मध्यप्रदेश में सधे ‘मोहन’ के स्वर…

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मध्यप्रदेश में सधे ‘मोहन’ के स्वर…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

मंदिर-मस्जिद के बोलों के बाद शुरू हुई देशव्यापी बहस के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत के मध्यप्रदेश में स्वर सधे-सधे नजर आए। हालांकि रण संगीत परंपरा के जरिए उन्होंने पांडवों के युद्ध घोष को संघ द्वारा जागृत कहने की बात कही। वहीं जयघोष की जड़ में शांति का संदेश दिया।मोहन ने कहा कि जयघोष की जड़ को देखें। राष्ट्र निर्माण के लिए लोग संघ से जुड़ें। लोगों में राष्ट्र निर्माण का भाव जागृत होगा तो एक दिन सारी दुनिया सुख और शांति का युग देखेगी। पर एक बात साफ है कि मोहन अब संघ की विचारधारा को 21वीं सदी में नए क्षितिज पर ले जाने को उत्सुक हैं। मस्जिदों के नाम पर राजनीति न करने के उनके बयान पर संघ के दो मुखपत्र आमने-सामने आ गए हैं। हिन्दी मुखपत्र पांचजन्य ने भागवत के बयान का समर्थन किया था, तो अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ ने मोहन को आइना दिखाया था। प्रक्रिया मंथन के दौर में है। इस बीच इंदौर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष के आयोजन स्वर शतकम के समापन कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सधे स्वरों में संघ का लक्ष्य साफ कर दिया।

भागवत ने कहा कि हमारी रण संगीत परंपरा, जो विलुप्त हो गई थी, अब फिर से लौट आई है। महाभारत में पांडवों ने युद्ध के समय घोष किया था, उसी तरह संघ ने भी इसे फिर जागृत किया है।भागवत ने कहा कि आयोजन मेें इस जयघोष का प्रदर्शन इसलिए किया गया कि समाज इस जयघोष की जड़ को देखे। राष्ट्र निर्माण के लिए लोग संघ से जुड़ें। लोगों में राष्ट्र निर्माण का भाव जागृत होगा तो एक दिन सारी दुनिया सुख और शांति का युग देखेगी। संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि संघ के कार्यक्रम प्रदर्शन के लिए नहीं होते। उनसे जुड़कर मनुष्य की संस्कृति, स्वभाव और संस्कार बनते है।

भागवत ने कहा, “संघ जब शुरू हुआ, तब शारीरिक कार्यक्रमों के साथ-साथ संगीत की भी आवश्यकता पड़ी थी। उस समय मिलिट्री और पुलिस से ही संघ ने संगीत सीखा था। यह सब देशभक्ति के लिए किया गया।” भागवत ने कहा, “हमारा देश दरिद्र नहीं है, हम अब विश्व पटल पर खड़े हैं। संघ के कार्यक्रमों से मनुष्य के सद्गुणों में वृद्धि होती है। डंडा चलाने का उद्देश्य झगड़ा करना नहीं है, बल्कि यह उस स्थिति से निपटने के लिए है जब कोई हमारे सामने आकर गिर जाए, तो हम उसकी मदद कर सकें। उन्होंने कहा, लाठी चलाने वाले व्यक्ति को वीरता प्राप्त होती है, वह कभी नहीं डरता। इस दौरान संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों को देशभक्ति और अपने कर्तव्यों को निभाने का संदेश भी दिया। जो दुनिया में सबके पास है वो हमारे पास भी होना चाहिए। हम किसी से पीछे नहीं हैं। देश भक्ति के कार्य करने के लिए गुण के साथ वृत्ति भी आवश्यक है। संघ के कार्यक्रमों से मनुष्य के सद्गुणों में वृद्धि होती है। संघ लाठी चलाना प्रदर्शन के लिए नहीं सिखाता। यह एक कला है और लाठी चलाने से व्यक्ति को वीरता आती है। डर का भाव खत्म हो जाता है।तो संगीत वादन भी देशभक्ति से जुड़ा है। दूसरे देशों में देशभक्ति संगीत से भी प्रदर्शित होती है। हम दुनिया में किसी से पीछे न रहे,हमने भी घोष की उपयोगिता को समझा इसलिए संघ ने भी घोष दल बनाए।

कुल मिलाकर महाराष्ट्र से जिस बहस को भागवत ने जन्म दे दिया है। वह विचार शायद अभी मथकर मक्खन बनने की प्रक्रिया में हैं। इस बीच मध्यप्रदेश में मोहन भागवत ने सधे स्वरों में रणघोष के साथ शांति का संदेश दे दिया। तो संघ का महत्व भी बता दिया। स्वर शतकम से भी उम्मीद यही थी कि भागवत मस्जिद-मंदिर की लाइन को आगे बढाएंगे, पर शांति के टापू ह्रदय प्रदेश के स्वच्छतम शहर इंदौर में मोहन एकदम अलग नजर आए…।