In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन /मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इसकी इक्कीसवीं क़िस्त में नवभारत पत्र समूह के मध्य प्रदेश के समूह संपादक श्री क्रान्ति चतुर्वेदी अपने पिता स्व. महेश चतुर्वेदी जो सर्वोदय गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे, वे पत्रकारिता के साथ-साथ भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रहे और सबसे पहले अपनी ही जमीन दान कर आये थे. यहाँ उनके इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए अपने प्रखर पत्रकार पिता को याद कर रहे हैं और यही उनकी सादर श्रद्धांजलि है …….
जुड़-जुड़ कई इकाई नित वे
मुझे सैकड़ा करते आये
मेरा दृढ़ विश्वास पिता हैं
मुझमें संबल भरते आये
प्रथम स्लेट पर आड़ी तिरछी
मैंने जो खींची रेखायें
हाथ पकड़ उन रेखाओं में
स्वर्णिम अक्षर गढ़ते आये
मेरा तो ब्रह्माण्ड पिता हैं- गरिमा सक्सेना
21.In Memory of My Father : उनका व्यक्तित्व इंद्रधनुषी छठा लिए प्रखर पत्रकार का था !
क्रांति चतुर्वेदी
मेरे पिता स्वर्गीय महेश चतुर्वेदी जी देवलोक गमन के लगभग 34 साल बाद भी अभी भी मेरी स्मृति में सदा बने रहते हैं । कोई वक्त शायद ही ऐसा जाता होगा जब उनके किस्से याद नहीं आते होंगे । एकांत हो या महफिल…. किसी ना किसी रूप में वह आज भी हमारे साथ ही रहते हैं…..। यूं कहा जाए तो वह एक प्रखर पत्रकार थे किंतु समग्र दृष्टि से देखा जाए तो उनका व्यक्तित्व इंद्रधनुषी छठा लिए हुए था । वह हर रंग में अपनी खुशबू बिखेरते रहे और उसके मूल में जीवन मूल्य और समाज सेवा प्रधानता लिए हुए रहता था । वह एक प्रखर संपादक, चिंतक ,विचारक, दार्शनिक ,कहानीकार, गीतकार,साहित्यकार, समाजसेवी ,सक्रिय राजनेता और रामचरित्र मानस के विशेष सेवक थे । पत्रकारिता के क्षेत्र में महेश भाई के नाम से चर्चित पिताजी ने अपने जीवन काल में लगभग 19 पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया था। महेश चतुर्वेदी जी को इंदौर के पत्रकार और लोग इसलिए याद करते हैं कि उन्होंने जिस विषय पर लिखा और बोला उसे पहले वे अपने आचरण में शामिल किया करते थे।
इसे इस उदाहरण से भी समझा जा सकता है कि पापा जी ने पत्रकारिता के साथ-साथ भूदान आंदोलन में भी इंदौर में मालवा क्षेत्र में सक्रिय हिस्सेदारी की थी । …..जो जोतेगा उसकी होगी जमीन….. जब इस नारे के साथ पिताजी ने मैदान संभाला तो सबसे पहले उन्होंने अपनी स्वयं की जमीन जो इंदौर के हातोद तहसील क्षेत्र में आती थी (वर्तमान में सुपर कॉरिडोर के आगे)उसे अपने हालियों को सौंप दी । उनके दोस्तों ने समझाया भी था …….कि आप क्या करने जा रहे हो …….उनका जवाब रहता था…… इस आंदोलन को चलाने के लिए सबसे पहले मुझे अपनी जमीन देना चाहिए इसके बाद ही ऐसा करने के लिए मैं किसी से कहने का हकदार हो सकता हूं……..। इसलिए उनके बारे में यह कहा जाता था कि जो भी लिखते और सार्वजनिक रूप से मंचों से बोलते थे …..सबसे पहले वह अपने जीवन में अमल करते थे ……यही उनकी सुरभि थी……।
