2. Unique Person My Mother: -एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “- मैं अपनी मां श्रीमती मीना  श्रीवास्तव की प्रति छाया हूं!

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एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “-

माँ एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति है जो हर किसी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उनकी ममता, त्याग और प्यार हमें जीवन में आगे बढ़ने और सफल होने की प्रेरणा देते हैं। माँ एक ऐसा शब्द है जो प्रेम, समर्पण और त्याग  का प्रतीक हैविश्व मातृ दिवस  से हमने  एक नयी श्रृंखला  ‘मेरी माँ ‘शुरू की   हैं.  इस श्रृंखला के माध्यम से हम अपनी माँ के प्रति अपना  सम्मान ,अपनी संवेदना प्रकट कर सकते हैं -आइये कलम उठाइये और माँ को अपनी स्मृतियों  से कागज पर शब्दों में   चित्रित कर दीजिये -दूसरी  प्रस्तुति में आज पढ़िए निरुपमा खरे की भावनात्मक लेखनी  में समाई उनकी माँ श्रीमती मीना  श्रीवास्तव जी के  बारे में सीधा -सरल, करूणा से भरा व्यक्तित्व था,उनका। साड़ी  ही जीवन भर रही उनकस प्रिय परिधान ,साड़ी पर  मुझे एक कविता  याद आ रही है –

हर शाम मेरी माँ बहुत अच्छे-से सजती है
महज़ एक पुरानी क्रीम, चुटकी-भर टैल्कम पाउडर की मदद से

पीले रंग की एक साड़ी पहन उस जगह आ बैठती है
जहाँ किताबें पढ़ते हैं पिता मूर्तियों की तरह तल्लीन

पीला, ऊर्जा व सोहाग का रंग है, तुम पर बहुत फबता है
कहते हैं वह, अपनी सुनहरी दलीलों की ओट में मुस्कुराते

जबकि मैं जानता हूँ, जिन जगहों से आए हैं पिता
वहाँ दूर-दूर तक फैले होते थे सरसों के पीले खेत

जब आँचल लहराती है मेरी माँ, लहरों से भर जाता है
पीले रंग का एक समुद्र : शाम की वह सूरजमुखी शांति

मेरी माँ ने ताउम्र महज़ पीली साड़ियाँ पहनीं
ताकि हर शाम अपने बचपन में लौट सकें मेरे पिता–[स्रोत :
रचनाकार : गीत चतुर्वेदी प्रकाशन : हिन्दवी]

सम्पादक -डॉ स्वाति तिवारी

2. Unique Person My Mother: -एक अद्भुत और अद्वितीय व्यक्ति:”मेरी माँ “- मैं अपनी मां श्रीमती मीना  श्रीवास्तव की प्रति छाया हूं!

निरुपमा खरे ✍️

मां पर जब -जब भी लिखना चाहा, मेरी कलम ने हमेशा बगावत करी है।हर भावना को शब्दों में पिरोना और फिर कागज़ पर उतारना, हमेशा आसान नहीं होता है।

सभी कहते हैं कि मैं अपनी मां की प्रति छाया हूं, परन्तु मैं जानती हूं कि मैं उनकी तरह नहीं बन पाई।उन जैसा निश्छल,निर्मल हृदय हर किसी का नहीं हो सकता है।सीधा -सरल, करूणा से भरा व्यक्तित्व था,उनका।

मेरी मम्मी श्रीमती मीना श्रीवास्तव, एक आई ए एस अधिकारी की पत्नी,पर कभी यह अहसास उनके दूर -दूर तक नहीं फटका। अनुशासन उन्हें बेहद प्रिय था, उसमें ढिलाई उन्हें मंजूर नहीं थी। इसके अलावा समय की पाबंद, घड़ी की सुइयों के साथ चलने वाली।

हम बच्चों को उन्होंने इतना कुछ सिखाया कि मुझे आज की तारीख में कभी -कभी बहुत आश्चर्य होता है कि आखिर उन्हें खुद कितना कुछ आता था, तभी हमें सिखा सकीं।हर काम बिल्कुल परफेक्ट करना। सिलाई -कढाई, खाना बनाना, घर ठीक रखने का सलीका।किस कपड़े को कैसे धोना है, कैसे तह करना है।

