Indore’s Honeymoon Murder Mystery:परिचर्चा – समाज में इस तरह की घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ता है!

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Indore’s Honeymoon Murder Mystery:परिचर्चा – समाज में इस तरह की घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ता है!

 इंदौर की  दुखद घटना से सभी में आक्रोश है ,कल इस घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए हम एक परिचर्चा रख रहें हैं ,विषय हैं समाज में इस तरह की घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ता है और आपकी नजर में इसके क्या क्या कारण हो सकते हैं ?हमारा समाज  किस तरफ जा रहा है ,लडकिया भटक क्यों रही  हैं ,परिवार जैसी संस्था टूट रही है ,आइये  कुछ प्रबुद्ध  महिलाओं से इस विषय में बात करते हैं —-

संयोजक -डॉ. स्वाति तिवारी , संस्थापक इंदौर लेखिका संघ

1 .”उल्टी तस्वीर”- ये वास्तविक जीवन है फिल्म नहीं-इरा श्रीवास्तव ,लेखिका ,लखनऊ 

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बजते हुए अलार्म को बंद कर वापस सो जाने का समय नहीं है अब। हमें जागना ही होगा।
ये सच है कि अक्सर ही मां बाप घर परिवार की इज्ज़त और समाज की दुहाई दे कर लड़कियों को प्रेम विवाह से अभी भी रोकते है किंतु इसका बदला वो दूसरे परिवार के बेटे से लेगी क्या???
जिसे मारा जाता है उसका इस सारे प्रकरण में क्या दोष होता है???
लड़कियां विवाह से इनकार कर सकती है न मानने पर उसी प्रेमी की के साथ विवाह से पहले भाग सकती है जिस प्रेमी के लिए निर्दोष की बलि चढ़ाने से नहीं हिचकती और कही बस नहीं चल रहा तो अपनी जान लो भाई कर लो सुसाइड। दूसरे की जान पर आपका क्या अधिकार है?
कितने ही केस इधर ऐसे आए जब प्रेमी के लिए नवविवाहित पत्नियों ने अपने पति की सुपारी दी।
इसका जिगरा तो वही लड़कियां ही ला रही है। बजाए इसके थोड़ी और हिम्मत कर खुल कर विरोध करे और कोर्ट मैरिज का सहारा ले ।
कितने ही ऑप्शन है पर ये तो क्रूरता की हद है। आश्चर्य कि ममता का सागर मानी जाने वाली स्त्रियां इस तरह के अमानवीय कृत कर रही है।
जरूरत है कि ऐसे प्रेम प्रसंगों में माता पिता खुल कर बच्चों से बात करें और यदि उन्हें लगता है कि उनके बच्चों का चुनाव सही नहीं है तो वो उन्हें प्यार से समझाएं क्योंकि भावनाओं में बह कर कच्ची उम्र और कच्चे अनुभव वाले बच्चे बहुधा ऐसे रिश्तों की दूरगामी नियति नहीं देख पाते। इस केस में भी जिस राज कुशवाहा के चक्कर में सोनम ने इस घटना को अंजाम दिया वो सोनम के पिता की फैक्ट्री में मात्र एक कर्मचारी था और उससे पांच साल छोटा भी था। जाहिर है मां बाप इस रिश्ते के लिए नहीं तैयार हुए होंगे और ज़बरदस्ती उस पर अपने फैसले थोपे होंगे।
एक बात और कहना चाहूंगी कि हमारी भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का जो संक्रमण तेजी से फैल रहा है उसे रोकना भी जरूरी है।
इसमें बहुत हद तक वो तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म भी रोल अदा कर रहे है जिनकी वेब सीरीज में लिव इन, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, मल्टी अफेयर, सेक्स और ऐसी हत्याओं के तमाम तरीकों की भरमार रहती है। स्क्रीन से निकल ये कब चुपचाप हमारी मानसिकता के साथ खिलवाड़ करने लगती है ये हम समझना ही नहीं चाहते। बेवकूफ पीढ़ी सिर्फ कॉपी करती है बिना ये सोचे कि ये वास्तविक जीवन है फिल्म नहीं।

