पंकज के बिना उदास है 17 मई…

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पंकज के बिना उदास है 17 मई…

देश के मशहूर गजल गायक पंकज के बिना यह 17 मई उदास है। 26 फरवरी 2024 को मुंबई में उनका 72 साल की उम्र में न‍िधन हो गया था। उनका नाम उन गजल गायकों में शुमार है, जिनकी आवाज से दिल को सुकून मिलता था। पंकज उधास उन गायकों में से थे, जिन्‍होंने गजल को सिनेमाई पर्दे पर मशहूर बनाया। भारतीय संगीत उद्योग में उनको तलत अज़ीज़ और जगजीत सिंह जैसे अन्य संगीतकारों के साथ इस शैली को लोकप्रिय संगीत के दायरे में लाने का श्रेय दिया जाता है। चिट्ठी आई है आई है …गजल हर गजलप्रेमी की जुबान पर आ ही जाता है। सब को मालूम है मैं शराबी नहीं,फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूं…गजल के साथ पंकज उधास नजरों के सामने आ ही जाते हैं। ‘ना कजरे की धार’, ‘चांदी जैसा रंग है तेरा’, समेत ऐसे दर्जनों गीत और गजल हैं, जो आज अभी पंकज उधास के  फैंस के लबों पर हैं। आज हम पंकज उधास को याद कर अपने दिलों में उस सुकून को महसूस करते हैं।

पंकज उधास का जन्‍म 17 मई 1951 को गुजरात के जेतपुर में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1980 में ‘आहट’ नाम के एक गजल एल्बम से की थी। इसके बाद 1981 में ‘मुकरार’, 1982 में ‘तरन्नुम’, 1983 में ‘महफ़िल’ जैसे एल्‍बम से उन्‍होंने शोहरत पाई। फिल्‍मी पर्दे पर महेश भट्ट की फिल्‍म ‘नाम’ के लिए उन्‍होंने ‘चिट्ठी आई है’ गीत ना सिर्फ गाया, बल्‍क‍ि फिल्‍म में इसे प्रस्‍तुत करते हुए भी नजर आए। यह गीत ना सिर्फ सुपरहिट हुआ, बल्‍क‍ि इसने कई रिकॉर्ड भी बनाए। साल 2006 में पंकज उधास को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

पंकज उधास का जन्म गुजरात में राजकोट के पास चारखड़ी-जैतपुर में एक ज़मींदार चारण परिवार में हुआ था। वे तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके पिता का नाम केशूभाई उधास और माँ का नाम जीतूबेन उधास है। उनके सबसे बड़े भाई मनहर उधास ने बॉलीवुड में हिंदी पार्श्व गायक के रूप में सफलता प्राप्त की थी। उनके दूसरे बड़े भाई निर्मल उधास भी एक प्रसिद्ध गज़ल गायक हैं और तीनों भाइयों में से सबसे पहले गायिकी का काम उन्होंने ने ही शुरू किया था। उन्होंने सर बीपीटीआई भावनगर से शिक्षा प्राप्त की थी। उसके बाद उनका परिवार मुम्बई आ गया और पंकज ने वहाँ के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई की। उनके दादाजी गाँव से पहले स्नातक थे और भावनगर राज्य के दीवान (राजस्व मंत्री) थे। उनके पिता, केशुभाई उधास, एक सरकारी कर्मचारी थे और प्रसिद्ध वीणा वादक अब्दुल करीम खान से मिले थे, जिन्होंने उन्हें दिलरुबा वादन सिखाया था।अपने बचपन में, उधास अपने पिता को दिलरुबा वाद्य बजाते देखते थे। संगीत में उनकी और उनके भाइयों की रुचि को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें राजकोट में संगीत अकादमी में दाखिला दिलाया। उधास ने शुरू में तबला सीखने के लिए खुद को नामांकित किया, लेकिन बाद में गुलाम कादिर खान साहब से हिंदुस्तानी मुखर शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। इसके बाद उधास ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर के संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के लिए मुंबई चले गए।

पंकज उधास के बड़े भाई मनहर रंगमंच के एक अभिनेता थे, जिसकी वजह से पंकज संगीत के संपर्क में आये। रंगमंच पर उनका पहला प्रदर्शन भारत-चीन युद्ध के दौरान हुआ जिसमें उन्होंने “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाया जिसके लिए एक दर्शक द्वारा उनको पुरस्कार स्वरूप 51 रुपये का इनाम भी दिया गया। चार साल बाद वे राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी में भर्ती हो गए और तबला बजाने की बारीकियों को सीखा. उसके बाद, उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से विज्ञान स्नातक डिग्री की पढ़ाई की और एक ‘बार’ में काम शुरू कर दिया, तथा समय निकालकर गायन का अभ्यास करते रहे। उधास ने पहली बार 1972 की फिल्म कामना में अपनी आवाज दी जो कि एक असफल फिल्म रही थी। इसके बाद, उधास ने ग़ज़ल गायन में रुचि विकसित की और ग़ज़ल गायक के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उन्होंने उर्दू भी सीखी. सफलता न मिलने के बाद वे कनाडा चले गए और वहां तथा अमेरिका में छोटे-मोटे कार्यक्रमों में ग़ज़ल गायिकी करके अपना समय बिताने के बाद वे भारत आ गए। उनका पहली ग़ज़ल एल्बम आहट 1980 में रिलीज़ हुआ था। यहाँ से उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गयी और 2009 तक वे 40 एल्बम रिलीज़ कर चुके हैं। 1986 में उधास को नाम फिल्म में अपनी कला का प्रदर्शन करने का एक और अवसर प्राप्त हुआ जिससे उनको काफी प्रसिद्धि भी मिली। वे पार्श्व गायक के रूप में काम जारी रखा, वे साजनये दिल्लगी और फिर तेरी कहानी याद आई जैसी कुछ फिल्मों में भी दिखाई दिए। बाद में उधास ने सोनी एंटरटेंमेंट टेलीविजन पर ‘आदाब अर्ज है ‘ नाम से एक टेलेंट हंट कार्यक्रम की शुरुआत की।अभिनेता जॉन अब्राहम उधास को अपना मेंटर कहते हैं।

पंकज उधास के लिए यही कहा जा सकता है कि उन्होंने भारतीय गजल प्रेमियों के दिल में जो जगह बनाई है, उससे वह सदियों तक जिंदा रहेंगे। आज वह होते तो 73 साल की उम्र पूरी करते। पर आजमा गजल प्रेमियों के प्यारे पंकज के बिना 17 मई उदास है…।