शिवगंगा की श्रावण में 33 कावड़ यात्राएं: “मेरा गाँव, मेरा तीर्थ” का संकल्प—पानी, जंगल और गांव की खुशहाली के लिए जनआंदोलन

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शिवगंगा की श्रावण में 33 कावड़ यात्राएं: “मेरा गाँव, मेरा तीर्थ” का संकल्प—पानी, जंगल और गांव की खुशहाली के लिए जनआंदोलन

 

– राजेश जयंत

झाबुआ (मध्यप्रदेश) की मिट्टी से निकला शिवगंगा अभियान हर साल श्रावण महीने में कुछ अलग ही रंग भरता है। इस बार 33 गाँवों में भरी सावन में कावड़ यात्रा निकल रही है, जिसमें 15 यात्राएँ 27-28 जुलाई और 17 यात्राएँ 3-4 अगस्त 2025 को होंगी। लक्ष्य सिर्फ कावड़ उठाना नहीं, बल्कि “मेरा गाँव, मेरा तीर्थ”- यानि ऐसा गाँव जहाँ पानी की किल्लत न हो, जंगल झूमते हों, मजूरी के लिए कोई बाहर न जाए, कोई झगड़ा-फसाद न रहे, हर आँगन में पौधा, घर-घर खुशहाली और पशु-पक्षी तक सुखी रहें।

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इन कावड़ यात्राओं का मतलब केवल धार्मिक परंपरा निभाना नहीं, बल्कि सामाजिक और धरती मां की सेवा है। शिवगंगा के गांववाले मानते हैं- सिर्फ देवता की पूजा नहीं, उनकी सेवा से गांव असली तीर्थ बन सकता है। जलहन देवी की सेवा के लिए गांव वाले मिलकर तालाब खुदवाते हैं, ताकि बरसात का एक-एक बूँद खेत-खलिहान में रुके, कुएं-पोखर में पानी भरे। सावनमाता के नाम से मातावन में पौधे लगाए जाते हैं- गाँव के जंगल फिर से आबाद हों, महुआ, आम, जामुन, पीपल के पेड़ बच्चों के लिए छांव बनें। जमीनमाता की सेवा के लिए लोग जैविक खेती में जुटते हैं- गोबर, देशी खाद, देसी बीज, ताकि खेत कर्ज़ में न डूबे। गायमाता का महत्व है- पशुधन बढ़े, दूध-घी घर-घर पहुँचे।

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शिवगंगा की कावड़ यात्रा का सबसे मजबूत पक्ष यह है कि यह गांव के हर इंसान को अपना गांव खुद संवारने का हौसला देती है। गावों के लोग बाबादेव के थान से मिट्टी, पानी, पौधा लेकर आते हैं। यह लोकपरंपरा में गाँव के सर्वांगीण विकास, जल–जंगल–जमीन को संवारने, झगड़ामुक्त समाज और अपनेपन का प्रतीक है। गांव में कोई शादी-ब्याह, खुशी-ग़म हो, तो सब मिल-बांटकर भागीदारी निभाते हैं।

इन यात्राओं के दौरान तालाब, कुएं, पोखर की सफाई, सड़क किनारे, खेतों में पौधारोपण, बच्चों की पढ़ाई, बेटियों के विवाह से लेकर गांव में पंचायती मेलजोल और पलायन रोकने जैसे कई सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं।

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शिवगंगा संस्था पिछले कई वर्षों से झाबुआ, अलीराजपुर और धार के हजार से भी ज़्यादा गाँवों में आदिवासी भाईचारे की सामूहिक ताकत, लोकज्ञान, शिक्षा-स्वास्थ्य और जैव-विविधता के संरक्षण की अलख जगा रही है। संस्था मानती है- गांव खुश भी होगा, टिकाऊ भी जब गाँव वाला खुद अपने गांव का नेतृत्व करे; यही असली लोकशक्ति है।

इस बार की सभी यात्राओं में युवाओं, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की भरपूर भागीदारी है। “स्वेच्छा” से, किसी बाहरी एजेंसी या फंड की आस लिए बगैर, हर परिवार, हर मोहल्ला अपनी माटी और रिश्तों से जुड़ रहा है।

इस बार 26 जुलाई को शिवगंगा गुरुकुल, धरमपुरी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई ताकि गाँव-गाँव के किस्से, यात्रा की थीम, कामकाज और आगे के संकल्प खुलकर साझा हों।

*एक नजर में:*  

1. श्रावण में 33 कावड़ यात्राएँ—मिशन “मेरा गाँव, मेरा तीर्थ”।

2. 27-28 जुलाई और 3-4 अगस्त को 32 गाँवों में आयोजन।

3. बाबादेव, जलहन देवी, सावनमाता, जमीनमाता, गायमाता- देवता-जीव व पर्यावरण का संगम।

4. तालाब खुदाई, कुवा-पोखर सुधार, जंगल का पुनर्जीवन, जैविक खेती, पशुपालन, पलायन रोकना- हर मुद्दे पर गाँव खुद पहल कर रहे हैं।

5. हर साल हज़ारों ग्रामीण स्वेच्छा से इस सांस्कृतिक-जागरूकता अभियान में शामिल होते हैं।

6. प्रेस कॉन्फ्रेंस 26 जुलाई को धरमपुरी के शिवगंगा गुरुकुल में- जनपद, मीडिया और गाँव की भागीदारी के लिए।

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*अपनी बात:*  

शिवगंगा की कावड़ यात्राएँ और “मेरा गांव, मेरा तीर्थ” का संकल्प हमारे समाज की लोक-शक्ति, एकता और गांव के प्रति जिम्मेदारी को जगाते हैं। असली तीर्थ वही, जहां मिट्टी, पानी, पेड़, पशु, इंसान सबका मेल है- जहां हर घर, हर मन में गाँव की भलाई ही पूजा है।

आज देश भर के गांवों को शिवगंगा जैसे छोटे-छोटे, अपनापूर्ण, देसी आंदोलनों से सीखना चाहिए- यह मॉडल है हक और सच्ची खुशहाली का।