34th Vyas Samman; वरिष्ठ हिंदी लेखिका सूर्यबाला को 34वां व्यास सम्मान
नयी दिल्ली, 11 दिसंबर / हिंदी की जानी-मानी लेखिका सूर्यबाला को 34वें व्यास सम्मान से नवाज़े जाने का बुधवार को ऐलान किया गया। केके बिड़ला फाउंडेशन ने एक बयान में बताया कि लेखिका को 2018 में आए उनके उपन्यास ‘कौन देस को वासी : वेणु की डायरी’ के लिए 2024 का व्यास सम्मान दिया जा रहा है। इसके तहत चार लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिह्न भेंट किया जाएगा। बयान के मुताबिक, प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रोफेसर रामजी तिवारी की अगुवाई वाली चयन समिति ने 34वें व्यास सम्मान के लिए सूर्यबाला के उपन्यास का चयन किया।
सूर्यबाला ने काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एमए किया है. इसके बाद उन्होंने पीएच डी की उपाधि हासिल की. करीब साढ़े चार दशकों से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने करने की दिशा में वो लगातार काम करती रही हैं. उनके अब तक लगभग 50 से अधिक उपन्यास, कहानी, जीवनी, व्यंग्य, विदेश संस्मरण और बाल उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी कई रचनाएं भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनूदित हैं. टीवी धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों एवं हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रुपांतर प्रसारित हुआ है. उनकी सजायाफ्ता कहानी पर बनी टेलीफिल्म को 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेलीफिल्म पुरस्कार दिया गया है. इनकी कहानियों एवं व्यंग्य का पाठ न्यूयार्क के शब्द टीवी चैनल पर प्रसारित किया गया था.
कई बार हो चुकी हैं सम्मानित
सूर्यबाला जी को अब तक प्रियदर्शिनी पुरस्कार, व्यंग्य श्री पुरस्कार, रत्नादेवी गोयनका वाग्देवी पुरस्कार, हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादेमी, मुंबई का राजस्तरीय सम्मान एवं सर्वोच्च शिखर सम्मान, राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार, भारतीय प्रसार परिषद का भारती गौरव सम्मान आदि से सम्मानित किया जा चुका है. केके बिरला फाउंडेशन के साल 2024 के ‘व्यास सम्मान के लिए सूर्यबाला की उपन्यास कौन देस को वासी : वेणु की डायरी का चयन किया गया है.
सूर्यबाला ने समाज के कुछ मुद्दों को केंद्र में रखकर किसी कहानी या उपन्यास की रचना करती हैं. प्रसिद्ध कथाकार सूर्यबाला का यह उपन्यास एक विशिष्ट पृष्ठभूमि पर लिखा गया है. भारतीय युवा ऐसा समझता है कि अमेरिका उसका आश्वस्तिकारक भविष्य है. आर्थिक उपलब्धियों की संभावनाओं में माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी किसी युवक का अमेरिका जाना एक सुखद स्पप्न की तरह देखते हैं. आर्थिक पक्ष की दृष्टि से वर्तमान सन्दर्भों में यह बहुत दूर तक ठीक भी है किन्तु अमेरिका जाने वाला युवक वहां जाने पर किन चुनौतियों का सामना करता है, किन प्रलोभनों का शिकार होता है और सांस्कृतिक स्तर पर किस वैचारिक संघर्ष से गुजरता है इसका अनुमान सहज नहीं लगाया जा सकता. सूर्यबाला ने अपने व्यक्तिगत अनुभव और विदेश प्रवास से प्राप्त ज्ञान के आधार पर इस व्यापक समस्या पर गंभीर चिंतन किया है.
केके बिरला फाउंडेशन साहित्य के क्षेत्र में विशेष रूप से सक्रिय है. फाउंडेशन की ओर से हर साल दो बड़े साहित्यिक सम्मान दिए जाते हैं. संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित किसी भी भारतीय भाषा में पिछले दस वर्षों में प्रकाशित भारतीय नागरिक की एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति के लिए सरस्वती सम्मान, जिसमें पंद्रह लाख रूपये की राशि दी जाती है. इसके अलावा एक अन्य पुरस्कार है व्यास सम्मान. इसमें चार लाख रूपये की राशि दी जाती है. यह सरस्वती सम्मान के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है. यह भी पिछले 10 वर्षों में प्रकाशित किसी भारतीय नागरिक की उत्कृष्ट हिन्दी कृति पर दिया जाता है.
सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त साहित्य और भाषा का इतिहास, आलोचना, निबंध और ललित निबंध, जीवनी आदि विधाएं भी इन सम्मानों के दायरे में आती हैं. हिन्दी में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार हैं पर व्यास सम्मान की विशिष्टता यह है कि यह साहित्यकार को केन्द्र बिन्दु में न रखकर किसी एक साहित्यिक कृति को दिया जाता है. व्यास सम्मान के लिए कृति के चयन का पूरा दायित्व एक चयन समिति का है. जिसके अध्यक्ष हिन्दी साहित्य के प्रख्यात विद्वान प्रो रामजी तिवारी हैं.
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