मुंबई और दिल्ली के एयरपोर्ट लगातार मचा हुआ है हंगामा: रेल और बस से सफर करने वाले इन हवाई लोगों से बेहतर ही माने जाने चाहिए

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मुंबई और दिल्ली के एयरपोर्ट लगातार मचा हुआ है हंगामा: रेल और बस से सफर करने वाले इन हवाई लोगों से बेहतर ही माने जाने चाहिए

मुकेश नेमा

बता नही सकते आपको। एयरपोर्ट पर सर पकड़े बैठे अमीर और अमीर दिखने की कोशिश मे अपनी जेबें कटवा रहे मिडिल क्लास लोगों को देखना कितना सुकून भरा है। भीड़ मची है। धक्का मुक्की का माहौल है।लोग कलप रहे है। खाने पीने के लाले पड़े हुए है। फ्लाइटें लेट हो रही है , रद्द की जा रही है। क्या करें ? कहाँ जाएं। किससे पूछें,किसे बताएं ,एकदम किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति। कितना जाना पहचाना आत्मीय दृश्य।कस्बे के बस स्टेंड जैसा अपना। शहर के रेलवे स्टेशन जैसा प्रिय। ये सच्चा समाजवाद है। अमीर गरीब सब एक जैसे। सब दुखी। सब लाचार।अमीर आदमी का हैरान होना ,कलपना गरीबों को हमेशा तसल्ली देता है। लगता है कि जनता वोट देने के मामले भर मे एक जैसी नही है। लोकतंत्र की भावना दृढ़ होती है इससे। हम हमेशा से यही चाहते थे। और मन की होने से खुशी मिलती ही है।

एक मायने में रेल और बस से सफर करने वाले इन हवाई लोगों से बेहतर ही माने जाने चाहिए। दूरदर्शी,धैर्यवान और समझदार। बस और रेल से सफर करने वाले को पक्का भरोसा होता है कि ये लेट होगी।वो इनके वक्त पर आने पर चकित होता है और जब भी ये वक्त पर आ जाती है ,सफर करने वाला घर पर ही छूट जाता है। बस और ट्रेन से सफर करने वाला इनके न आने पर रोता पीटता नही। चीख चीख कर वीडियो नही बनाता। उसके चेहरे पर शिकन भी नही आती। वो आसपास मौजूद रमणीक महिलाओं को ताकता है और अकारण मुग्ध हो जाता है। भूख लगने पर अखबार बिछाता है। पांव फैलाकर बैठता है। साथ लाई पूड़ी अचार का भोग लगाता है और बहुत बार घर से भी ज्यादा गहरी नींद में सोता है।

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और फिर दूसरी एयरलाइन्स वालो के दाम चौगुना आठ गुना कर देने पर चकित लोग मुझे ऐसे लगते है जैसे वो मंगल ग्रह से आए हो। इसमें नया क्या है ? कोरोना के वक्त शराब और तंबाकू जैसी जनोपयोगी वस्तु भी दस गुना दाम पर बिकी ही थी। तब कोई हैरान नही हुआ। हम सभी मानते है कि जो मौके का फायदा न उठा ले वो गधा। पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी ट्रैफ़िक जाम हो भर जाए,आसपास की दुकानों मे मौजूद एक्सपायर डेट की मैगी और समोसों के दाम भी आसमान छूने लगते है। ऐसे में दूसरी एयरलाइंस वालो का बहती गंगा मे हाथ धो लेने को सामान्य लोकाचार ही माना जाना चाहिए।

 

मेरा यह मानना है कि इंडिगो ने एक बार फिर भारतीय लोक धारणाओं की पुष्टि की है। एक बार फिर बताया है हमें कि जब घर मे कोई अकेला बंदा कमा रहा हो तो उसकी हर उल्टी सीधी बात कानून होती है। बूढ़े पति अपनी कमउम्र पत्नी से कभी असहमत नही होते। दुधारू गाय यदि लात मार दे तो बुरा नही मानना चाहिए। और गांव की इकलौती भौजी से खूबसूरत कोई नही होता। ये सब कहावतें याद दिलाने के लिए मैं भारतीय संस्कृति मे रची बसी इंडिगो का आभारी हूँ और आपको भी होना चाहिए।

मुकेश नेमा