शायद यह हम सब के गुजरे बचपन और किशोरावस्था की कथा है ,हां यह उन दिनों की बात है जब बड़ी सी साईकल की घंटी बजाते हुए गली मोहल्ले से यूँ गुजरा जाता था जैसे —हवाई जहाज उड़ा रहे हों ,घुटने पर अब भी कोई निशान जरुर होगा जो साईकल से गिरने और घुटने फूटने की याद दिलाता होगा .माँ के हाथ से बडबडाते हुए हल्दी का लेप लगाने की