वह लंबे समय तक सर्वोदय गतिविधियों से भी जुड़े रहे। और आंदोलन के मुख पत्र सर्वोदय साधना के संपादक भी रहे। प्रख्यात गांधीवादी और विनोबा भावे की शिष्या , श्रीमती इंदिरा गांधी की सलाहकार राज्यसभा सांसद निर्मला देशपांडे के साथ उनकी गहरी मित्रता रही। जब भी उनका इंदौर प्रवास होता , पापा जी से मिलने अवश्य आती रही । उनके समाचार पत्र नित्य नूतन के संपादक का दायित्व भी पिताजी ने इंदौर से लंबे समय तक संभाला।
पिताजी अस्पृश्यता निवारण आंदोलन से भी जुड़े रहे । अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है उसके मुख पत्र अंत्योदय का संपादन भी लंबे समय तक उन्होंने इंदौर से किया। जैसा कि उनके बारे में मशहूर रहा , वे जिस मिशन के साथ पत्रकारिता करते थे इस मिशन को जमीनी तौर पर भी जीते थे ……अंत्योदय का संपादन करने के दौरान उन्होंने इंदौर की हरिजन बस्तियों में भी मोर्चा संभाला और अस्पृश्यता निवारण के क्षेत्र में लोक जागरण के लिए मैदानी लड़ाइयां भी लड़ी।
आजादी के आंदोलन के दौरान उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत कर दी थी। वे अनेक बार जेल भी गए लेकिन कभी भी स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन के लिए अपना नाम लिखवाने की कोशिश तक नहीं की । अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली प्रजा मंडल पत्रिका से जुड़े रहे और स्वतंत्रता सेनानियों का आश्रय स्थल हमारे निजी घर होते थे जो बाद में उनके हाथ से जाते रहे । लेकिन उन्होंने कभी अपनी संपत्ति संरक्षण की परवाह भी नहीं की।
स्वर्गीय महेश चतुर्वेदी जी मूलतः समाजवादी चिंतक थे और समाजवादी जीवन मूल्यों को भी अपने जीवन में जीते रहे। डॉ राम मनोहर लोहिया के काफी निकट रहे। लोहिया जी ने उन्हें समाजवादी पार्टी के मुख पत्र चौखंबा के संपादक का दायित्व सौंपा। वह इसका संपादन इंदौर से ही करते रहे। प्रिंट लाइन में महेश भाई के साथ लोकसभा अध्यक्ष रहे रवि राय और अपने जमाने के वरिष्ठ समाजवादी नेता मधु लिमये का नाम भी प्रकाशित होता था । आपके संपादन में निकले चौखंबा ने पूरे देश में अपनी पहचान बनाई और समाजवादी आंदोलन के फैलाव में अहम भूमिका निभाई। पिताजी ने यहां भी केवल अपने आप को पत्रकारिता तक सीमित ना रखते हुए समाजवादी विचारधारा का मैदान पकड़ा और पूरे मध्य प्रदेश में उस दौर में समाजवादी चिंतक के तौर पर अपनी पहचान बनाई । वे समाजवादी पार्टी की इंदौर इकाई के चुने हुए अध्यक्ष रहे। जिले से तीन विधायक समाजवादी पार्टी के बनवाए उनमें से एक विधायक आरिफ बेग तत्कालीन संविद सरकार में सहकारिता मंत्री बने जो बाद में भारत के वाणिज्य मंत्री भी बने। समाजवादी आंदोलन के दौरान भी अपने कई बार जेल यात्राएं की।
