15 दिसंबर… तुमने 71 साल पहले सरदार पटेल को छीना था, अब वरुण को छीनकर फिर हर राष्ट्रभक्त को निराश किया है …

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

तमिलनाडु के कुन्‍नूर में हेलिकॉप्‍टर हादसे में एकमात्र जीवित बचे ग्रुप कैप्‍टन वरुण सिंह को छीनकर 15 दिसंबर तुमने पूरे देश को निराश कर दिया है। 8 दिसंबर को जब तमिलनाडु के कुन्‍नुर में हेलिकॉप्‍टर दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ था, तो उस हादसे में सीडीएस बिपिन रावत, उनकी पत्‍नी मधुलिका रावत समेत 13 लोगों की मौत हो गई थी। केवल वरुण सिंह ही इस हादसे में जिंदा बच सके थे। पूरे देश को उम्मीद थी कि वरुण को जिंदगी निराश नहीं करेगी, पर मौत ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। वैसे भी 15 दिसंबर की तारीख शायद बहुत निर्मम ही है हमारे लिए, 71 साल पहले देशभक्त, कुशल प्रशासक, आजादी के बाद राष्ट्र एकीकरण के नायक सरदार वल्लभ भाई पटेल को भी हमसे छीना था तुमने हमसे। लेकिन जिस तरह पटेल आज भी हम सबसे जुदा नहीं हो पाए हैं, ठीक उसी तरह शौर्य चक्र विजेता वरुण सिंह तुम भी हम सबकी यादों में ताउम्र जिंदा रहोगे। यह देश तुम्हें कभी नहीं भूल पाएगा।

कैप्टन वरुण उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रुद्रपुर तहसील के कन्हौली गांव के रहने वाले थे। पिछले साल एक उड़ान के दौरान बड़े टेक्निकल फॉल्ट की चपेट में आने के बाद अपने विमान को हैंडल करने के अदम्य साहस के लिए उन्हें 15 अगस्त 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। उन्होंने अपने तेजस फाइटर को मिड-एयर इमरजेंसी के बावजूद 10 हजार फीट की ऊंचाई से सुरक्षित उतारा था। ग्रुप कैप्टन सिंह के पुरस्कार के उद्धरण में कहा गया था, ‘‘अत्यधिक जानलेवा स्थिति में भारी शारीरिक और मानसिक दबाव में होने के बावजूद उन्होंने मानसिक संतुलन बनाए रखा और असाधारण उड़ान कौशल का प्रदर्शन करते हुए विमान को बचा लिया।अपनी जान को खतरा होने के बावजूद उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपये बचाते हुए लड़ाकू विमान को नियंत्रित करने तथा सुरक्षित उतारने के लिए असाधारण साहस का परिचय दिया था। इससे स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान में खामी का सटीक विश्लेषण करने और ऐसी घटनाएं फिर से होने से रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाने में मदद मिली।” पर दु:ख की बात है कि मौत को मात देने में माहिर वरुण तुम आज मौत से मात खा गए। खतरों से खेलने वाले वरुण को आखिरकार मौत ने आठ दिन खेल में उलझाकर खिलवाड़ कर ही दिया। और भोपाल देश के इस शौर्य वीर को अंतिम विदाई देकर आंसू बहाने को मजबूर है। वरुण के पिता भोपाल में ही निवासरत हैं। वरुण सिंह को भोपाल के नागरिक भारी मन से श्रद्धांजलि दे सकेंगे। वरुण सिंह यह भोपाल तुम्हें कभी नहीं भूलेगा। यह देश तुम्हें दिल में बसाकर रखेगा|

तो भारत के पहले उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई झावेरभाई पटेल आज भी हर राष्ट्रभक्त भारतीय के दिल में बसे हैं। जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई थी। एक संयुक्त, स्वतंत्र राष्ट्र में इसके एकीकरण का  मार्गदर्शन  किया। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के  भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में जो कार्य किया, वह अविस्मरणीय है। पटेल ने शरणार्थियों के लिए राहत प्रयासों का आयोजन किया और शांति बहाल करने के लिए काम किया। लगभग 565 स्वशासी  रियासतों को 1947  के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा ब्रिटिश आधिपत्य से मुक्त कर दिया गया था। पटेल ने लगभग हर रियासत को भारत में शामिल होने के लिए राजी किया। नए स्वतंत्र देश में राष्ट्रीय एकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पूर्ण और अडिग थी, जिससे उन्हें “भारत का लौह पुरुष” कहा जाता था। आधुनिक अखिल भारतीय सेवा प्रणाली की स्थापना के लिए उन्हें “भारत के सिविल सेवकों के संरक्षक संत” के रूप में भी याद किया जाता है। उन्हें “भारत का एकीकरणकर्ता” भी कहा जाता है।  सरदार पटेल की प्रतिमा, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी 31 अक्टूबर 2018 को लोकार्पित हुई थी, इसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) है। पटेल का संदेश था कि भारत के संविधान का सम्मान करें और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति अपनी निष्ठा दिखाएं। यह संदेश आज भी उतना ही महत्व रखता है। 1950 की गर्मियों के दौरान पटेल के स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आई। बाद में उन्हें खून की खांसी होने लगी। 2 नवंबर के बाद पटेल की तबीयत ज्यादा खराब हो गई, जब वे बार-बार होश खोने लगे और अपने बिस्तर पर ही कैद हो गए। 12 दिसंबर को उन्हें बॉम्बे ले जाया गया , क्योंकि उनकी हालत गंभीर थी। अंततः दिल का दौरा पड़ने से पटेल का 15 दिसंबर 1950 को बॉम्बे के बिड़ला हाउस में निधन हो गया। भारत रत्न सरदार पटेल को यह देश नमन करता है। 15 दिसंबर तुमने उस दिन भी हम सभी भारतीयों को बहुत निराश किया था।

भारत रत्न पटेल और शौर्य चक्र विजेता वरुण सिंह की मौत के बीच फासला भले ही 71 साल का हो, लेकिन तब भी हर राष्ट्रभक्त की आंख नम थी और आज भी हर राष्ट्रभक्त की आंख नम है। 15 दिसंबर 71 साल पहले 1950 में भी हर राष्ट्रभक्त के लिए क्रूरतम साबित हुई थी और 71 साल बाद 15 दिसंबर 2021 को भी निर्ममतम साबित हुई है। दोनों महानायकों को यह देश शत-शत नमन करता है।