कवि हेमंत की पुण्यतिथि पर
हेमंत का धूमकेतु- सा जीवन
90 के दशक में धूमकेतु की तरह उभरे थे हेमंत। जिन्होंने अपनी तमाम कविताओं में और अपने मिज़ाज में एक संघर्षमय में काव्य-यात्रा तय की ।जो यथार्थवाद से आधुनिकतावाद तक सहज चलती चली गई। हेमंत की चर्चा छिड़ते ही याद आता है 19 वीं सदी का हंगेरियन महाकवि शांदोर पेतोकी जिसने कुल 26 वर्ष की उम्र पाई और कलम और बंदूक को अपना हमदम मानते हुए कविता के साथ-साथ बलिदान का पथ भी अपनाया। हेमंत ने बंदूक तो नहीं थामी लेकिन कविता में एक ऐसा संवेदना का सूत्र थामा जो गरीबी लाचारी से होता हुआ राजनीति के दाँवपेच तक जाता है। हंगरी कवि फेरेंत्स युहास ने भी महज 22 साल की उम्र में अपनी कविताओं से क्रांतिकारी आशावाद के स्वरों को उभारा था ।कोलकाता के सुकांत भट्टाचार्य की कविता ” रानार ” हेमंत हमेशा गुनगुनाते थे ।
रानार छुटे छे ताइ झूम झूम घंटा बाजि छे राते……जिसे हेमंत कुमार ने गाया है, लगाकर कमरे में अंधेरा करके सोफे पर बैठे सुनते थे। अंधेरे को एंजॉय करने की उनकी आदत अंत तक रही। सुकांत ने तो हेमंत से भी कम उम्र पाई। मात्र 21 साल 6 महीने। हेमंत की उम्र में यानी कि 23 वर्ष की उम्र में शहीद भगत सिंह ने फाँसी का फंदा चुना था। शहीद भगत सिंह को 23 मार्च को फाँसी हुई थी। 23 मार्च को ही पंजाब के लोकप्रिय कवि पाश अपने मानवतावादी और क्रांतिकारी विचारों के लिए शहीद हो गए। आखिर हेमंत पर इस लेख में इन सब का जिक्र क्यों ? सवाल उठ सकता है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि हेमंत पेतोकी यूहास ,सुकांत और पाश से बेहद प्रभावित रहे हैं। हालांकि हेमंत स्वतंत्र कवि थे। उन्होंने अपने जीवन में किसी वाद को नहीं अपनाया था।
हेमंत का जन्म 23 मई को उज्जैन में हुआ था। जब पैदा हुए रिमझिम फुहारें धरती का ताप हरने आकाश से धरती पर उतर आई थीं। माँ संतोष ने मानो इसे ईश्वर का वरदान माना था। हां, हेमंत वरदान ही साबित हुए थे माँ के लिए। 10 वर्ष की आयु में उन्होंने 3 लाइन की कविता लिखकर माँ को चौंका दिया था।
और कहीं भी क्या फूलों का
अंबार लगा है
या मेरा ही मन भँवरे-सा
गुंजार हुआ है।
किशोरावस्था में लिखी उनकी कविताओं में बचपन की कविता का यह असर साफ दिखता है ।उनमें गहरी ऐंद्रिकता के साथ-साथ एक ऐसी आरपार दृष्टि रखने की समझ थी जिसने एकाएक ही उन्हें सफल कवियों की श्रेणी में ला बिठाया। सफल कवितागिरी से नहीं बल्कि अपनी संवेदना को प्रकट करने की जादुई समझ से।
प्रकृति के अलस सौंदर्य का चित्रण करते करते वे अचानक जीवन के कटु यथार्थ को उकेरने लगते हैं ।ऐसा लगता है मानो कोई फटेहाल मालिन पंक भूमि पर कदम जमाए डाली से फूल चुन रही है। प्रकृति को उन्होंने बहुत नजदीक से समेटा है।
उनकी कविता में प्रकृति सहचरी बन साथ साथ चलती है फिर भले ही हेमंत उसे यथार्थ की कठोर धरती तक घसीट लाएं ।उनकी कविताओं में जो काव्य अनुभवों का विशाल विस्तार दिखाई देता है उसे बिना किसी संकोच के सामयिक विश्व कविता के स्तर का माना जा सकता है । इस विस्तार में वे दृढ़ता से पैर जमाए हुए हैं….अडिग,अडोल।