पिताजी के बारे में अनेक किस्से इंदौर के पत्रकारिता जगत में चर्चित रहे । वर्तमान के दौर में संभवत कुछ लोग इस घटना पर विश्वास नहीं करें किंतु यह अपने आप में एक तथ्य है। तत्कालीन समय में व्यापक प्रसारित समाचार पत्र इंदौर समाचार के प्रधान संपादक श्री पुरुषोत्तम विजय ने श्रमजीवी पत्रकारों की इस बहादुरी को प्रथम पृष्ठ पर बॉक्स में प्रकाशित किया था । समाचार का शीर्षक था ………पत्रकारों ने पूंजीपति के हस्तक्षेप को ठुकराया….। घटना के एक बहादुर पात्र श्री महेश चतुर्वेदी जी तो दूसरे वरिष्ठ पत्रकार श्री हरिहर लहरी जी थे । यह दोनों साथी बतौर संपादक एक ही समाचार पत्र में कार्य करते थे । कार्य आरंभ के पहले अखबार स्वामी और दोनों पत्रकारों के बीच अलिखित समझौता हुआ था…… उसका आशय था….. हम पत्रकारों की टेबल पर मत आना …..आए कि अगले ही चरण इस्तीफा होगा….. श्री हरिहर लहरी ने एक समाचार का शीर्षक दिया….. हिंदुस्तान के जलपोत का जल तरंग पर अवतरण ……लहरी जी अपने पिताजी के श्राद्ध के कारण अवकाश पर थे और श्री महेश भाई अपनी टेबल पर कार्यरत थे । अखबार मालिक आए और शीर्षक को लेकर कुछ चर्चा करने लगे…. महेश भाई ने न तो यह बताया कि शीर्षक श्री लहरी जी ने दिया था और नहीं कोई कैफियत दी । कागज़ उठाया और अपना इस्तीफा लिख दिया। इसके पूर्व अखबार मालिक को अलिखित समझौते का संदर्भ भी दिया जिसमें तय हुआ था कि अखबार मालिक संपादक से बात नहीं करेगा , अखबार के संपादकीय विषय पर ।
अखबार कैसा निकालना है….. यह संपूर्ण अधिकार संपादक का ही रहेगा …. महेश भाई ने त्यागपत्र अखबार स्वामी की टेबल पर रखवाया और रवानगी डाल दी। रास्ते में इंदौर का गैस हाउस रोड पड़ता था । श्री लहरी जी उनके पिता के श्राद्ध कर्म के तहत काग ग्रास देने बाहर निकल ही थे कि सामने से आते श्री महेश भाई पर निगाह पड़ी…. आवाज़ लगाई …..महेश जी…. इस समय वापस कैसे ……? महेश भाई ने किस्सा सुनाया । हरिहर जी बोले….. यार बता देते कि शीर्षक मैंने दिया है …..उत्तर मिला…… वह तो ठीक है लेकिन अखबार मालिक ने पहले तो समझौते का उल्लंघन कर दिया था ना ……!!! हरिहर जी बोले महेश जी ,आपने दफ्तर में इस्तीफा दिया….. मैं यहीं से भिजवाता हूं ……..बेटों को आवाज दी ……कलम और कागज लाने के लिए। काग ग्रास की थाली अलग रखी….. पहले इस्तीफा लिख लिफाफे में बंद कर प्रेस भिजवाने के लिए थमाया ……..फिर काग ग्रास डाला …..!! ऐसे होते थे तब के पत्रकार ।तत्कालीन समय के इंदौर समाचार जैसे महत्वपूर्ण दैनिक में मुख्य पृष्ठ पर इस समाचार ने स्थान पाया तो पूरे शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। यह कहा जाने लगा दो बहादुर पत्रकारों ने पूंजीपति के अहंकार को ठुकरा दिया…… यह वह दौर था जब संपादक नामक संस्था पूरी तरह जीवंत हुआ करती थी और अखबार मालिक गौण हुआ करते थे.