2 .“बाकी हम सब के लिए समय रील की दुनिया से रियल लाइफ में आने का है।“-श्रुति अग्रवाल ,पत्रकार ,इंदौर 

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ठीक है माँ नहीं सासू माँ थी…लेकिन इस नाम में भी तो माँ ही छिपा था ना…सोनम-राजा रघुवंशी केस में हो रहे खुलासे मानवीय संवेदनाओं की बली चढ़ाने जैसे हैं। अभी राजा रघुवंशी और उसकी माँ की बातचीत सुनी…माँ बोल रही है…क्या आकाश पर जाना है। जंगल से नीचे आ जाओ। खाना खाया…ग्यारस है ना खिचड़ी बना रही…मैं बातों को क्रम में नहीं लिख पा रही क्योंकि माँ बेटे का संवाद दूसरी बार सुनने की हिम्मत नहीं है। एक माँ का बेटा आकाश में ही तो गुम हो गया। कभी नजर नहीं आएगा। कितनी चाह से बेटे को विवाह वेदी पर बैठाया होगा, सोचा भी ना होगा विवाह वेदी बली वेदी साबित होगी।
सासरे हमेशा बुरे नहीं होते। सास जो बातें बेटे से कर रही थी, वैसी ही स्नेह भरी बातों की ऑडियो रिकॉर्डिंग हमने दो दिन पहले सुनी थी। जिसमें वो अपनी बहू को कुछ खा ले। साबूदाना बना रही तो तेरी याद आ रही …यह कह रही थीं। बेटे की मृत देह के बाद भी ससुराल वाले बहू को खोज रहे थे। बेटा ना रहा बहू सुरक्षित आ जाए यह प्रार्थना के बोल सभी ससुराल वालों की होठों पर थे। वे डर रहे थे कि कहीं नई नवेली दुल्हन ह्यूमन ट्रेफिकिंग के जाल में ना फंस जाए। राजा का भाई अंत तक कहता रहा , सोनम ऐसा नहीं कर सकती। हम उसके बयान आने का इंतजार कर रहे हैं। वहीं सोनम के परिजन भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे कि इस कांड को करने के पीछे सोनम का दिमाग हो सकता है। लेकिन सीसीटीवी फुटेज ने बहुत से राज खोल ही दिए हैं। आखिर कैसे इंदौरी लड़के राजा और सोनम के साथ मेघालय में नजर आए, वो करने क्या गए थे।
यहां तो हम सोनम के घरवालों को भी नहीं कोस सकते कि उन्होंने प्रेम संबंध को इंकार करते हुए सोनम की शादी कहीं ओऱ करा दी। वो तो सोनम को डर था पिता मानेंगे नहीं। हार्ट पेशेंट हैं, कुछ हो गया तो। अपने पिता से प्यार, परिजनों से प्यार…चंद माह के आशिक से इतना प्यार कि किसी निर्दोष की हत्या की ना सिर्फ साजिश रची जा सके बल्कि उसे अंजाम तक भी पहुंचाया जाए तो लाड़ लड़ाने वाले ससुराल से लेशमात्र का स्नेह क्यों नहीं उमड़ा। क्या हम इंसान के रूप में इतने रोबोट हो गए हैं कि हमारी संवेदनाएं भी आत्मकेंद्रित ही हैं।
मैं तो अभी भी चाहती हूं पुलिस द्वारा बताई कहानी , झूठी निकले। सोनम बेगुनाह निकले लेकिन सूत्र कुछ और इशारा कर रहे हैं। सोनम के शरीर पर एक खरोंच ना होना जबकि पति की लाश खाई में मिली…सब गुत्थियों को खोल ही रहा है। इस घटनाक्रम के बहाने अब हमें सोचना चाहिए…क्या हमने अपने बच्चों को स्वार्थ पूर्ति के लिए संवेदनहीन बना दिया है। बच्चों के मन में दया भाव खत्म कर दिया है। सोशल मीडिया औऱ रील की दुनिया में हम इतना खो गए हैं कि हमारे चेहरे पर गुस्से-डर-चिढ़-उदासी के हर भाव ने प्लास्टिक स्माइल का मुखौटा ओढ़ लिया है। यह चेतने का चेतन होने का समय है…यदि सोनम ही गुनाहगार है और उसने शादी के वक्त एक पल को भी यह महसूस ना होने दिया कि वह यह शादी नहीं करना चाहती है, यकीन मानिए दुनिया अब रील और सोशल मीडिया हो चुकी है। दिखावे की खुशी ओढ़ना इसका प्रिय शगल है।