स्कूल और कॉलेज में लगातार जहां निबंध लेखन प्रतियोगिता, कहानी लेखन प्रतियोगिता, कॉलेज स्तर का कवि सम्मेलन, नाटक करते हुए प्रथम स्थान पाते रहे ,वहीं नगर स्तर पर रेखा चित्रकला प्रतियोगिता, चित्र पहेली प्रतियोगिता, अंग्रेजी स्टोरी राइटिंग प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया। प्रादेशिक स्तर पर मराठी शिक्षक संघटना द्वारा आयोजित मराठी भाषा की लिखित प्रतियोगिता में उन्हें प्रथम स्थान मिला। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उनके सभी प्रोजेक्ट नगर स्तर पर अवार्ड पाते रहे। क्रिकेट ,शॉटपुट ,जैवलिन थ्रो में महारत थी उन्हें। क्रिकेट उनका पसंदीदा खेल था। इतनी बहुआयामी प्रतिभा के बीच वे ग़ालिब ,फ़िराक़ और निदा फाज़ली की गज़लें तन्मय होकर पढ़ते। हेमिंग्वे, कीट्स,बायरन, शेक्सपियर के साथ-साथ कालिदास, बाणभट्ट भी पढ़ते रहे। लेकिन कबीर ने उन्हें मथ डाला था। कबीर को उन्होंने अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। और इसका उदाहरण है उनकी कविताएँ जिनमें वह जीवन जीते हुए मृत्यु को कभी नहीं भूले ।
बेहद शौकीन थे हेमंत ।आला दर्जे के कपड़े, आला दर्जे की शान-शौकत, आला दर्जे का खाना पीना लेकिन घर पर उतना ही सादा पहनावा। अपनी पुरानी जींस, पैंट को घुटने तक काटकर वह स्वयं हाफ पेंट सी लेते और बस उसे ही पहनते। घर पर सादा दाल ,चावल ,आम का अचार ,बैंगन का भुर्ता और आलू मटर की सब्जी उनके लिए जन्नत का सुख था ।
प्रेम भी उन्होंने डूबकर किया ।उनकी प्रेमिका महाराष्ट्रीयन सावंत परिवार से थी। बेहद खूबसूरत ,नर्म मिजाज और हेमंत के प्रति समर्पित ।हेमंत उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थे ।
यह वह समय था जब मुंबई सांप्रदायिक दंगों की त्रासदी झेल रही थी ।मुंबई में एक साथ कई जगह बम विस्फोट होने के बाद उसकी तेज़ रफ्तार ज़िदगी में दहशत समा गई थी। अखबारों में वह सब नहीं छपता था जो हो रहा था। हेमंत कसमसा उठे ।उनकी भावनाओं ने उन्हें रिपोर्टर ,पत्रकार बना दिया। वे दैनिक अखबार संझा लोकस्वामी के लिए रिपोर्टिंग करने लगे। उनकी प्रेमिका स्वाति बताती है कि उस दौरान हेमंत को जैसे नशा-सा चढ़ा था पत्रकारिता का ।
लेकिन इतने से भी चैन कहाँ हेमंत को। उन की गतिविधयाँ पत्रकारिता से बढ़कर कविता के क्षेत्र में उथल-पुथल करते हुए एक तीसरे रास्ते को अपना रही थीं और वह रास्ता था नेत्रहीनों के कल्याण का। इसके लिए उन्होंने मिलेनियम 21 नाम से इवेंट कंपनी स्थापित की।और नेत्रहीनों के नाम अपना पहला कल्चरल प्रोग्राम संपन्न करने में जुट गए ।गायक पंकज उधास से उन्हें कार्यक्रम की तारीख भी मिल चुकी थी । वे विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे।
संतोष श्रीवास्तव के कथा संग्रह ‘बहके बसन्त तुम ” पर SNDT की छात्रा मोनिषा एम फिल के लिए अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत कर रही थी। जिसमें उसे हेमंत की भरपूर मदद मिली।उनके पापा को जब ब्रेन हेमरेज और हुआ तो साल भर तक केवल संतोष दी का वेतन ही घर आता था। आर्थिक तंगी हो गई थी। तब हेमंत ने हॉकर बनकर घर-घर पेपर पहुँचाए और ट्यूशन किए ।उस समय वह दसवीं की परीक्षा की तैयारी भी कर रहे थे। सड़क के लावारिस कुत्तों के प्रति हेमंत का विशेष लगाव था। कितनी ही बार वह उन कुत्तों को बिस्किट ,दूध और चिकन के उपयोग में न आने वाले टुकड़े खिलाते देखे गए। चिकन के टुकड़े वे ग्रांट रोड के होटल से खुद लादकर लोकल में सफर करते हुए लाते थे जिनका वजन 5 किलो रहता था ।