
अमर क्रांतिकारी खुदीराम बोस की 118वीं पुण्यतिथि—देशभक्ति की अलख जगाने वाला इतिहास
– राजेश जयंत
आज 11 अगस्त को हम अपने देश के सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर क्रांतिकारी और अमर शहीद खुदीराम बोस जी को उनकी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। एक ऐसी युवा आत्मा जिसने मात्र 18 वर्ष की कम उम्र में अपने प्राणों का बलिदान देकर देश के स्वतंत्रता संग्राम को नई ताकत दी। उनका नाम केवल इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि हर देशभक्त के दिल में गर्व से सजता है। उनके समर्पण और अदम्य साहस ने साबित कर दिया कि सच्ची देशभक्ति उम्र की मासूमियत को भी वीरता में बदल सकती है।

Khudiram Bose का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के रायसाहर गांव में हुआ। बचपन से ही उनमें देशप्रेम का गहरा बीज अंकुरित हुआ। वह अंग्रेजों के शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ उठ खड़े हुए और युवावस्था में ही क्रांतिकारी आंदोलन के अग्रदूत बन गए। अपने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों पर बम फेंक कर अंग्रेजी हुकूमत को चौंका दिया। उनकी वीरता की गाथा ने देश के युवाओं को जागरूक किया और स्वतंत्रता आंदोलन में नई ऊर्जा भरी।
1908 में, जब वे केवल 18 वर्ष के थे, उन्होंने अपने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया। मुजफ्फरपुर जेल में फांसी के फंदे से पहले खुदीराम बोस ने एक भावुक गीत गाया, जो उनकी निडरता और मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम का आईना था—
_“एक बार विदाई दे मां घूरे आसी,
हांसी हांसी परबो फांसी,
देखबे जोगोत वासी।”_
अर्थ: “माँ, मुझे विदाई जरूर देना, मैं मुस्कुराते हुए फांसी स्वीकार करूंगा, तमाशा देखेगा पूरा संसार।”
यह गीत आज भी मुजफ्फरपुर जेल परिसर में देशभक्ति की सांस्कृतिक विरासत के रूप में बजता है, जो हर दिल को झकझोर देता है और हमारे अंदर राष्ट्र के लिए समर्पण का जज्बा जगाता है।
खुदीराम बोस का बलिदान हम सबके लिए एक संदेश है कि आज़ादी कोई मुफ्त में मिली नहीं, यह चिरंतन संघर्ष, अनगिनत त्याग और अपराजेय साहस से हासिल की गई है। क्या हम सचमुच उन अमर शहीदों के सम्मान के योग्य हैं, जिन्होंने अपने प्राणों का न्योछावर कर हमें आज़ाद भारत दिया? क्या हम केवल शब्दों में श्रद्धांजलि देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं या उनके दिखाए रास्ते पर चलकर देश की उन्नति और सम्मान में अपना योगदान देते हैं?
वे और उनके जैसे अनेक क्रांतिकारियों ने हमें बड़े अवसर और जिम्मेदारियां सौंपीं हैं। भ्रष्टाचार, असमानता, और सामाजिक कुरीतियों से लड़ते हुए हमें इस महान देश को शिक्षा, तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु बनाना है। देश की सुरक्षा और विकास के बिना कोई भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र पूर्णता की ओर नहीं बढ़ सकता।
आज़ाद भारत के नागरिकों के रूप में हम सभी पर दायित्व है कि हम खुदीराम बोस जैसे महान योद्धाओं के आदर्शों को हृदय में स्थापित करें और अपने कर्तव्यों का निर्वाह पूरी निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण से करें। उनका सपना था एक ऐसा भारत, जहां हर नागरिक गर्व और सम्मान के साथ जीवन यापन करे, और हम सब मिलकर उसे सच करें।
खुदीराम बोस का निस्वार्थ बलिदान सदैव देशभक्ति की अलख जगाता रहेगा। उनकी मुस्कुराहट, उनका जज़्बा और उनका समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणा का अनमोल स्रोत है। आइए आज उनके स्मरण में न सिर्फ उनके बलिदान को याद करें, बल्कि उन्हें अपने कर्मों में जीएं और भारत को महान बनाने का संकल्प लें।
भारत माता की जय! 🇮🇳