3 .इंटरनेट और ओ टी टी पर परोसा जाने वाला कंटेंट यही सीखा रहा है -डॉ रजनी भंडारी,

सामाजिक कार्यकर्ता,इंदौर
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सोनम ने ये क्या कर दियापूरे के पूरे इंदौर के सौहार्द और स्नेह के सामाजिक दृश्य को न सिर्फ़ बदनाम किया वरन् देश के नज़रों में उसे नष्ट भी कर दिया पढ़कर और सच्चाई जानकर मन और मस्तिष्क शून्य सा हो गया कुछ समय के लिए क्या कोई लड़की इतनी संवेदना शून्य भी हो सकती है और इस हद तक हिम्मती भी और इतनी क्रूर भी और दूर द्रष्टा भी और प्लानिंग की महारथी भी सोच के आगे की सोच भी नहीं सोच सकती ममतामयी महिला की जो इस ने कर दिखाया कलयुग है जनाब यहाँ तो कोई एथिक्स नहीं माने जा रहे कोई सीमा नहीं रखी जा रही कोई भावना की कद्र नहीं की जा रही स्त्री के द्वारा बस मैं और मेरी जिंदगी और मेरा मन यही ब्रह्म वाक्य चल रहा है.
समाज पर और आधुनिकता के नाम पर फ्री और स्वच्छंद जिंदगी की हिमायती युवा लड़िकियो पर इस घटना का प्रभाव तो पड़ेगा ही मान लीजिए कुछ ने इस सोनम को अपना रोल माडल बना लिया और सोचा वह कर सकती है तो हम क्यो नहीं तो क्या होगा प्रश्न न जाने कितने उठेगे उनका उत्तर मिलेगा भी नहीं शायद – इंटरनेट और ओ टी टी पर परोसा जाने वाला कंटेंट यही सीखा रहा है शादी एक संस्कार नहीं कृत्य बना दिया गया है जिसे कभी भी दोनों में से कोई भी हत्या कर ख़त्म कर सकता है माँ बाप कभी नहीं समझ पाते की उन्होंने विवाह कर दिया या गलती
कभी कभी सोचने में आता है इस तरह की घटनाये भारत को धीरे धीरे गर्त में ले जा रही है जो देश का भविष्य होती युवा पीढ़ी है वो क्यो अंधकार और प्रकाश में अंतर नहीं कर पा रही हम सब दुखी भी है और चिंतित भी

4 .समाज को जागना होगा ,अपनी परंपरा व संस्कृति की ओर लौटना होगा -शीला मिश्रा ,लेखिका ,भोपाल

