही ।
बरगद सा हृदय पापा का संयुक्त परिवार की जड़ों को पोषित करता सा सदा रहा। दादी, बुआ, भानजे, काका सभी एक छत के नीचे साथ रहते।

मां तो सीधी सरल राधिका रही पर पापा अपने नाम के अनुरूप सुजान ही रहे। बातें यादें तो पिता की हर बेटी के लिए हृदय में पनपता सुमन होती हे, जिसे हर बेटी जीवन के उपवन में सजाकर रखती है।नागदा जंक्शन के बिड़ला जी की औद्योगिक नगरी में कार्यरत पिता ,श्री सुजानमल जी सोनी पेशे से छोटा मोटा पुश्तैनी कार्य चाँदी पाजेब गठना, कड़े बनाना भी वक्त निकालकर करते ,कम ही करते परंतु पुश्तैनी धरोहर कार्य की बचाना चाहिए ,पांचों उंगलियों में कला व्यक्ति की कब काम आ जाए ऐसी सोच थी पिता की ।
गरीबी को क़रीब से झेले पिता दादी के साथ अन्य भाइयों बहनों के साथ स्वयं  शिक्षा पाने के अधिकार को ध्यान में  रखते हुए  काम करते हुए शिक्षित हुए। सीखने की कोई उम्र नहीं होती ,इंसान की उंगलियों में हुनर हो तो अपने हाथ जगन्नाथ के बराबर हैं, ऐसा पापा मानते थे। दादी सूरज नाम के अनुरूप तपस्वी कर्मठ रही। ऊंचे ओहदे पर ताऊ जी, काका ,बुआ की जिम्मेदारी के साथ पिता की भूमिका भी मेरे पापा ने ही निभाई।दादी ग्रेसिम बाल मंदिर बिड़ला जी का नर्सरी स्कूल में चपरासी पद पर भले ही रही पर उनका  सम्मान  बहुत था पापा में जन्मजात कर्मठता दादी से मिली । चतुर पिता नाम के अनुरूप भी रहे ।उच्च विचारों की सोच ने कलम को भी थामे रखा था। ग्रेसिम कार्यरत संस्थान की ग्रेसिम संदेश पत्रिका में कभी कभी लेखन भी करते ही थे पापा ।

बचपन में ही राष्ट्र प्रेम की घुट्टी पिता ने हम भाई बहनों में भी भर दी थी छोटे भाई को संघ की शाखा में संध्या कालीन नित्य ले जाते तब कभी कभी  मेरी जिद भी होती थी।पटवर्धन अंकल जिन्हें हम अन्ना कहते थे ,उन्हीं के आदेश पर पथ संचलन में मुझे पापा तैयार कर ले गए थे।  नन्ही बच्ची मैं आकर्षक का केंद्र  थी ।  प्रतीक चिन्ह शाखा का दंड थामे आगे आगे चलती ,पिता को गर्व भी होता और घर भर के तानों का भी सामना करना होता था.

‘अरे !सोनीजी बेटी पराई प्रीत होवे इसे शाखा में लाना उद्दंड बनाने जैसा होगा ।’पिता कुछ न कहते हंसी में  टल जाती लोगों की बातें .

हर पिता अपने भावी दामाद में वो छवि जरूर देखता है जो उसके हृदय के टुकड़े को प्यार और  सम्मान दे. अच्छे से देखभाल करे।  पापा ने भी मेरे लिए योग्य वर तलाश कर मुझे ब्याह दिया। गृहस्थी की गाड़ी कभी कभी डगमग भी होती तो पापा आशाओं का दीप प्रज्ज्वलित कर देते ।विवाह पश्चात जब भी विपरीत परिस्थिति  रही तब पिता की प्रेरणा, हिम्मत और उनका स्नेह मुझमें विश्वास का संबल बनता था.

क्योंकि हर पिता अंदर से खालीपन शायद बेटी के ब्याह के बाद ही महसूस करता हे। वैसे भी असमय भाई की मृत्यु ,बहन की मृत्यु के दुःख  को झेल चुके पापा मेरे पथ प्रदर्शक बने ।वे मुझे समझाते जैसा हर परिवार में चार बर्तन खड़कते ही हैं पर करीने से सजे तो रसोई घर की शोभा बढ़ाते हैं वैसे ही मेरे पापा की सीख  मुझे कहीं न कहीं  दंश जैसी चुभने लगी थी. मुझे लगने लगा था  कि ब्याह बाद सच में बेटी पराई हो जाती हे। यही सोच कर  में पिता से मनमुटाव कर बैठी.उम्र की अवस्था भी परिपक्व नहीं थी शायद । मेरी नाराज़गी मायके से थी सो पापा कभी कभी व्यंग्य बाण छेड़ देते । पिता के कुछ जुमले थे जो मुझे पसंद नहीं थे .जैसे शिक्षा विनम्र और सम्मान के साथ आपका व्यक्तित्व सुंदर बनाती हे शर्त यही कि सदा नम्र रहो ।बेंडी , थारे हज़ार बार कियो,में हूं अभी ! तु चिंता क्यों करे ?तू म्हारी बेटी हे,शेर बेटी ,

अणि जमाना में अपनी धाक जमा जे नाम और करम से ,पर सम्मान घर को पेला की जे ।

में मरी गयो तो याद रखजे ऊ दन बेटा??कभी नि भूलेगा तू ऊ दन ?