अब उनके इस कर्म को स्वाति निभा रही है। उसे हेमंत के अधूरे काम को पूरा जो करना है ।वह हेमंत के द्वारा स्थापित मिलेनियम 21 से ही कल्चरल प्रोग्राम भी अवश्य करना चाहती है। वह अभी भी सिर्फ हेमंत के लिए जी रही है ।उसने अपनी आम सी जी जाने वाली जिंदगी को तिलांजलि दे दी है और आश्चर्य तो इस बात का है कि वह कविताएँ भी लिखने लगी है ।वह सचमुच हेमंत को डूब कर जी रही है। हेमंत ने लिखा था
आओ /आओ मेरी प्रिये/ मुझे राँझे, पुन्नू और महिवाल का धर्म निभाने दो/ मिट जाने दो मुझे /आओ जीवन्त करो मेरे मिटने को /उठो, और जियो/ हां मुझे जियो ।
और हेमंत मिट गए। पाकिस्तान की शायरा परवीन शाकिर भी कराची में कार दुर्घटना में खत्म हो गई थी ।उसके पहले उन्होंने ग़ज़ल लिखी थी।
जिस तरह ख्वाब मेरे हो गए/ रेज़ा रेज़ा /इस तरह से न कभी /टूट के बिखरे कोई।
और टूट कर बिखर गया उनका जिस्म।
उसी तरह हेमंत ने लिखा था
हां ,तब यह अजूबा ज़रूर होगा/ कि मेरी तस्वीर पर होगी चंदन की माला/ और सामने अगरबत्ती/ जो नहीं जली मेरे रहते /
इस कविता ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया। क्या हेमंत को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास था? इसी दौरान वह इस्कॉन से भगवत गीता का अंग्रेजी अनुवाद खरीद कर लाए थे और उसे देर रात तक पढ़ते रहते थे। क्या यह भी आत्मा के रहस्य को जानने की एक पहल थी? उन्होंने स्वाति से कहा था “अगर मुझे कुछ हो जाए तो माँ को तुम हेमंत बनकर सम्हालना। और सब नाते रिश्ते तो कुछ दिन का शोक मना कर लौट जाएंगे अपने घर।” काम करने वाली नौकरानी से भी उन्होंने 5 अगस्त की सुबह उसी दिन कार दुर्घटना में वे चल बसे कहा था “मेरे पापा मम्मी को तंग मत करना । जो काम कहे कर दिया करना।”
हेमंत ने कबीर की वाणी सच कर दी। खुद रोते हुए आए इस दुनिया में लेकिन जाते हुए सबको रुला ही नहीं हिला भी गए ।मैं उनका पारिवारिक मित्र होने के नाते हैदराबाद से दौड़ा आया ।लेकिन संतोष दी का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। मैं दादर स्टेशन पर घंटों बैठा सिगरेट पर सिगरेट फूँकता रहा। फिर डरते हुए प्रमिला जी को फोन किया। थोड़ी हिम्मत लौटी।और जब उनके घर पहुँचा तो बुक्का फाड़कर रोता रहा संतोष दी के कंधों पर सिर रखकर । वो तो पत्थर हो चुकी थीं। उनके ऊपर किसी भी प्रतिक्रिया का कोई असर न था।
मैंने गुलाब के फूलों से लदी हेमंत की तस्वीर के सामने उनके लिए लिखी कविताएँ रखकर उन्हें काव्यमयी श्रद्धांजलि दी ……ये चारों कविताएँ मैंने इंटरनेट पर तमाम प्रमुख समाचार पत्रों में हेमंत के निधन का समाचार पढ़कर हैदराबाद में रात्रि 3 से 5 के बीच लिखी थी।
हेमंत की तस्वीर पर / पहना दिए गए होंगे पुष्पहार/ उनकी तस्वीरों पर हम /चढ़ा रहे होंगे फूल कुछ/ जिनके अरमानों पर अभी टाँकने थे सितारे/ चाँद में दिखता है / एक चेहरा/ उसका हँसना लगती है/ चाँद की हँसी/ वह चेहरा/
हमारे बीच नहीं रहा /यकीन नहीं होता/ एक हँसी /हमारे बीच नहीं रही/
अब सोचने और समझने के सभी रास्ते बंद हैं। अब तुम हमारे बीच नहीं हो हेमंत ।इस सत्य को अपनाना ही होगा।
निधीश पांडे पत्रकार