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आज पूरा देश एक वीभत्स घटना से स्तब्ध है। एक नवविवाहिता ने अपनी शादी के मात्र बारह दिन बाद अपने पति की हत्या करवा दी वो भी तब जब वे दोनों हनीमून के लिए गये हुए थे। जो कारण मीडिया के माध्यम से सुनने में आ रहा है,वह यह कि उसका अपने ऑफिस के एक कर्मचारी से अफेयर चल रहा था । वर्तमान आधुनिक युग में प्यार और प्यार के बाद अपने पसंदीदा लड़के से शादी करना कोई नई बात नहीं है। कई वर्ष पूर्व तक माता-पिता ऐसे रिश्तों के लिए सहज तैयार नहीं होते थे किन्तु जब लड़कियां अपने घर से दूर रहकर पढ़ाई कर रहीं हैं ,नौकरी कर रहीं हैं और अपने पैरों पर खड़ी हैं तब ऐसे रिश्तों के लिए ना करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है क्योंकि माता-पिता से दूर दूसरे शहर में वे कितना समय उसके साथ बिता रही हैं या उसके साथ एक ही घर में रह रहीं हैं,यह पता लगाना संभव नहीं है।
समाज में आये इस परिवर्तन के बाद इस तरह की घटना का होना निश्चित ही कई सवाल पैदा करता है। अब वह समय नहीं है कि बच्चों को डांट-डपट कर अपने वश में किया जाये। बेहतर तो यह है कि वयस्क बच्चों के साथ दोस्ताना संबंध रखें जायें। उनसे खुलकर बात की जाये। उन्हें विश्वास में लेकर उनके मन में चल रही विचार प्रक्रिया को समझने की कोशिश की जाये क्योंकि जहाँ बच्चे पढ़ लिख जाते हैं और आधुनकि विचारधारा को अपनाने लगते हैं ,वहीं माता-पिता उसी पुरानी सोच के तहत अपने विचार उन पर थोपने की कोशिश करते हैं तो बच्चे विद्रोही प्रवृत्ति के हो जाते हैं। उनके रग-रग में क्रोध पलने लगता है और इसके साथ ही बदला लेने की सोच उन्हें किसी भी हद तक ले जा सकती है। पूर्व में भी कितनी ही बेटियों ने माता-पिता के अपनी पसंद के लड़के से शादी के लिए राजी न होने पर या उसके साथ पर मिलने -जुलने पर प्रतिबंध लगाने पर अपने ही माता -पिता का खून कर दिया है। लेकिन इस घटना ने तो एक बेकसूर को मौत के घाट उतार दिया और परिवार का चिराग ही बुझा दिया ,वो भी कितने निर्मम तरीके से, अपनी आँखों के सामने….,उफ़……विश्वास नहीं होता कि जिस नारी को करुणा का पर्याय माना गया है,जिसे स्नेह व प्यार का सोता कहा गया है,वह अब हत्यारिन भी हो सकती है….?
पूरे समाज को सोचना होगा कि आधुनिक बनते-बनते हम कहाँ आ गये हैं……, धनलिप्सा व प्रेम के फेर में कतिपय युवा संस्कार विहीन क्यों होते जा रहें हैं ……,हम भौतिकतावादी युग में मानवीय गुणों को तिलांजलि क्यों दे रहें हैं…..क्या यही तरक्की है?
कदापि नहीं….,
‌प्रत्येक घटित ऐसी घटना कुछ दिनों बाद एक खबर बनकर रह जाती है। समाज को जागना होगा ,अपनी परंपरा व संस्कृति की ओर लौटना होगा तथा हमारे देश व समाज में विद्या ग्रहण करते समय बच्चों को जो सबसे महत्वपूर्ण सीख दी जाती थी नैतिक मूल्यों की, उसे शिक्षा के केन्द्र में रखना होगा।

