पिता को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले कलयुगी पुत्रों को 5-5 वर्ष का सश्रम कारावास

बागली के द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश ने सुनाया फैसला

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सिंहस्थ-2004

पिता को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले कलयुगी पुत्रों को 5-5 वर्ष का सश्रम कारावास

 कुंवर पुष्पराज सिंह की खास खबर

बागली। कलयुगी पुत्रों ने केवल 8 बीघा जमीन के टुकड़े के लिए अपने जन्मदाता पिता को इतना परेशान और प्रताड़ित किया कि पिता ने जहर खाकर आत्महत्या करना ही उचित समझा। हाटपिपल्या पुलिस ने जाँच उपरांत प्रकरण न्यायालय तक पहुँचाया जहाँ पर द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश चंद्रकिशोर बारपेटे ने आरोपी पुत्रों को आत्महत्या के लिए उकसाने आरोप ने 5-5 वर्ष के सश्रम कारावास एवं अर्थदंड की सजा से दण्डित किया। आरोप साबित नहीं हो पाने के कारण मृतक की सहधर्मिणी को बरी कर दिया गया।

प्रकरण न्यायालय में लगभग 9 वर्ष तक चला था। जिस पर शुक्रवार को न्यायाधीश बारपेटे ने अपना फैसला सुनाया। लिखित फैसले की महत्वपूर्ण बात यह रही कि न्यायाधीश ने रामायण और महाभारत में पिता-पुत्र के संबंधों को उल्लेखित करने वाले संस्कृत के श्लोक भी हिंदी अर्थ सहित फैसले में लिखे।

 जानकारी के अनुसार हाटपिपल्या थाना अंतर्गत लसूड़िया लाड निवासी आत्माराम पिता उदाजी जाट(45 वर्ष) ने 01 दिसंबर 2013 को जहरीला पदार्थ(सल्फास) खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया था। जिस पर उन्हें उनके भाइयों पेमाजी और पप्पू हाटपिपल्या के निजी चिकित्सालय लेकर पहुंचे। जहाँ से उन्हें इंदौर के मयूर अस्पताल रैफर कर दिया गया। उपचार के दौरान आत्माराम की मृत्यु हो गई। डॉ रितेश महाजन ने पुलिस की मृत्यु की सूचना दी जिस पर मर्ग कायम कर आत्माराम के शव का परीक्षण हुआ और जांच में आए तथ्यों के आधार पर हाटपिपल्या पुलिस ने मृतक आत्माराम के पुत्रों महेश और गोविन्द और पत्नी कांताबाई पर आत्महत्या के लिए उकसाने और अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज कर लिया।

पुलिस जांच में पता चला कि आत्माराम आदि 4 भाई थे और उनकी कृषि भूमि का बंटवारा हो चुका था। जिसमें आत्माराम के हिस्से में 8 बीघा जमीन आई थी। जिस पर वह कृषि कार्य करता था। जमीन में बंटवारे और उसे बेचने के लिए उसके पुत्र महेश व गोविन्द और पत्नी कांताबाई उसके साथ मारपीट करते थे और प्रताड़ित करते थे। जिस कारण मृत्यु से लगभग 5 से 6 महीने पहले से दोनों पक्ष अलग-अलग रहते थे। वर्ष 2013 के खरीफ सीजन में आत्माराम ने अपनी भूमि में ढाई क्विंटल सोयाबीन की फसल की बोवनी की थी। फसल पकने पर सितम्बर माह में आरोपियों ने उसे काट लिया था। मृतक आत्माराम ने फसल काटने से मना किया और उसके भाई पेमाजी ने आरोपियों को समझाया तो उन्होंने जान से मारने और जेल भेजने की धमकी दी। आत्माराम के कहा था कि जमीन पर 1 लाख 50 हजार रूपए का कर्ज है जमीन बेचने पर सभी को कर्ज चुकाना पड़ेगा। जिस पर उसके दोनों पुत्रों ने कर्ज का तीसरा हिस्सा चुकाने से मना कर दिया था। घटना की रिपोर्ट आत्माराम ने 14 सितम्बर 2013 को हाटपिपल्या थाने में दर्ज कर करवाई थी। उसके बाद 1 दिसंबर 2013 को भी उसने हाटपिपल्या थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी कि 30 नवम्बर 2013 को उसके दोनों पुत्रों ने जमीन बेचने की बात पर उसके साथ मारपीट की थी और 3 अन्य लोगों को भी उसके जान से मारने के लिए भेजा था। 1 दिसम्बर दोपहर को आत्माराम ने सल्फास खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया था।

