आदिवासी महिला की 15 साल की IAS वरिष्ठता लेकिन नहीं बन सकी कलेक्टर,अब हो रही रिटायर

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IAS Officer's Transfer In MP

आदिवासी महिला की 15 साल की IAS वरिष्ठता लेकिन नहीं बन सकी कलेक्टर,अब हो रही रिटायर

सामान्य तौर पर IAS के नाम कहीं न कहीं चर्चा में रहते हैं। लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा में बेला देवर्षि सिंगार के बारे में किसी से पूछा जाए तो उसे शायद सोचना पड़ेगा। लोग उन्हें अभी भी रिटायर्ड आईजी स्व नारायण सिंह सिंगार की बेटी के रूप में जानते हैं। उनकी एक पहचान यह भी कि वे कांग्रेस की फायरब्रांड आदिवासी नेता रही स्व जमुना देवी की भतीजी है।
मुद्दे की बात ये है कि बेला सिंगार 2007 की IAS अधिकारी है और इसी साल दिसंबर में रिटायर हो रही हैं, वो भी बिना किसी जिले की कलेक्टर बने। ये आश्चर्य जनक जरूर है, पर यही सच्चाई है। डिप्टी कलेक्टर से भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद हर अधिकारी की एक ख्वाहिश होती है जिला कलेक्टर बनने की और लगभग हर अधिकारी बनता भी है (हालांकि कुछ और बिरले उदाहरण हैं) लेकिन बेला के साथ ऐसा नहीं हुआ। उनकी IAS केडर में 15 साल की वरिष्ठता है लेकिन कभी भी सरकार ने उन्हें कलेक्टर बनाने के लायक नहीं समझा। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि बेला के बैच के ही अधिकारी किसी संभाग के कमिश्नर है या किसी विभाग के कमिश्नर स्तर के मुखिया।
यूं तो मध्यप्रदेश सरकार महिला सशक्तिकरण और आदिवासी कल्याण के गीत गाती रहती है लेकिन बेला के साथ ऐसा क्या हुआ कि उन्हें कलेक्टर पद से वंचित रखा गया। वे आदिवासी महिला हैं इसलिए सरकार के नीति के अंतर्गत ही उनका कलेक्टर बनने का दावा तो अन्य अधिकारियों की तुलना में और भी ज्यादा हो जाता है। यह बात जरूर है कि अपने पूरे सेवाकाल में उन्होंने ना तो पूर्व सरकार में और ना इस सरकार में कभी किसी पद की लालसा की और ना किसी को जाहिर होने दिया। उन्हें सरकार ने जहां पदस्थ किया,अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से किया।

बेला के बारे में बता दें कि उन्होंने देवर्षि शुक्ला से लव मैरिज की थी, यह जानते हुए कि उन्हें गंभीर बीमारी है और वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं है। यही हुआ भी, शादी के बाद जब वे प्रेग्नेंट हुई, उसी दौरान उनके पति देवर्षि की पुरानी बीमारी के चलते मौत हो गई। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने बेटे के साथ हैं।
राज्य शासन की IAS वरिष्ठता सूची में आज भी उनके नाम के साथ पति का नाम जुड़ा है- बेला देवर्षि सिंगार। इसे उनकी खुद्दारी ही मानी जाना चाहिए कि उन्होंने न तो भाजपा शासन में और न कांग्रेस के शासन में खुद को कलेक्टर बनाए जाने की या किसी महत्वपूर्ण पद पाने के लिए कोई पहल की। पर, सरकार ने एक महिला आदिवासी अफसर को भुला दिया, ये सबसे बडी बात है।
हम यहां यह भी बता दे कि बेला की बैच के अधिकारी दीपक सिंह सुपर टाइम स्केल से पहले ही ग्वालियर के कमिश्नर, ओपी श्रीवास्तव एक्साइज कमिश्नर, अभय वर्मा स्कूल शिक्षा कमिश्नर और संजय गुप्ता कोऑपरेटिव कमिश्नर हैं। दीपक सिंह, ओपी श्रीवास्तव और अभय वर्मा डिप्टी कलेक्टर से भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए हैं जबकि संजय गुप्ता को गैर प्रशासनिक सेवा कोटे से IAS अवार्ड हुआ है।
आदिवासी उत्थान और महिला सशक्तिकरण का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार के लिए ये सोच का विषय है कि इस महिला आदिवासी अफसर के साथ ऐसी नाइंसाफ़ी क्यों और कैसे हुई?