5.आज की गुमराह पीढ़ी पर प्रश्नचिन्ह लगाती सोनम की कहानी-ऊषा सक्सेना,मुंबई

विवाह होते ही शिलांग हनीमून मनाने के लिये जाते ही पति राजा रघुवंशी की हत्या करवा दी और स्वयं गुम हो गई । ससुराल वाले परेशान बेटा राजा कोखोया पर बहू कहाँ गई उसका अपहरण हुआ या क्या हुआ ।दुश्चिंता में सारा शहर संवेदना में रैली निकाल प्रशासन पर दबाव बना रहा पता लगाने का । जब पता चला तो असली कहानी सामने आई । परिणाम क्या निकला ऐसे प्रेम का ‌घरवालों को पहले ही बताकर शादी कर लेती अपने प्रेमी से । या फिर घर वालों को उस लडके के चाल चलन पर शक होगा और उन्होंने जैसे तैसे समझा कर शादी तो कर दी पर शादी के बाद क्या हुआ बिचारा राजा मारा गया ।सोनम कने हत्या की साज़िश रचकर अपने प्रेमी और उसके दोस्तों को शिलांग बुलाकर राजा की हत्या के बाद स्वयं वहाँ से गायब हो गई ।
राजा के घरवालों को तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उनकी बहू ऐसा कर सकती है ।क्यों कि इस विवाह से राजा बहुत खुश था और सोनम भी ‌। उन्हें लगता है कि बेटे के साथ ही हमने बहू भी खोदी । सोनम का प्रेमी राज कुशवाहा ने अपने दोनों दोस्तों के साथ राजा की हत्या करनेके बाद उसको अपने साथ ले जाकर तीनों ही उसका यौन शोषण करते रहे ।अंत में उसे बदहवास स्थिति में ढाबा पर छोड़ कर भाग गये । जहां से सोनम ने ढाबे वाला के फोन से अपने भाई को फोन कर अपने वहां होने की खबर देकर अंत मे पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया ।लानत है ऐसी बेटियों पर जो दोनों कुल को कलंकित कर स्वयं जेल में सड़े ।क्या सोनम के माता पिता और परिवार वाले समाज में कभी इज्जत से सिर उठा कर कह सकेंगे कि यह हमारी बेटी है। अंदर ही अंदर उन्हें कचोटेगा यह दर्द ।आज की प्रेम के नाम पर गुमराह हो रही बेटियों के लिये भी यह एक सबक है । कहते हैं एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है । आज सोनम ने भी वही किया ।इसका दंड तो उसे कानून देगा ही परंतु क्या उसका अपना जमीर भी उसे किसी निर्दोष की हत्या के लिये क्षमा कर सकेगा ?

7.लड़कियां जो पथभ्रष्ट हो रहीं हैं, उन पर लगाम लगाना जरूरी है- अंजना  नायर  bhopal 

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बहुत दुखद!! पुरुषों की बराबरी करते करते आज नारी यहां भी पुरुषों से आगे निकल रही है😔😔 बहुत बड़ी विडंबना ।
कहां गई वो नारी??? जिसके लिये कहा गया नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पग तल में, पीयूष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में.जब हम आज की परिस्थितियों में नारी का विश्लेषण करते हैं तो हमें बहुत सी विसंगतियों का पता चलता है। आज नारी का स्वरूप ही बदल गया है और उसमें भी सबसे ज्यादा युवा लड़कियों का जिनका दिनों दिन नैतिक पतन होता जा रहा है। लड़कियाँ अपने धार्मिक मूल्यों से दूर होती जा रही हैं। आज स्कूल कॉलेज की लड़कियाँ खुलेआम शराब, सिगरेट एवं अन्य नशे की वस्तुओं का सेवन करते आसानी से दिख जाती हैं। तर्क दे सकते हैं कि अगर पुरूष ये सब करें तो स्त्री क्यूँ नहीं।आप पहले ये तय कर लो कि आप इंसान हैं या जानवर, अगर जानवर की श्रेणी में अपने आप को रखते हैं तो सब क्षम्य है। तब तो आप सभी रिश्ते नाते भी भूल जाओ. आधुनिकता के नाम आज लड़कियां जो पथभ्रष्ट हो रहीं हैं, उन पर लगाम लगाना जरूरी है.

8 .संस्कारित करना सबसे पहले जरूरी है-प्रभा तिवारी ,लेखिका ,गायक 

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*नारी अब अबला नही सबला है ये लोकोक्ति आज की नारी के लिए कही जाती है*बेटियों को सबला बनाते है अपने पैर पर खड़ा होने के लिए है, कुरीतियां को दूर करने के लिए, समाज के उत्थान के लिए ,दरिंदों से निपटने के लिए उनको उनकी औकात दिखाने के लिए बेटियों को नीडर बनाते हैंन की अपने ही सुहाग को मोत के घाट उतारने के लिए किसी के*परिवार का बेटा,भाई छीनने के लिए सोनम जैसी कई नारी है”जो प्रेमी के चक्कर में अपना अपने परिवार का सबका सुख चैन छीन रही है*.समाज में इस तरह की घटना स्त्री की सामाजिक छबि को बिगाड़  कर फिर कई साल पीछे ले जाती है ,इन्हें रोकना होगा ,पढ़ाना लिखाना अपनी जगह पर संस्कारित करना सबसे पहले जरूरी है ,मानवीय संवेदना सबसे जरुरी है।