In Memory of My Father / मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन /मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इसकी 16th क़िस्त में इंदौर डिविज़न के डिप्टी कमिश्नर एक्साईज श्री मुकेश नेमा अपने पिताजी स्व.श्री लक्ष्मी प्रसाद नेमा के उस समय के अनुशासन और व्यक्ति को परख कर सम्बन्ध या संवाद स्थापित करने की कला सहित अपने विद्वान् ,कुशाग्र और तार्किक क्षमता वाले बाबूजी को रोचक शैली में स्मरण कर रहे हैं .वह समय ही ऐसा था जब पिता का अनुशासन अंग्रेजों जैसा हुआ करता था और बच्चों के लिए यह तानाशाही ही समझी गई — लेकिन कोई भी पिता तानाशाह नहीं अनुशासन प्रिय पालक ही होते थे जैसे मुकेश जी भी बता रहे हैं इस लेख में — उन्हें सादर नमन करते हुए .
17 In Memory of My Father : मेरे पिता मेरे जीवन की पाठशाला
डा. सुनील शुक्ला
मृत्यु के पश्चात जीवित रहने की विधा मैंने मेरे पिता से ही सीखी है। आज उन्हें ब्रह्मलीन हुए पच्चीस साल हो गये। लेकिन एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब कोई उन्हें आकर याद न करता हो।या उनके लिए आंखें नम न करता हो। यह उनके कर्मों का, सेवा का ही परिणाम है कि लोगो ने उनके निवास नगर को उनका पर्याय नाम दे दिया। आप कहीं भी जाएं और कोई पूछता है आप कहां से आए हो? और बताओ कमला पुर से तो पूछने वाले व्यक्ति का प्रतिप्रश्न होता है अच्छा डा शुक्ला जी वाला । जी हां मै डा विष्णु प्रसाद जी शुक्ला की बात करते हुए उनकी स्मृति यो मे खो गया हूं। उनसे जुड़े ऐसे कई संस्मरण है।जो स्मृति पटल पर पुनर्जीवित होने लगे हैं। एक बार एक रोगी को इंदौर के नामी अस्पताल से छुट्टी कर घर भेज दिया कि अब उनकी सेवा करो।दो चार दिन के मेहमान है। घर ले जाते वक्त रास्ते में किसी ने कहा शुक्ला जी को दिखा लिजिए। वे निराश मन से यहां लेकर आये पिता जी ने उस रोगी को देखा, इलाज किया। और कहा जा इन्हें दो साल कुछ नही होगा। और वह रोगी दो वर्षों तक जीवित रहा। ऐसे ही एक बार एक रोगी चलकर अस्पताल आया पिता जी ने देखा और कहा इन्हें घर ले जाओ ये रात भर ही जियेगा। रोगी के साथी परेशान कि डॉक्टर साहब क्या बोल रहे है ये अच्छा भला बोल रहा है। फिर कैसे बोल दिया।घर ले जाइये। और सच मे अगले दिन सुबह खबर आ गई कि वह रोगी अब नही रहा। ऐसे अन्तर्यामी थे हमारे पिता। एक बार एक रोगी की हिचकी बंद नही हो रही थी। इंदौर,देवास इलाज करवाया लेकिन पूरा आराम नहीं मिला। किसी ने उन्हे पिता जी को दिखाने को कहा।वह रोगी आया पिता जी ने देखा और पीठ पर एक मुक्का मारा और उसकी हिचकी बंद हो गई। एक बार एक रोगी को सर्प ने डस लिया ।जहर का असर ज्यादा था। पिता जी को दिखाया, तो उन्होंने कहा तुरंत इसे इंदौर ले जाना पड़ेगा.उन्होंने ड्राइवर से कहा इसे अपनी कार से ले जाओ। जेब मे जितने भी रुपये थे बिना गिने निकाल कर उसे दे दिये। और इंदौर डा को फोन लगाकर कहा इस रोगी का अच्छा इलाज करो। रुपए की चिंता मत करना मै दूंगा।और उस रोगी को जीवनदान मिल गया। सुबह चार बजे उठना,हमे रेडियो बी सी लंदन या सिलोन लगाकर हमें सुबह जल्दी उठाकर व्यायाम करवाना पढाई के लिये बैठाना। स्वयंसेवी बनकर स्वयं का कार्य स्वयं करना। सुबह ४ बजे से उठकर रात्रि १० बजे तक कार्य करना। रात्रि को भी ३_४ बार उठकर रोगी देखना उनकी आदतों में शुमार था। दूर के रोगियों के लिये एक सेवाश्रम नाम से संस्था चलाकर निशुल्क रहने की व्यवस्था करना। उनके सेवा भावी होने का प्रमाण है। दो तीन बसे रोगियों को लाने ले जाने का कार्य करती थी। कभी कभी रोगियों को फ्री इलाज के बाद बस किराए के रुपये भी अपने पास से दे दिया करते थे। रोगी को अपने पास से भोजन की व्यवस्था करना ।उनकी आदतों में शुमार था। मुझे याद है जब वे इस शरीर को त्याग कर ब्रम्ह लीन हुए तब लगभग आसपास के ४० गांवों मे चूल्हा तक नहीं जला ।उनकी अंतिम यात्रा में लगभग उस समय 7-8 हजार लोग अंतिम यात्रा में शामिल हुए। हमेउनके एक साथी ने करीब २००चित्र छपवा कर दिये। हमने बांटना प्रारंभ किया तो लगभग 1000 चित्र प्रिंट करवा कर बटवाये इतनी मांग थी। पूर्व मुख्यमंत्री राजनीति के संत श्री कैलाश जोशी जी के साथ काफी कार्य कर समाज सेवा की। ऐसे कई संस्मरण यादों में है और एक किताब लिखी जा सकती है। उनके सेवा और परोपकार के कार्यों को सम्मान देते हुए डेढ़ करोड़ की लागत से बनने वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कमलापुर को स्व. डा विष्णु प्रसाद शुक्ला शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कमलापुर करने की घोषणा शासन द्वारा की गई। ताकि वे प्रेरणा पुंज बनकर समाज को प्रेरित करते रहें। साथ ही ब्राह्मण समाज को गौरवान्वित करने वाले ऐसे सरल सहज चिकित्सक समाज सेवी पिता के चरणों में नमन करते हुए उनके पद चिन्हों पर चलने की प्रेरणा हमेशा मिलती है। इन्हीं शब्दों के साथ मेरी कलम को यहीं विराम देता हूं।
डा. सुनील शुक्ला कमलापुर