जैसा कि हम सभी जानते हैं तत्कालीन समय में इंदौर में श्रमिक आंदोलन बहुत ही ज्यादा सशक्त था। इंदौर में सात कपड़ा मिले हुआ करती थी। इंदौर शहर कभी सोता नहीं था। 24 घंटे तीन पाली में मीले चलती थी। वर्तमान में इंदौर से प्रकाशित राष्ट्रीय समाचार पत्र तब अस्तित्व में भी नहीं आए थे । तब श्रम शिविर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र मजदूर संदेश के संपादक थे श्री महेश चतुर्वेदी जी । वरिष्ठ पत्रकार राहुल बारपुते जी ने नई दुनिया के प्रधान संपादक होने के पूर्व तक इस पत्र का संपादन किया था । वरिष्ठ पत्रकार श्री जवाहरलाल राठौर जी भी इसके संपादक रहे थे । मजदूर संदेश के संपादक रहते हुए भी महेश भाई ने मजदूरों के लिए अनेक मोर्चे से लड़ाइयां लड़ी । एक प्रमुख लड़ाई उन्होंने लोक निर्माण विभाग में हो रहे शोषण के खिलाफ लड़ी । यहां मजदूरों का न तो भविष्य निधि कटता था और नहीं उन्हें ई एस आई की सुविधा मिलती थी । उनका शोषण जारी था और वेतन भी अत्यंत ही कम था । यह मजदूर सरकारी विभाग से जरूर जुड़े हुए थे लेकिन सुविधा के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था । महेश भाई ने क्षेत्र के मजदूरों को एकत्रित किया और अलग-अलग स्तर पर लड़ाई लड़ने की शुरुआत की । बाद में इस लड़ाई को वह न्यायालय में ले गए जहां से मजदूरों को सारी सुविधाएं बहाल हुई।
प्रभात किरण के संस्थापक और तत्कालीन प्रधान संपादक श्री ओमप्रकाश सोजतिया जी से गहरी वैचारिक मित्रता रही तथा उनके आग्रह के चलते नियमित कालम त्रिनेत्रम के नाम से लिखा । इसके पूर्व नव प्रभात ,दैनिक जनता ,दैनिक क्रांति, इंदौर दर्शन, जागरण और जनार्दन में भी संपादन और लेखन चलता रहा।
महेश भाई ने मजदूर वर्ग ,रिक्शा चालक, तांगा चालक, हम्माल वर्ग ,पिछड़ा ,दलित और वंचित वर्गों की विविध समस्याओं को लेकर जहां एक तरफ लेखन किया वहीं दूसरी तरफ सतत मैदान में भी लड़ाईया लड़ी । ऊंची ब्याज पर साहूकारों द्वारा इन वर्गों को ऋण देने और बाद में शोषण करने की समस्या से निजात दिलाने के लिए उन्होंने शहरी सहकारिता से अभाव ग्रस्तों को जोड़ने की योजना बनाई और इंदौर में नागरिक सहकारी बैंक की स्थापना कर दी। इस बैंक के जरिए कम ब्याज दर पर लोन मुहैया कराया जाता रहा।
आप अखिल भारतीय रचनात्मक कार्यकर्ता समाज और भारत रूस मैत्री संघ मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी रहे । सांप्रदायिक सद्भाव कायम रखने के मामले में भी महेश भाई के प्रयास बेजोड़ रहे । इन प्रयासों के चलते ही बाद में आयाज के संपादक बने श्री आरिफ बेग क्षेत्र क्रमांक 1 से समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते जहां मुस्लिम वोट काफी कम थे । छिपा बाखल के कई साल पुराने एक धर्म स्थल को ढहाने के लिए कतिपय तत्वों की भीड़ आमादा थी । यह महेश भाई की ही जीवटता थी की भीड़ को लौटना पड़ा था । उनका एक ही मकसद था क्षेत्र में हिंदू मुसलमान के बीच पूर्व से कायम भाईचारा जारी रहे।
पूज्य पिताजी का राजनीतिक विश्लेषण गजब का हुआ करता था । वह मुद्दों की पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे।हमारे निवास पर शहर के प्रमुख पत्रकारों, नेताओं ,समाज सेवी , डॉक्टर, प्रोफेसर, वकीलों,साहित्यकारों आदि की बैठकें हुआ करती थी । शहर के सभी प्रमुख अखबारों के पत्रकार शाम को दफ्तर जाने के पूर्व पिताजी के साथ चाय पीने हमारे निवास अथवा पिताजी के कार्यालय पर जाया करते थे । यह क्रम प्राय रोज का था । हमारे निवास पर पिताजी से मिलने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री गण ,मंत्री गण ,विधानसभा अध्यक्ष ,भारत सरकार के मंत्री गण ,सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश व अन्य प्रमुख हस्तियां आया करती थी । देश के प्रमुख साहित्यकारों का भी इंदौर आगमन पर घर पर आना होता था । तत्कालीन प्रमुख साहित्यिक पत्रिका नवनीत के संपादक और अनुत्तर योगी पुस्तक के लेखक श्री वीरेंद्र कुमार जी जैन उनसे मिलने मुंबई से आया करते थे ।
