आस्था एवं विश्वास की 118 किमी लंबी पंचक्रोशी यात्रा 25 अप्रेल से

प्रशासन दे ध्यान: निर्धारित तिथि के पहले यात्रा पर कोई नहीं निकले

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उज्जैन से सुदर्शन सोनी की रिपोर्ट

उज्जैन। उज्जैन में परंपरागत रूप से होने वाली आस्था एवं विश्वास की 118 किलोमीटर लंबी पंचकोशी यात्रा 25 अप्रेल से प्रारंभ होने वाली है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते विगत दो वर्षों से इस यात्रा का आयोजन नहीं हो पाया था इस कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के इस यात्रा में शामिल होने की संभावना है।

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष वैशाख माह के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि पर होने वाली इस पुण्य पद परिक्रमा में हजारो लाखों की संख्या में देशभर के विभिन्न ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के श्रद्धालुगण शामिल होने आते है।

भीषण लू एवं तपती गर्मी के समय होने वाली 118 कि.मी. लंबी यह पैदल धार्मिक यात्रा श्रद्धालुओं के आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की प्रतीक है क्योंकि वैशाख मास एक पर्व के समान माना गया है, इसके विशेष महत्व के चलते ही बारह वर्ष में एक बार होने वाला सिंहस्थ (कुंभ) मेला भी इसी मास में आयोजित होता है।

पंचक्रोशी यात्रा में सभी ज्ञात-अज्ञात देवताओं की प्रदक्षिणा का पुण्य इस पवित्र मास में ही मिलता है। उज्जैन के पटनी बाजार क्षेत्र के नागनाथ की गली में स्थित भगवान काशी-विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद श्री नागचंद्रेश्वर महादेव के मंदिर से पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत होती है एवं पुनः इसी स्थान पर पहुँच कर इस यात्रा का समापन होता है। कई श्रद्धालुगण इस यात्रा का समापन उज्जैन की अष्टतीर्थी परिक्रमा एवं अमावस्या तिथि पर क्षिप्रा स्नान करने के पश्चात करते है।

प्राचीन मान्यता अनुसार श्रद्धालुगण भगवान बलदेव स्वरूप श्री नागचंद्रेश्वर को श्रीफल (नारीयल) अर्पित कर प्रभू से बल प्राप्त करने के पश्चात अपनी यात्रा को प्रारंभ करते है, तंग गली में स्थित मंदिर व श्रद्धालुओं की भारी संख्या एवं अधिक दबाव को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है।

पंचक्रोशी यात्रा उज्जैन की प्रसिद्ध यात्रा है। इस यात्रा में आने वाले देव – 1. पिंगलेश्वर, 2 कायावरोहणेश्वर, 3. विल्वेश्वर, 4. दुर्धरेश्वर, एवं 5. नीलकंठेश्वर हैं।

यात्रा का सबसे पहला पड़ाव पिंगलेश्वर महादेव मंदिर, दुसरा पड़ाव करोहन स्थित कायावरोहणेश्वर महादेव मंदिर, तीसरा पड़ाव नलवा, चौथा पड़ाव बिल्केश्वर मंदिर, पांचवा पड़ाव कालियादेह महल, छटवा पड़ाव दुदेश्वर मंदिर जेथल, सातवा पड़ाव उंडासा और अंत में सभी श्रद्धालु पुनः उज्जैन नगर में प्रवेश करते है एवं पटनी बाजार स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर को मिट्टी के अश्व (घोड़ा) अर्पण कर बल वापस लौटाते है। पश्चात क्षिप्रा नदी पर स्नान कर यात्रा का समापन करते है।
इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु चिलचिलाती धूप में लगभग 24 किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलते हैं, जिसमें बुजुर्ग, बच्चे, महिला, पुरुष सभी एक साथ होते हैं। आस्था ऐसी कि धूप में इतना चलने के बाद भी चेहरे पर थकान की एक रेख भी देखने को नहीं मिलती। अपने वर्ग, वंश और जाति को भुलाकर वे सिर्फ ईश्वर भक्ति में रमे रहते हैं। यहाँ तक कि भीड़ में उनके नाम व पहचान भी अप्रसांगिक हो जाते हैं। यात्रा की एक अन्य विशेषता यह है कि आमतौर पर इसमें साधुओं की कोई भागीदारी नहीं होती। इस बीच श्रद्धालुओ के लिए नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लोग स्वेच्छा से खानपान की व्यवस्था अपने स्तर पर करते रहते है। पेयजल और चलित चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था भी कई निजी संस्थाओं द्वारा की जाती है। प्रशासन द्वारा भी सभी श्रद्धालुओ के लिए चिकत्सा, पेयजल, दूध, रसद एवं पड़ाव पर ठहरने की बेहतर से बेहतर व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है।

प्रशासन अभी से दे ध्यान

विगत कई वर्षों से देखा गया है कि पंचक्रोशी यात्री हमेशा ही निर्धारित तिथि और दिनांक से पहले ही यात्रा पर निकल पड़ते हैं। वही ज्योतिषाचार्यों का मत है कि तय तिथि और दिनांक से यात्रा प्रारंभ करने पर ही पंचक्रोशी यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। यात्रा का पुण्य मुहूर्त के अनुसार तीर्थ स्थलों पर की गई पूजा-अर्चना से मिलता है। इसे ध्यान में रखते हुए सभी यात्रियों को पुण्य मुहूर्त के अनुसार यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी।

जिला प्रशासन द्वारा इन्हीं तय दिनांको को ध्यान में रख कर विभिन्न पड़ाव स्थलों पर विशेष व्यवस्थाऐं की जाती है। ऐसे में तय तिथी से पहले यात्रा पर निकले श्रद्धालुओं को इन व्यवस्थाओं का लाभ न हीं मिल पाता एवं परेशानी का सामना करना पड़ता है प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिए कि वे पंचकोशी यात्रा की ज्योतिषियों द्वारा निर्धारित तिथियों की महत्ता बताते हुए पंचायत स्तर से गांव गांव प्रचारित करें एवं अपील करें जिससे श्रद्धालुओं को धर्मलाभ के साथ ही प्रशासन द्वारा की गई व्यवस्थाओं का लाभ भी मिल सके।