अकड़ की लकड़ी भी एक दिन टूटती है ,यह अंतिम दर्शन में ही देखने को मिला मुझे जब सारी अकड़ मेरी जाती रही आंसुओं संग रुदन विलाप में ।
केवल यही आग आजतक बुझी नहीं कि न में अंतिम दर्शन मां के कर पाई न पापा के ?

आज भी वो दिन मुझे कितनी पीड़ा देता हे जैसे खुशियां मेरे द्वारे आकर चली गई । आज भी मुझे मां ,पापा की ज़रूरत लगती है।

उस दिन मेरी बेटी आज चहक रही थी कि, आज आपको नानाजी से फोन से बात करनी ही पड़ेगी ,आज का दिन तो खास हे न मम्मी ।आपकी विवाह वर्षगांठ जो है! पर विडम्बना ही हो गई मैंने बेटी के कहने पर भी पापा से बात नहीं की .

कुछ मिनट पश्चात अचानक ,मधु जल्दी ही घर से बाहर जाना हे अभी ! पति के आदेश ने स्तब्ध कर दिया . चलो जल्दी ।
बिना कुछ बताए लंबा सफ़र बोझिल सा अनमने सवालों रहस्यों की डगर और पति के फोन पर बातें ,आ रहे हे ,पहुंचने वाले हे ,तुम तैयारी पूरी करो … सीधे घाट ही पहुंचेंगे गाड़ी लेकर , नहीं बताया उसे …बैठी है गाड़ी में ?
में बस सुने जा रही थी ।
सास और नंद बाई सा के सामने कुछ बोलना या ज्यादा पूछताछ एक कायदा होता था तब ।
अरे ये तो खाचरोद आ गया ,बाईपास से गुजरते राह पर में चहक उठी , कि नज़दीक ही मायका है नागदा ।
पर ये खबर नहीं थी कि मेरी चहक को विराम लग जाएगा।
नागदा बायपास से सीधे घाट की और हृदय की बेचैनी ने मुझे पति को दो शब्द चिल्लाने पर मजबूर कर दिया।
क्या हो गया ?बताओ न ।
जैसे ही गाड़ी से नीचे उतरी , भाई छोटा बिलखने लगा सारे रिश्तेदारों में मेरी नजर पापा को ढूंढ रही थी। ताऊजी भी चुप ?
हाथ पकड़ पति ने मेरा मुझे अपनी बाहों में कसकर यही कहा … विदाई पापा की आज हो रही ,मधु!!!
संध्या का समय सूर्य की लालिमा भी कुछ ताप लिए हुए जैसे प्रतीक्षा कर रही थी एक बेटी की जो पिता से तीन वर्ष से अबोली रही । हृदयाघात अचानक होने की वजह से पापा गिरे और ऐसे गिरे कि उनका मुख भी देखना संभव नहीं हुआ।
पीड़ाएं कितनी भी इंसान को तोड़ दे परंतु विदाई की पीर ,विछोह और कभी न भूलने वाली बात होती हैं।

आंखे सजल हो गयी
सबकुछ ही तो था पास मेरे
#सबकुछ ही,जब आप थे
ख़ाली पन अब बहुत है
#आप नही #अब
वो दिन अब भी सोचकर सिहर उठती हूँ, जब आप बहुत ख़ुश थे,हर पिता का अरमान कि बेटी अच्छे घर मे ब्याही जाए।सारे अरमान आपके संजोए आपने….
#फूलों से सजाया मुझे
दुल्हन बनी में
सुर्ख जोड़े में
गहनों से #सजी धजी में
#फिर अचानक
फूलों से #सजाया आपको सभी ने
मेरी राह तकते तकते शायद
#अंतिम दर्शन की घड़ी को
#तरसती मेरी निगाहें
आज भी….
भूल नही सकती वो दिन
#विदाई के
एक तारीख #रुलाती है मुझे
आज भी # मेरी विदाई आपने की
ओर जमाने ने#विदाई आपको दी।।

मेरी विवाह वर्षगांठ ओर आपका उसी दिन ईस संसार से
#जाना ,भूल नही पाई अब भी
आपकी बेटी #मधु ,

श्रद्धा नमन स्नेह भरा ,जहां भी हो आप मेरे सबकुछ मेरे जादू ,मेरे साथ आज भी मेरी कलम में ,मेरी चिंतन में ,मेरे नाम में वजूद आपका
पापा
आपकी मधु
माधुरी सोनी मधुकुंज
आलीराजपुर ।