खुद की देखभाल करना, अलग -अलग प्रकार के घरेलू उबटन बना कर लगाना। बचपन में मुझे याद है,हम लोगों को एक खटिया पर लिटा कर रीठा,आंवला, शिकाकाई के पानी से बाल धोती थीं। इसलिए हम लोगों के बाल काले -घने बने रहे।

आज सभी साड़ी पहनने पर मेरी तारीफ करते हैं तो यह शौक भी मुझे उनसे ही आया। हमेशा मौसम के अनुरूप साड़ियां पहनना उनकी पहचान थी। कभी उन्हें साड़ी के अलावा किसी और कपड़े में नहीं देखा। साड़ियों को कलफ लगाना,उनकी साज -संभाल करना सब मम्मी से ही सीखा।

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण पाठ जो उन्होंने पढ़ाया,वह है रिश्ते संभालना, उन्हें निभाना। हमेशा कहती थीं कि रिश्ते निभाने के लिए कुछ झुक जाने में भी कोई बुराई नहीं है क्योंकि अहम से ज्यादा बड़े हमारे रिश्ते हैं। यदि पति कभी गुस्सा भी हो तो बजाए बहस करने के,उस समय चुप रहो,बाद में गुस्सा शांत होने पर बात करो

उनकी सिखाई छोटी -छोटी अनगिनत बातों ने मेरा जीवन आसान बनाया।आज मेरी जो तारीफ होती है,सब उनकी ही देन है। मेरा पूरा व्यक्तित्व उनका ही गढ़ा हुआ है।

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हां,हमारा संबंध सहेलियों की तरह नहीं था,उस समय यह प्रचलन ही नहीं था। मां और बेटी का संबंध एक लिहाज़ लिए हुए था। कड़े अनुशासन में हमें पाला था, उन्होंने। सुबह छः बजे उठना है तो उठना ही है ,चाहे कितनी भी रात को सोएं,उनका कहना था कि सुबह तो समय पर ही उठना है फिर भले ही दिन में नींद पूरी कर लो।
शाम को देर से लौटने पर अच्छी पिटाई हो जाती थी,यह बात अलग है कि बाद में खुद ही रोती थीं।

मेरी गुड़िया के लिए कपड़े सिलकर देती थीं।हाथ पकड़ कर लिखना सिखाया इसलिए मेरी हस्तलिपि उनसे बहुत मिलती-जुलती है,क‌ई अक्षर तो हूबहू एक जैसे लगते हैं।

मूक प्राणियों से उन्हें बहुत प्रेम था और वही प्रेम मुझमें और मुझसे आगे मेरे बच्चों में आया। सड़क के कितने घायल पशु उनकी हल्दी लगवा कर ठीक हो ग‌ए। जब उन्हें आखिर समय ले जाया जा रहा था तो उनके वो सारे मित्र उन्हें विदा देने आए थे।

हर प्रकार के धार्मिक, सामाजिक आडंबरों से दूर रहती थीं परन्तु अपनी परंपराओं का पूरा पालन करती थीं।

अपने हाथों से खाना बना कर सबको खिलाना, उन्हें खूब पसंद था। उनके घर कभी किसी को सूखा नाश्ता नहीं मिलता था, बल्कि कुछ न कुछ ताजा बना कर खिलाती रहीं।

चौदह जनवरी 23 को वह इस दुनिया से विदा हो गई।
उसके चार दिन पहले ही हम सबको खाने पर बुलाया था,न सिर्फ खाना बनाना बल्कि उतने ही शौक से टेबल भी सजाना। चौदह जनवरी को भी हमारे लिए खाना बना रही थीं,जब अचानक हृदयाघात ने उन्हें हम सबसे छीन लिया। किचन के प्लेटफार्म पर कटी सब्जियां रखी रह ग‌ई।

जीवन के हर पल का आनंद लेने वाली, छोटी -छोटी बातों पर खुश हो जाने वाली मेरी मम्मी, बेहद खुशमिजाज थीं। जीवन को एक उत्सव की तरह जिया उन्होंने, नकारात्मक बातों से दूर रह कर सकारात्मक सोच रखना, यही उन्होंने सीखा और यही हमें सिखाया।
मां पर तो एक ग्रंथ भी कम है, क्या लिखूं, क्या छोड़ूं?
“ मां का होना उतना ही सहज , उतना ही आम, उतना ही रोज़ाना, जैसे सूरज का उगना, जैसे चांद का ढलना, जैसे सांसों का आना-जाना “

निरुपमा खरे ✍️

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