4 GI Tag To Banaras: PM के संसदीय क्षेत्र बनारस के 4 कृषि उत्पादों को एक साथ मिले GI टैग
अनिल तंवर की खास रिपोर्ट
देश में पहली बार बनारस के चार कृषि उत्पादों को एक साथ GI Tag दिया गया है। इनमें बनारसी पान, लंगड़ा आम, रामनगरवा भंटा (बैंगन), आदम चीनी चावल शामिल है।
इससे PM के संसदीय क्षेत्र सहित पूर्वांचल के किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार मिलेगा और उनकी आय बढ़ेगी। इन कृषि उत्पादों का स्वाद विदेशों तक जाएगा। अब तक काशी के 22 सहित यूपी में 45 GI उत्पाद दर्ज हो गए हैं।
बनारस के रत्नेश पाण्डेय ने बताया — अभी बनारसी ठंडाई, लाल भरवा मिर्च, लाल पेड़ा, चिरईगांव का करौंदा और तिरंगी बर्फी कतार में है। इन्हें जल्द ही जीआई टैग में शामिल करने की संभावना जताई जा रही है। जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि नाबार्ड एवं योगी सरकार के सहयोग से प्रदेश के 11 उत्पादों को इस वर्ष जीआई टैग मिला है। इनमें 7 उत्पाद ओडीओपी में भी शामिल हैं। चार कृषि एवं उद्यान से संबंधित उत्पाद काशी क्षेत्र से हैं। इसमें बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भंटा, बनारसी पान तथा आदमचीनी चावल शामिल है। उन्होंने बताया कि बनारस एवं पूर्वांचल के सभी जीआई उत्पादों में कुल 20 लाख लोग शामिल हैं। लगभग 25,500 करोड़ का सालाना कारोबार होता है। उन्होंने कहा कि नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के सहयोग से प्रदेश के 20 उत्पादों का GI आवेदन किया गया था। इनमें 11 को GI टैग प्राप्त हो गए। उम्मीद है कि अगले माह के अंत तक शेष 9 उत्पाद भी देश की बौद्धिक संपदा में शुमार हो जाएंगे।
क्या होता है GI Tag:
का मतलब Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत। जीआई टैग (GI Tag) एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है, वह उसकी विशेषता बताता है। आसान शब्दों में कहें तो GI Tag बताता है कि किसी उत्पाद विशेष कहां पैदा (Production Centre) होती है या कहां बनाया जाता है।
कहां से मिली GI Tag की मान्यता:
जीआई टैग को संसद से मान्यता मिली है। भारत की संसद (Parliament) ने वर्ष 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है। ये जीआई टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है।
कैसे मिलता है GI Tag:
किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है। इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है। पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है। शुरूआत में जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है। बाद में इसे रिन्यू भी करवाया जा सकता है।
विदेशों में भी मिलता है फायदा:
जीआई टैग से विदेशी बाजार में भी फायदा मिलता है। यदि किसी वस्तु को जीआई टैग मिलता है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में उस प्रोडक्ट की कीमत और महत्व बढ़ जाता है। देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं। इससे उस क्षेत्र विशेष में कारोबार के साथ-साथ टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलता है। सामान्य शब्द में कहें तो जीआई टैग को इंटरनेशनल मार्केट में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है।
भारत के किस प्रोडक्ट को सबसे पहले जीआई टैग मिला:
भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को मिला है। उसे साल 2004 में यह टैग मिला था। उसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना शॉल, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव, बीकानेरी भुजिया, अलबाग का सफेद प्याज, भागलपुर का जर्दालु आम, महोबा का पान आदि शामिल है।
जीआई टैग से क्या होता है फायदा:
जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है। साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है। इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं। GI Tag मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है।