2 .Garh Ganesh Temple Jaipur : एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान गजानन के सूंड नहीं है!

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2 .Garh Ganesh Temple Jaipur : एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान गजानन के सूंड नहीं है!

                             भक्त मन्नत पूरी करने के लिए चिट्ठियां भेजते हैं

जयपुर के अनेक धार्मिक स्थलों में से एक, गढ़ गणेश मंदिर भी एक ऐसा ही आध्यात्मिक स्थल है जहाँ पर्यटक अक्सर अपनी यात्रा के दौरान आते हैं। यह अरावली पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है और ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में गणेश जी पुरुषाकृति नामक एक छोटे बालक के रूप में विराजमान हैं।भक्त मन्नत पूरी करने के लिए चिट्ठियां भेजते हैं. 365 सीढ़ियों को चढ़ क्र ही दर्शन संभव हैं।

इस मंदिर की एक और अनोखी बात यह है कि यहाँ स्थापित गणेश जी की मूर्ति में सूंड नहीं है क्योंकि वे बाल रूप में स्थापित हैं। मंदिर के सभी कार्यों और व्यवस्थाओं की देखभाल औधच्य परिवार द्वारा बहुत ही ध्यान से की जाती है। दिवाली के बाद पहले बुधवार को मंदिर परिसर में विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं, जब अन्न-कूट नामक उत्सव मनाया जाता है। यहाँ आयोजित होने वाला एक अन्य अवसर पौष मास के अंतिम बुधवार को मनाया जाने वाला पौष बड़ा है। वर्ष के इस समय में बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में ऋद्धि-सिद्धि और उनके दो बच्चों शुभ और लाभ की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं। मंत्रोच्चार और धूपबत्ती की सुगंध मंदिर के अंदर एक अत्यंत शांतिपूर्ण वातावरण बनाती है।

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इसके अनूठे होने का कारण इसकी गणेश प्रतिमा का अद्वितीय रूप है। यह मंदिर जयपुर के प्राचीन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है जिसे गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है।इसका निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ के आयोजन के साथ करवाया था।ऐसा बताया जाता है कि महाराजा सवाई जयसिंह यन्त्र, मंत्र तथा तंत्र विद्या में प्रवीण थे जिसके प्रभाव स्वरूप इस मंदिर की स्थापना तांत्रिक विधि से कराई गई।
Garh Ganesh temple of Jaipur
यह मंदिर एक गढ़ के रूप में बना हुआ है इसलिए इसे गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर निर्माण के पश्चात ही महाराज सवाई जयसिंह ने गणेश जी के आशीर्वाद से जयपुर की नींव रखी थी।
इस मंदिर की सबसे अधिक विशेष बात जो इसे सम्पूर्ण भारत में अनूठा बनाती है वो यहाँ पर स्थित गणेश प्रतिमा का बाल रूप.
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आकर्षण का इतिहास
गढ़ गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह प्रथम ने अश्वमेघ यज्ञ के दौरान करवाया था। मंदिर और वह स्थान जहाँ भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की जानी थी, उन्होंने ही बनवाया था। इसके बाद जयपुर शहर बसा। भगवान गणेश की मूर्ति को ऐसी जगह पर रखा गया था कि राजा जयपुर स्थित अपने महल से दूरबीन की मदद से मूर्ति को देख सकें।मंदिर तक जाने के लिए लगभग 500 मीटर की चढ़ाई पूरी करनी पड़ती है। प्रसिद्ध गैटोर की छतरियां तक निजी साधन से पहुंचने के बाद यहां के लिए चढ़ाई शुरू होती है। मंदिर इतनी उंचाई पर बसा हुआ है जहां पहुंचने के बाद जयपुर की भव्यता देखते ही बनती है। गढ़ गणेश मंदिर से पूरा शहर नजर आता है।मंदिर में भगवान गणेश के दो विग्रह बताये जाते हैं जिनमें पहला विग्रह आंकड़े की जड़ का तथा दूसरा अश्वमेध यज्ञ की भस्म का है।यहां मंदिर में मौजूद मूर्ति की तस्वीर लेना प्रतिबंधित है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसकी तहलटी में ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन हुआ था। इस मंदिर में प्रसाद चढ़ाते समय गणेश जी के मंत्रों का भी उच्चारण किया जाता है। गढ़ गणेश मंदिर में एक ऐसी प्रतिमा है, जो की इतनी सिद्ध है कि वहां यदि कोई भी मनवांछित इच्छा लेकर लगातार सात बुधवार तक जाए तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. हालांकि, तमाम चुनौतियों के बीच यहां सात बुधवार तक नियमित आना भी आसान नहीं है.

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पहुँचना
अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं, तो जयपुर रेलवे स्टेशन पहुँचें और वहाँ से मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी या बस किराए पर लें। दूसरा विकल्प जयपुर हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरना और फिर वहाँ उपलब्ध किसी भी सार्वजनिक परिवहन से मंदिर तक पहुँचना है।

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आस-पास घूमने की जगहें
एक धार्मिक स्थल होने के अलावा, मंदिर के आसपास का क्षेत्र सुंदर प्राकृतिक दृश्य प्रस्तुत करता है, जो इसे जयपुर का एक लोकप्रिय दर्शनीय स्थल बनाता है। अरावली पर्वत की चोटी से गुलाबी नगरी और भी आकर्षक दिखाई देती है।

खुलने/बंद होने का समय और दिन
मंदिर सभी दिन सुबह 7:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 8:00 बजे तक खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क
कोई प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है, लेकिन आप अपनी इच्छानुसार मंदिर कोष में कुछ धनराशि दान कर सकते हैं।

दर्शन का सर्वोत्तम समय
जयपुर स्थित इस मंदिर में दर्शन के लिए गणेश चतुर्थी सबसे उपयुक्त समय है, जब हर साल यहाँ पाँच दिनों का मेला लगता है।

प्रस्तुति -स्वाति तिवारी 

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