महेश भाई का आकाशवाणी से भी सतत जुड़ाव रहा । उनकी कहानी और विविध विषयों पर वार्ताएं आकाशवाणी से प्रसारित होती रही । रामचरित्र मानस पर आपकी श्रृंखलाबद्ध वार्ताएं भी आकाशवाणी से प्रसारित होती थी । वह इंदौर प्रेस क्लब के संस्थापकों में से एक रहे । पत्रकारिता जगत की दो प्रमुख संस्थाएं इंदौर प्रेस क्लब और स्टेट प्रेस क्लब पिताजी के नाम से श्रेष्ठ रिपोर्टिंग के पुरस्कार प्रदान करती है । आप भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे । महाप्रयाण के पूर्व तक वे मजदूर संदेश का संपादन करते
रहे ।
मेरे दादाजी और पर दादाजी इंदौर में होलकर स्टेट के राज वैद्य हुआ करते थे । पिताजी का जन्म भी इंदौर का ही है । उनकी शिक्षा दीक्षा भी इंदौर में ही हुई । राज वैद्य परिवार के होने के कारण उन्होंने तत्कालीन समय में आयुर्वेद में स्नातक की शिक्षा ली थी । परिवार वाले चाहते थे कि वह भी राज वैद्य बने किंतु पिताजी का शुरू से रुझान आजादी के आंदोलन की तरफ ज्यादा रहा । साहित्य लेखन की और वह शुरू से लगाव रखतेथे । हमारे घर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और
साहित्यकारों की बैठकें हुआ करती थी ।
पिताजी राजनीति , समाज सेवा और पत्रकारिता की ओर मुखातिब हो गए थे । हम भाई बहनों का लालन-पालन उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से किया । सभी का बहुत अच्छे से ख्याल रखा । वे लोकतांत्रिक मूल्यों में बहुत विश्वास रखते थे । इसलिए परिवार में भी लोकतांत्रिक मूल्यों का आधार तैयार किया। सभी के मत का वे बहुत ध्यान रखते थे । अपवादों को छोड़कर उन्हें घर में कभी क्रोध करते हुए नहीं देखा गया । किंतु बाहर व्यवस्था के खिलाफ उनका आक्रोश जग जाहिर होता था । अपने बच्चों के करियर को लेकर वह सदैव एक बात बोला करते थे कि आजीविका के परिचय में चाहे कुछ भी बनो लेकिन सबसे पहले कोशिश करना कि पहले दर्जे के इंसान बनो……. उनकी सारी शिक्षाएं इसी सूत्र वाक्य के आसपास रहा करती थी.
। पिताजी की जीवन संगिनी यानी हमारी मां श्रीमती शकुंतला देवी चतुर्वेदी जी ने उनके हर फैसले का हंसते हुए साथ दिया। उनके संघर्षों में भी हंसी-हंसी साथ रहा करती थी….. पिताजी की यह बहुत बड़ी ताकत थी कि उनकी समाज सेवा की राह में वह कभी आड़े नहीं आई । जीवन के हर पक्ष में पिताजी बहुत याद आते हैं….. उनकी नसीहतें याद आती है…. उनका दर्शन याद आता है…. वह समग्र व्यक्तित्व के तौर पर भी याद आते हैं …….उनकी कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता है ………।
क्रांति चतुर्वेदी
संप्रति -देश के अनेक राज्यों से प्रकाशित नवभारत पत्र समूह के मध्य प्रदेश के समूह संपादक हैं
मध्य प्रदेश की पत्रकारिता के चर्चित हस्ताक्षर हैं । आपको माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार ,शब्द ऋषि सम्मान, रक्त सूर्य सम्मान, देवर्षि नारद सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है ।
18.In Memory of My Father :BHU में 1941 में जब डॉ राधाकृष्णन् की मदद से पिताजी का वजीफा 3 रुपए बढ़ा!
19.In Memory of My Father : Silent Message-पिता के लॉकर से निकला वह खामोश संदेश!