 पुलिस प्रकरण दर्ज करने के बाद हाटपिपल्या पुलिस ने अनुसंधान के बाद आरोपियों को हिरासत में लिया और अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया।

“नायब तहसीलदार ने मृत्यु पूर्व बयान लिया था”

आत्माराम जब इंदौर के मयूर अस्पताल में भर्ती थे उस समय इंदौर के नायब तहसीलदार राजेशकुमार सिंह को पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली थी कि आत्माराम जाट मयूर अस्पताल में भर्ती हैं और उनका मृत्यु पूर्व बयान लेना है। जिस पर वे अस्पताल पहुंचे और डॉ महाजन ने आत्माराम का स्वास्थ्य परीक्षण किया और पाया कि वे कथन दर्ज करवाने के योग्य है और उन्होंने नायब तहसीलदार सिंह को बयान लेने की अनुमति दे दी। नायब तहसीलदार सिंह ने न्यायालय में बताया कि उन्होंने आत्माराम से पूछा था कि क्या हुआ तो उसने सल्फास खाना बताया। कारण पूछा तो बताया कि उसके पुत्रों से विवाद हुआ और उन्होंने उसे मारा था इसलिए उसने सल्फास खा लिया। सिंह ने यह भी कहा कि मृतक ने बताया था कि उसने अपने गांव से 10 किमी दूर हाटपिपल्या में सल्फास की चार गोलियां खाई थी। मृतक आत्माराम ने अपने दोनों पुत्रों के नाम महेश और गोविन्द बताए और यह भी बताया कि उसकी पत्नी दुर्गेश जाट नाम के साथ इंदौर में किराए के मकान में रहती है। सिंह ने न्यायालय को यह भी बताया कि पुत्रों से विवाद क्यों हुआ के जवाब में आत्माराम ने कहा कि पुत्र जमीन बेचकर पैसा देने के लिए कहते है और वे जमीन नहीं बेचना चाहते है। इसलिए उसे मारते और तंग करते थे। पहले भी तीन-चार बार दोनों पुत्रों से विवाद हुआ था।

 *”पांच-पांच वर्ष के कारावास एवं अर्थदंड की सजा”*

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश बारपेटे ने मृतक की पत्नी कांताबाई को अपराध साबित नहीं होने की वजह से बरी कर दिया। लेकिन आरोपियों को आत्महत्या के लिए उकसाने और मारपीट करने का दोषी पाया। जिसमें उन्हें भादसं की धारा 306 के आरोप में 5-5 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 1 हजार रुपए के अर्थदंड एवं धारा 323/34 के आरोप में 1-1 वर्ष के सश्रम कारावास एवं 1 हजार रूपए के अर्थदंड की सजा से दण्डित किया। साथ ही अर्थदंड की राशि नहीं जमा करने पर अतिरिक्त कारावास की व्यवस्था भी की। शासन की और से पैरवी एजीपी अखिलेश मंडलोई ने की।

“फैसले में संस्कृत के श्लोक लिखकर पिता-पुत्र सम्बन्ध समझाए”

अपने फैसले में न्यायाधीश बारपेटे ने महाभारत में वर्णित संस्कृत के श्लोक का उदाहरण देते हुए लिखा कि पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परम तपः । पितरि प्रितिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः अर्थात ‘पिता’ ही धर्म है, ‘पिता’ स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। ‘पिता’ के हो जाने से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। इसके साथ ही कहा गया है कि ‘पितु र्हि वचनं न कश्चितनाम हीयते’ अर्थात ‘पिता’ के वचन का पालन करने वाला दीन-हीन नहीं होता। उन्होंने यह भी लिखा कि वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में पिता की सेवा करने व उसकी आज्ञा पालन करने के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा गया है न तो धर्म चरणं किंचिदस्ति महत्तरम् ।यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिया ।। अर्थात, पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है।पदमपुराण में माता-पिता की महत्ता सुनहरी अक्षरों में इस प्रकार अंकित है स र्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता मातरं पितरं तस्मात सर्वयत्रेन पुतयेत् ।। प्रदक्षिणीकृता तेन सप्त द्वीपा वसुंधरा जानुनी च करौ यस्य पित्रोः प्रणमतः शिरःनिपतन्ति पृथ्वियां च सोअक्षयं लभते दिवम्।